सवाल
आचार्य भगवन् !
भगवान महावीर के मंदिर में
दूर तक, सुदूर तक, प्रसाद की कोई व्यवस्था नहीं है, फिर भी आपने ग्राम सीहोरा के गौरव-रत्न अपने बाल ब्रहचारी भैम्या अजित जी के लिए मुनि श्री प्रसाद सागर जी नाम से पुकारा है सो भगवन्
राज क्या है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये
मुख-प्रसाद की व्यवस्था है,
भगवान् महावीर के मंदिर में
आप तो बात कर रहे हैं गौण प्रसाद की
गो… न… प्रसाद
नाम
प्रसिद्ध
काम…गो…न प्रसाद
यानि ‘कि काम-गो मुख-प्रसाद
जब चाहो
जितना चाहो
लुटाते जाओ
और तो और,
वापिस लौटाने की लिए बिन शरत,
लुटाते जाओ,
लुटाते जाओ,
लुटाते जाओ, शत शरद्
परसाद तो
परेशां-द
न सिर्फ परेशाँद यानि ‘कि परेशानी देने वाला बल्कि पदेशाँ…दा यानि ‘कि परेशाँ होने वाला
एक अनार सौ बीमार
अब क्या हो ?
कितना चाहो ?
बचाते जाओ,
बचाते जाओ,
बचाते जाओ,
जब भगवन् को छिटकी
दो अपन को तो छुटकी से भी
जाने कब छुट्टी
सो मैने नाम सिर्फ प्रसाद नहीं रक्खा,
क्या आपको पीछे कुछ और लगा नहीं दिक्खा
सागर कामगो इतर
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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