सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
आप अपने सभी शिक्षकों के बड़े चहेते थे ।
जैसी मुस्कान माँ के चेहरे पर छा जाती है,
अपने बच्चे को, सामने देखते ही,
ठीक वैसी ही, मुस्कान, आपके लिये, आपके अध्यापक-गण देते थे ।
उनकी गदिया आपकी पीठ पाते ही सार्थक
नाम पा जाती थी, ‘ग…दिया’,
यदि पूछते हो क्या ?
तो जश,
‘के “शिष्य ऐसा, प्रत्येक शिक्षक की गदिया-दाँई-लकीर में हो,
भले ही गदिया-दाँई-‘लकी’ लकीर न हो”
सच, भगवन् ऐसा पुण्य हर किसी का कहाँ ?
जाने कितने भवों से जोड़ा होगा आपने,
और हाँ, गुरुजी सुनते हैं, आप होमवर्क
स्कूल में ही पूरा कर लेते थे,
सबसे पहले पाठ याद करके
सुना देते थे,
और जब तक,
शिक्षक बाकी के बच्चों से पाठ सुनते थे,
आप अपना होमवर्क चुनते थे ।
अय ! मेरे भगवन्, छोटे बाबा !
जर्रा बतलाइये तो,
‘के आप होम में आकर के क्या करते थे ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब.
सुनिये,
शब्द स्कूल मत चुनिये
भले पीछे ‘कूल’ यानि ‘कि किनारा लगाये है
किन्तु परन्तु रास्ता मँझधार दिखलाये है
देखो ना ‘स’ लगड़ा है
लगता है,
हुआ आपस में झगड़ा है
इस बात पर,
‘के ‘एप्रिल-फूल’ भी तो नहीं है आज
फूल से नाजुक बच्चों की आँखों में,
धूल कैसे झोंक दूँ मैं
मुझे सरसुति माँ ने अपने नाम में,
न सिर्फ पहले ही रक्खा
बल्कि फिर के भी रक्खा
सचमुच,
विद्या का लय-विलय हुआ आज
सदय-हृदय कहाँ आज
विद्या का लय-विलय हुआ आज
धन हावी है
कामयाबी की धन चाबी है
शिक्षकों की विनय कहाँ आज
विद्या का लय-विलय हुआ आज
मान सम्मान खूब देते थे
‘कल’
कहते थे माँ…साब
तभी हम बेहिसाब चहेते थे
ढ़ाई-आखर पढ़ाते थे
‘कल’
बच्चे पढ़ आते थे
वहीं के वहीं,
पाठ रोज का रोज
किन्तु परन्तु
हाय !
आज बढ़ता जा रहा, न सिर्फ पीठ पर
बल्कि हा ! हहा ! नाक पर भी बोझ
‘रे सुन बाद में आकर अपने-अपने होम हम
थे करते ओम नमः अर्हम्
किन्तु परन्तु
हा ! हहा !
आज,
बच्चों के मुख से आती आवाज
‘दम मारो दम’
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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