सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
मोक्ष मार्ग गिर पर चढ़ने जैसा है
और स्वयं गिर शब्द कहता है
गिरना ही गिरना
और शिखर पर तो कोई देर तक,
ठहर ही नहीं पाता है
यहाँ तो समय का सूरज,
उमर के बरफ को,
पल-पल गलाता ही रहता है
फिर मोक्ष मार्ग कैसे बनेगा ?
कौन रहा पायेगा चोटी पर बताईये प्रभो
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हाँ…हाँ…
देखिये,
दुनिया नाम ही रक्खा है
क्षितिज-छोर
यानि ‘कि क्षिति में जो
साथ में लगा ‘ज’ है
वो जन्म का अर्थ देने वाला नहीं
ज… जहामि यानि ‘कि छोड़ने का अर्थ देने वाला है
मतलब सीधा सादा है
बनने के लिए जाँबाज
बाज जैसा ऊपर उठ के,
कर्म रूपी बरसा के कहर को,
रसातल में भेज दो
सौ…भाग
सोने…सुहाग
सो छोर क्षितिज, मोक्ष सहज
क्षिति यानि ‘कि धरा,
ज यानि ‘कि छोड़ना
और सिर्फ न धरा ही
नीचे ही छोड़ना बोझ सिर काँधे धरा भी
फिर गिर
नारियल की गिरि सा चिपका लेता है
पता..
तन तो तन भर
मन करे खटर-पटर
तभी लाश तैरना जानती खूब
मन का दास जाता है डूब
‘सर्व-मान सत्य’
चोटी पर बाल रहेंगे
जिनका मन सधी चाल चले
न ‘कि चालें
आ…
तरंग मन मार
आसमाँ पा लें
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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