सवाल
आचार्य भगवन् !
पिता मल्लप्पा जी ने,
जब गिनी को पालने में खेलते हुऐ,
आपने पैर का अँगूठा चूसते देखा,
तो कहने लगे थे वह,
सच पूत के लक्षण पालने में,
ऐसा कहकर के पिता श्री जी,
किस ओर इशारा कर रहे थे,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अद्भुत होते हैं पिता
सिर्फ़ पते का, पता ही नहीं रखते हैं
पते का फीता भी दृग् जल से भिंजाते हैं पिता
वो भी आकर अव्वल…
सारे परिवार का संबल जो होते हैं पिता
दूर-दृष्टि रखते हैं,
दूसरे मदरसे के, दूूसरे दर्जे में, जो पढ़े होते हैं पिता
कद में कुछ बड़े होते हैं पिता
और अनूठे
आदि सीधे चरण अँगूठे
इन्द्र सौधर्म द्वारा,
अमृत रख छोड़ने की बात भी, कहाँ झूठ है
सो गिनी,
कुछ कम न गुनी
अपने पैर का अँगूठा चूस,
मार्ग स्वाधीन थे रहे पूछ,
तभी बचपन में ही साइकल दिला
पिता जी दिलाते रहे याद
‘के साई कल तू
भाई सा. एकल तू
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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