सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
आपके गरभ में आने के कारण,
माँ का गौरव बढ़ गया था,
उन्हें मान सम्मान कुछ हटके ही,
पुर-परिजन लोग देने लगे थे
क्या ऐसा होता है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
भाई
था मैं नहीं
‘कारण’
थी माई
थी दृष्टि जिसकी सम
समता अपरम्पार
ममता का अवतार
नमता ‘हृदय’ उदार
मैं तो आया था साथ मिथ्यातम
ऐसा वैसा नहीं
हा ! घोर
वो तो यहाँ तक चला आया हूँ
पकड़ माँ के आँचल का छोर
और शब्द खुदबखुद कह रहा
गरभ
जहाँ दोई,
कोई गर…भा तो मैं
सो गरव वाली तो बात ही
गरवा भी खेलो तो कम
वन्दे मातरम्
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!