(७१)
‘मुझसे हाई… को ?’
*नम्बर ‘वन’ धन है
चुन’री
न ‘कि बन्धन है*
‘मेरे साथ क…वीता’
*भाई !
इतने बड़े-बड़े सूत्र रहते हैं
घाट घाट से होते हुये आते हैं
गाँठ तो पड़ ही चलतीं हैं
तो गाँठ खोलकर
यानि कि कुछ आखर
जो
आ… कहके बुलाते रहते हैं
उन्हें जोड़कर
यदि कोई पढ़े
तो हम क्योंकर होते क्षुब्ध
अरे स्तब्ध रहने की भी बात नहीं है
कहें, क्या आपको ज्ञात नहीं है ?
खीरा नमक-मिर्च-नीबू क्या पा जाता है
जायका कुछ और ही आता है*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*आषाढ़ का पानी गिर रहा
नक्षत्र था स्वाती
पानी कमल के पत्ते पर गिरा
लोगों के लिए मोति जैसा दिखा
लेकिन कमल पत्र ने बोझ समझ करके
अपने मित्र
जो कि इसकी खुशबु के लिए चौतरफा
घुमाती रहती है मुफ्त में
उस हवा को बुलाकर
इस मोती सी चमकीली बूँद को
नीचे दलदल में ढ़ोल दिया
बूँद जैसे ही गिरी
सौभाग्य रहा
सीप ने भरशक प्रयास करके
अपना मुख खोलकरके
उसे अनमोल समझ
उदरस्थ कर लिया
हाय !
कमल सुबह सुबह आये
गजराज के मुख मैं आ चुका है
और सीप का मोती
गजराज पर सवार राजकुमार के
मुकुट की शोभा में
चार चाँद लगा रहा है
पानी वहीं है नजरिया अलग-अलग
सो किस्म किस्म की
बेंगिल सेण्डिल तो हम रखते ही हैं
क्यों न चश्मे भी रख लें
या फिर नाक पर रखा भार उतार दे
सुनते हैं
भीतर की आँखें भी जानतीं हैं देखना*
‘मैं सिख… लाती’
*कूप-मण्डूक सी सोच रखने से
हम बहुत कुछ पाने से चूक जाते हैं*
(७२)
‘मुझसे हाई… को ?’
*मनाने…
माँ को नहीं,
ओढ़नी खुद को उड़ानी है*
‘मेरे साथ क…वीता’
*पोंछ पोंछ कर
था कर दिया हमनें तो आईना
खरोंच वाला
चूँकि थी ‘आई’ ना
आई माँ
बोलती, बिखेरती सुगंध
चेहरा अपना पोंछ
‘ला ला’
मैं पोंछ दूँ
बोलती हुई मेरी बन्द
श्वास श्वास
अब तो मेरी यही अरदास
‘के जहाँ माँ है
वहाँ में भी पहुँचूँ*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक हिरनिया थी
अपने छोने से खूब प्यार करती थी
एक दिन
उछल कूद करने से
उसके छोने को मुदी चोट आई
वह लगड़ाते हुऐ आया
उसकी आँखों से
खूब धार लग के आँसू बह रहे थे
तो उसकी माँ ने
आँखें लाल देखकर
आँखों में दवाई डाल दी
जल्दी से लाकर गुलाब जल भी
रुई के फाहे बनाकर
आँखों पर रख दिये
अपना आँचल लेकर
मुख की हवा से गरम करके
उस छोने की आँखों में सेक देने लगी
इतना कुछ होने पर भी
छोने का दर्द कम नहीं हुआ
तब हिरनिया छोने को लेकर
अपनी माँ के पास पहुँची
माँ ने
अरी वाबली पैर में चोट आई है
तो चूना हल्दी लगा
आँखों से आँसू आना
और ललाई तो
खुदबखुद दूर हो जायेगी*
‘मैं सिख… लाती’
*भूल भुलैय्या के रास्ते से लगते
सभी रास्तों में कोई एक ही
रास्ता मंजिल तक पहुंचता है*
(७३)
‘मुझसे हाई… को ?’
*सखी !
