सवाल
आचार्य भगवन् !
और किसी की न सही,
पर श्री मद् आचार्य देेव,
गुरु ज्ञान सागर जी की तो,
आती ही आती होगी याद,
आप के लिए है ना भगवन्
उन्होंने आपको धी दी,
आपने के समा-धी दी
गुरु-शिष्य की अमर मिशाल हैं आप दोंनो ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
याद तो, उनकी आती है
जिनसे दूरिंयाँ हों
मैं तो गुरुदेव के कूर्मोन्नत पैरों के नीचे
सानन्द माँ की गोद की सी अनुभूति कर रहा हूँ
और मैं नहीं
हम आप सभी समाये हैं
उस अनन्य स्तूप में
चूँकि हैं गुरुदेव जो अपने विराट रूप में
और उन्हें मैंने रक्खा है
अपनी पलकों में छुपा के
सो पलक झपाने के बहाने,
दर्शन करता रहता हूँ बार-बार आ के
और उन्हीं ने जाते-जाते कहा था
यदि आये मेरी ‘या…द’
तो आखर फेर लेना
और जर्रा…
द…या की तरफ हेर लेना
और हाँ…
उन्होंने मुझे धी दी
समृद्धि दी
रिद्धि-सिद्धि दी
मेरी औकात ही क्या,
मैंने न दी, समाधी उन्होंने स्वयं स्वीकारी
जाऊँ मैं बलिहारी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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