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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -127

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं
आपने कभी अपने मुँह से कफ नहीं थूका
भगवन् !
ये तो मल है
इसे निष्ठापित करने के लिए,
अलग से एक समिति रखी गई है
जाने फिर भी आपका क्या मन्तव्य है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
आप ही बतलाईये
क्या अच्छी बात है थूकना
अरे भाई थूक का कण भी
धोखे से कहीं उचट जाये तो
कायोत्सर्ग का विधान है
और कफ तो
छोटी-मोटी पंखिंयों के लिये तो छोड़िये
मोटी-मोटी मक्खियों के लिये भी दल-दल
बच निकलना मुश्किल
बाद पलक-पल
इतना ही नहीं
इसे कहते खखार भी
खतरे के एक ‘ख’ से काम न चलेगा
मिल दूसरा ‘ख’, खार का प्रतिनिधित्व करेगा
इसे ही कहा श्लेषम
‘सिले सम’ कह रहा
बुने सम है ‘मकड़-जाल’
एक माहंत तो हाल के हाल
मही-माँ कर देते थे सुपुर्द
बना हाथ-मैल
‘के किसी बेजुबान के जीवन से न हो पाये खेल
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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