चुनरी से हम हैं
हमसे चुनरी नहीं*
‘मेरे साथ क…वीता’
*इतर
चुनर अंक
अंक के बिना शून की कीमत ही क्या
सुगंध बिना प्रसून की कीमत ही क्या
शून पे शून राखते जायें
राखते जायें
राखते जायें
किसी ने अगर पूछा ‘के भाई
क्या हासिल भाई
तो बगलें झाँकते जायेंगे
झाँकते जायेंगे
झाँकते जायेंगे
आ कुछ ऐसा चुन’री
‘के जीत जग लें*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*पिता जी के लिए
पक्षाघात की शिकायत हो चली
उनका बच्चा आज पहली बार
खेत पर आया है
वह देखता क्या है
कि पिता जी ने
दूर-दूर बाड़ी लगा रखी थी
जिसने एक बड़ी सी
उपजाऊँ जमीन के लिए
निगल रहता था
और पिता जी ने
ढ़ेर मेड़ भी बीच-बीच में
बना रख छोड़ींं थीं
सो इस लड़के ने
कल का इंतजार किये बिना ही
सारे खेत को एक कर दिया
बाड़ी वाली जगह में भी
बीज बो दिये
काग भगोड़े भी हटा दिये
और जा पहुँचा अपने घर
कल सुबह आकरके देखता क्या है
परिन्दे भर भर चोंच बीज चुग रहे हैं
तब उसने यहां-वहां देखा
कि उसे कोई देख तो नहीं रहा है
उसने पिता जी के द्वारा रक्खा
काग भगोड़ा
यथा-स्थान रख दिया
जब अंकुर फूटे
तो देखता है जानवर
खेत में घुसपैठ मचा रहे हैं
इसने यथावत् बाड़ी लगा दी
अब जब पानी आया
तो वह सारा का सारा पानी
बह करके चल दिया
खेत ने अच्छे से पी भी नहीं पाया
बच्चे ने पुनः मेड़े बाँध दीं*
‘मैं सिख… लाती’
*बड़े-बुजुर्गों का चश्मा लगाते ही
बेकार की चीजें सार की चीजें
दिखने लगतीं हैं*
(७४)
‘मुझसे हाई… को ?’
*पहला
नेकी राहे-शील
पत्थर-मील
चुन’री*
‘मेरे साथ क…वीता’
*बड़ा प्यारा वाक्य है
‘साथ चुन’री’
ऊँचाई का हर पायदान
यहाँ तक ‘कि
आसमान भी
वाक्य सुन ‘ई
बढ़ाता हाथ अपना
चूँकि साथ चुनरी
झुकाता माथ अपना
सो सप्ताह सात दिन ही
चुन’री साथ चुनरी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*नजूमी तोताराम की मालकिन
बड़े सुन्दर-सुन्दर चित्र बनानी थी
तोता देखता रहता था
लोगबाग जब
खरीदने के लिए आते थे
तब उनके मुँह से
अनायास ही निकल आता था
वाह
यह तोताराम भी दुहरा देता था
वाह वाह
मालकिन की एक छोटी सी बच्ची थी
वह स्कूल जाती थी
तब तोताराम भी
इस बच्ची के कांधे पर
बैठकरके स्कूल जाता था
आज इस मालकिन की
उस छोटी सी बच्ची का
चित्रकला का पेपर था
उसे हूबहू महात्मा गांधी का चित्र
खींचना था कागज पर
पर जाने क्या हो चला
बच्ची को बड़ी देर हो चली
मगर चित्र था
कि हूबहू कागज पर उतरने के लिए
तैयार ही नहीं था
तब तोता राम ने पेन्टिंग ब्रश
अपनी चोंच में पकड़कर
सबसे पहले नाक बना दी
फिर ?
फिर क्या
महात्मा गांधी का चित्र
बच्ची ने पूरा
सहज ही बना लिया
परिणाम निकला
फस्ट रैंक आई बच्ची की
अपनी माँ से बच्ची बोली
माँ इस जीत का श्रेय
अपने इस तोताराम के लिए
जाता है
माँ ने
जब सारी बात जानी
तो तोताराम के लिए
खूब साधुवाद दिया
‘मैं सिख… लाती’
*रास्ते से चलने से
सफर आसान हो जाता है*
(७५)
‘मुझसे हाई… को ?’
