सवाल
आचार्य भगवन् !
आप अपने नव दीक्षित शिष्य के,
नामकरण संस्कार के समय,
पीछे ‘सागर’ शब्द ही क्यों जोड़ते हैं,
वैसे मुनि महाराजों के नाम के पीछे शब्द नन्दी, सेन, कीर्ति आदि जोड़ने की परम्परा भी,
अत्र-तत्र दृष्टि गोचर होती रहती है
भगवन् ! क्या विशेष राज है इसे पीछे,
कृपा समाधान दीजिये ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
शब्द ‘सागर’ कोई ऊंचा नहीं,
और शब्द नन्दी, सेन, कीर्ति, कोई ओछे नहीं है,
ये शुभ मंगल शब्द
गुरुत्व रखते है,
सो सहज ही आचार्य गुरु महाराज,
नये नये गुरुओं के आगे,
चुनर में चाँद सितारे जैसे टकते हैं
ये सभी नाम साधारण से नाम को सिद्धों के
नाम में परिणत कर देते हैं
उदाहरण के रूप में,
शब्द ज्ञान ही ले लेते हैं
ज्ञान सागर यानि ‘कि भंडार ज्ञान अखण्ड
ज्ञान नन्दी यानि ‘कि ज्ञान आनंद घन पिण्ड
ज्ञान सेन यानि ‘कि चतुरंगिणी अधिपति ज्ञान सैन्य
और ज्ञान कीरति यानि ‘कि ज्ञान की रति अनन्य सो आचार्य भगवन्तों ने अपनी अटूट श्रद्धा
और ये सु…मन
सिद्ध प्रभु के चरणों में अर्पित किये हैं
समर्पित किये हैं
एक अकिंचन
भगवान् के चरणों में और क्या कर सकता है
अर्पण
सिवाय भाव भीने अश्रु नयन
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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