सवाल
आचार्य भगवन् !
आप वर्तमान- वर्धमान हैं
इसमें आज किसी को भी
कोई ऐतराज नहीं है,
सो वैसे तो प्रश्न ही नहीं उठता है
‘के आपके शिष्य भी आप जैसे ही,
सिंह चर्या के धनी निर्भीक हों,
पर भगवान् अतिशय क्षेत्र पटना गंज के बड़े बाबा जिनके पैरों के समीप दो वनराज विराजमान हैं
उस रहली ग्राम के गौरव भैया जी को आपने
दीक्षा के समय नव नामकरण करते हुए
निर्भीक सागर जी नाम दिया, क्या कारण रहा
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
कोई
जहाँ दोई
सौदा पट ना रहा हो,
तो गंज-गंज ना घूम
‘हर-जन मासूम’ पटना-गंज चुनिये
यहाँ सहज समशरण
लगा हुआ है समक्ष चरण
भगवान् वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्धमान, महावीर
जहाँ एक घाट पर पीते पानी
प्राणी सिंह-हिरण,
अहि-गरुण,
विड़ाल-कीर
एक दिन था बैठा मैं
पूज्य पाद बड़े बाबा के पाद-मूल में
तभी एक भव्यात्मा
तलघर रूप ‘गर्भ’ गृह में नीचे
सीढ़ी से उतर के आया
जाने क्यूँ माँ भाँति मेरे भीतर
एक अनुराग सा उमड़ आया
अभी यहाँ सरदी का सुरका,
रहा था कहर बरपा
सो आगुन्तक, फरसी विनीत,
भव्य नख-शिख ढ़का,
गरम कपड़ों से तुपा
मैंने कहा क्यों ?
भगवान् महावीर के भक्त होके,
ठण्डी से इतने डरते हो
कम से कम वीर तो बनो
बस इतना सुना हा था
‘कि ये छरहरा नौजवां बोला भगवन् !
आज से गर्म कपड़ों का त्याग
बस इसके सहज त्याग से हो गया अनुराग
इसकी निर्भीकता आ वसी,
गहरे हृदय मेरे आकर
तभी मैंने इसे नाम दिया
निर्भीक सागर
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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