*अंधेरे
‘गुम परछाई’
चुनरी साथ निभाई*
‘मेरे साथ क…वीता’
*हम ही नहीं समझ पाये
खुदबखुद ही बतलाये
पर… छाई
छाहरी पड़ी पराई
और सुना ही होगा
वाह ‘रे ऊपर वाले गजब तेरी माया
कहीं पर धूप तो कहीं पर छाया
सो अंधेरे में होना ही थी गुम
पर चिन्ता न करो तुम
है ना चुनरी
चाँद सितारों वाली
सुनते जुगनु से भी डरती
रात अमावस काली*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक जालसाज ने
समुन्दर के किनारे
कुछ केकड़े पकड़ के
अपनी टोकनी में भर लिये
और सिर पर रखकर
अपने घर की तरफ चल पड़ा
रास्ते भर केकड़े
उसके चंगुल से
छूटने का भरसक प्रयास करते रहे
पर किसी को भी
कामयाबी न मिल सकी
और कामयाबी मिलने की
दूर-दूर तक
आशा भी नहीं दिख रही थी
क्यों
क्योंकि जाने अनजाने में वे
एक दूसरे की मदद न करके
टाँग खींच करके
बाधक जो बन रहे थे
तभी उस टोकनी वाले के लिए
बड़े जोरों की प्यास सताने लगी
उसे पास ही एक कुआ दिखा
वहाँ उसने ठण्डा पानी पिया
कुछ चने चबाये
और वह
गहरी निद्रा के घेर में आ चला
तभी कहीं से एक मेंढ़क आया
सारे लोग उसे बिरादरी का नहीं है यह
ऐसा कह करके भागने लगे
और उसके सिर पर सवार हो चले
तभी उस मेंढ़क ने
एक छलाँग लगाई
जो केकड़ा उसके ऊपर सवार था
वह टोकनी से पार हो गया
फिर ?
फिर क्या केकड़ों ने
मेंढ़क के आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाया
धीरे-धीरे सभी केकड़े
खेल खेल में ही
जालसाज के चंगुल से छूट चले*
‘मैं सिख… लाती’
*कभी-कभी अपनों से बढ़के
पराये मददगार सिद्ध होते हैं
भरोसा कीजिये*
(७६)
‘मुझसे हाई… को ?’
*चुनरी एक सपना
निभा सकूँ
फर्ज अपना*
‘मेरे साथ क…वीता’
*किसे नहीं चाहिये
चाहिये सभी के लिये
‘अध…कार’
लेकिन करेंगे क्या
अध-कचरा-कार लेके
धकाते रहेंगे
माथे श्रम बिन्दु-जलधार लेके
भाई करतब भी तो कोई चीज
मगर
कर यानि ‘कि हाथ जिनके
तव यानि ‘कि ‘तप’ उन्हें नसीब
इस कतार में सबसे पहले मातुश्री
फिर खड़ी चुनरी
सच !
चुनरी विरली*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*तिनके जोड़-जोड़करके
एक प्यारा सा
घोंसला बनाया चिड़िया ने
अण्डों को सेक देती रही दिनोदिन
आज चूजे निरावरण हो गये हैं
देखो देखो चिड़िया चोंच में दबाये
ये क्या लाई है
सभी चूजों ने
एक साथ चोंच खोल के
आगे बढ़ा दी
एक ही झोली में गिर पाया दाना
बाकी लोगों ने गम्म खाई
बस थोड़ी ही देर
‘के चिड़िया फिर से
कुछ लाई
फिर वही क्रम चालू रहा
फिर के चिड़िया मानो कहती गई हो
‘के बस दो मिनिट
पर ये क्या
एक चतुरा चूजा
बार-बार माँ के मुख से दाना
अपने मुख में गिरा लेता
शायद माँ को भी मालूम है
वह जानती है
पेट ही जेब हमारे बच्चों का
कितना खायेंगे
धन भाव-विभोर होकर
माँ चिड़िया भोर से
दोपहर होने को आई
पर, अपने मुख में जीरे बराबर
जर्रा सा भी दाना न डाल पाई
सच
दिल दूसरा ही रखती माई*
‘मैं सिख… लाती’
*फर्ज निभाने में वह सुख मिलता
जिसे पैसा न खरीद सकता*
(७७)
‘मुझसे हाई… को ?’
*सुन चुन’री
चूनरी
बिन ‘पानी’ सब शून ‘री*
‘मेरे साथ क…वीता’
*क्षेत्र से समुद्र दुगना
सुना है ना
फिर साधारण से पानी के लिये
‘पानी’
यथा नाम तथा गुण संज्ञा
बात कुछ समझ में नहीं आती
वैसे पानी पाना,
सही व्याकरणार्थ होगा
फिर ‘पानी’ अर्थात् क्या ?
