सवाल
आचार्य भगवन् !
मद-मर्कट-गलित ठण्ड़ी में भी,
आप कैसे लेट लेते हो,
हमें तो रजाई के अन्दर भी,
सिहरन उठती रहती है
नाक में सुरक-सुरक सुरकन लाने में,
अहम् भूमिका निभाता है,
ये चलता फिर शीत का सुरका
आपने इस ठण्डी का क्या इंतजाम कर रक्खा, भगवन् !
हमें भी ‘महा-राज’ में शामिल कर लीजिए
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
अनादि संस्कार के द्वारा धकाय
ढ़लान पर पैडल जो मारने की आदत हमें
लतीफे आते हैं,
मेरे भी जेहन में
गुदगुदाते हैं
पर हम तोड़ लेते है, जोड़ते-जोड़ते ही उनसे नाते सामने खड़े श्री गुरुदेव जो आँख दिखाते हैं
मतलब सीधा सीधा है
जो ‘लेट-लतीफ’ होते हैं
वे क्या ठण्डी
क्या बरसा
गरमी में भी फूलों की शैय्या पर नहीं लेट पाते हैं पापड़ से सिकते हैं
करवट बदलते हैं
और हम भोजन खूब,
भर-भर प्लेट, जो नहीं लेते हैं
सो ठण्डी में बखूब लेट लेते हैं
हिरण, सिंह रण जो न मचाते हमारे आस-पास
क्यों उठेगी सिहरन हमें
देखते जो रहते है अपनी ही जाती श्वास
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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