सवाल
आचार्य भगवन् !
चार लोगों का परिवार,
उसी का निर्वाह करते हुये,
मुखिया कहने लगता है
क्या फट-के चार हो जाऊँ मैं,
भगवन् !
बताईये इतने सारे साधु, साध्वियों
के होने के बाद भी,
आपके चेहरे पर,
एक शिकन भी दिखाई नहीं देती है
भगवान्, क्या कीमिया है इस सहजता का ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो तो
मर्जी जब उसी की चलनी
तब लगा अर्जी
‘अपनी’
कीमत कम क्यों करनी
देखो तो
न…दि…या
किसी को कुछ न दिया
किसी से कुछ ने लिया
ना…ली
और बिन्दु को सिन्धु तक पहुँचा दिया
आँख भिंजाने की
‘बात ही कहाँ आई’
फटके चार होने की
सो…रखो आपा
और चेहरे शिकन ला
क्यों असमय बुलाना बुढ़ापा
पुतली तो छोड़ो
कठपुतली हम
कृत कर्मों के हाथों की
आ इन्हें आड़े हाथ लेने की खाते कसम
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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