तो
बिन पानी सब शून
यानि ‘कि
जमीर जो अमीरी का मुँहताज नहीं
पानी यानि ‘कि इज्जत
जो लज्जतदार बातों की मुँहलाज नहीं
लाजो हया शरम
राखो हरदम*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बार
एक प्रतियोगिता रक्खी गई
जिसमें पीछे शब्द लिखे थे
और आगे नम्बर
प्रतियोगी को शब्द देखकर
नम्बर बनाया था १०००
अवगुण गुण रूप शब्द थे
ज्ञान, सेवा, लाज,
सत्य, क्षमा, दया, भक्ति,
क्रोध, लोभ आदि आदि
हर किसी ने ज्ञान, सत्य
क्षमा, दया, भक्ति को पहले रख
पीछे क्रोध, लोभ, मान, माया
के लिए रक्खा
और नम्बर १००० बनाना चाहा
लेकिन किसी एक लड़की ने
जो उपाश्रम में
गुरु माँ के पास पढ़ी थी
उसने पहले लाज के लिए रक्खा
और कहा
पीछे कोई भी शब्द
आप अपने मन से रख लीजियेगा
उठा करके तीन
और देखा गया
पल्टी खिलाई जैसे ही पत्तों के लिए
सचमुच १००० नम्बर बन चला
बुजुर्ग जो निर्णायक थे
उन्होंने भूरि-भूरि प्रशंसा की
उस बच्ची की*
‘मैं सिख… लाती’
*जुग कोई भी हो
एक सुर से बोल पड़े
सभी प्राणी
दुनिया में कोई चीज जो पानी तो*
(७८)
‘मुझसे हाई… को ?’
*चुन ‘री
कह थी रही
हा !
मैंने ही न मानी कही*
‘मेरे साथ क…वीता’
*त्राहि माम् त्राहि माम्
मोर खिवैय्या !
ओ ‘री चिरैय्या क्या हुआ
पढ़ जो रही दुआ
मैंने तो भेजा था
चुन ‘री
तुमने ही नहीं चुना
तब मैंने समझा
मिल गया तुझे, कोई दूसरा अपना
वैसे अभी समय
ओ सदय हृदय
चुन’री
लाज बचैय्या बेवजह*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*दूसरी शाला की
दूसरी कक्षा में
दाखिले प्रारंभ हो चले थे
पहला कोई विद्यार्थी आया
तो उसका नाम था बाँस
शिक्षा दी गई पहले ही दिन
अपने दुख न देखते हुए
दूसरे को खुश करने में
‘जी जाँ’ एक कर देना
झुरमुट में
एक साथ मिलकर रहना तो
माँ के पेट से ही
सीख कर आया था वह
बाँस अब निकल पड़ा आज का पाठ
कण्ठस्थ ही नहीं
चरितार्थ करने के लिए
एक पर्वतारोही थोड़ा चढ़ रहा था
फिर नीचे आ जाता था
तब बाँस ने अपनी खुशी
एक तरफ रख करके
घिसना स्वीकार कर लिया
अब पर्वतारोही
पर्वत राही न रहा
शिखर पर पहुँच चला है
परन्तु बाँस घिसकर
नीचे से रेशा-रेशा हो चला था *
‘मैं सिख… लाती’
*अपने लिए तो सभी जीते हैं
औरों की खातिर जीने वाले ही
एक दृग् तीते हैं*
(७९)
‘मुझसे हाई… को ?’
*वस्त्र दर्पन,
दे बता मन
स्याही
‘कितना’
शाही*
‘मेरे साथ क…वीता’
*ऐसा वैसा नहीं कपड़ा
‘क’ कखहरा पढ़ा
वो भी, मदर्से
दूसरे दर्जे
तभी
बज पड़ा नाम
ब्रज गली-कूचे ग्राम
क…पढ़ा कपड़ा
न सिर्फ आगे हिन्दी ही
पीछे न इंग्लिश भी
कहता शब्द
एड्रेस
ए… ड्रेस
अरी रुक, बनने से पहले अप-टू-डेट
कहीं नजर
खुद-की न करने लगे
खुद से ही हेट*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*शंका समाधान चल रहा था
भगवति श्री गुरु माँ
समाधान दे रहीं थीं
एक बच्ची बोलती है
गुरु माँ
बहिनों के लिए भगिनी क्यों कहते हैं
वैसे प्रचलन में
यह शब्द ज्यादा नहीं आता है
तो क्या किसी विशेष व्यक्तित्व का
धनी ही हो सकता है भगिनी ?
गुरु माँ बोलतीं हैं
भ…. गिनी जा
उन्हें भगिनी कहते हैं
यानि ‘कि
भ सहित है जो
सो एक नया शब्द बना सभा
मतलब भा सहित
सो जो सभ्य हैं
अपने तन के लिए नख शिख
ढ़क करके रखते हैं
अपना पानी बचा कर रखते हैं
वे अँगुलिंयों पे
गिन सकने लायक बहनें
जैसे भगिनी निवेदिता*
‘मैं सिख… लाती’
*मन भी बहुत होता
लक्ष’मन खिंची
रेखा
पार करोगी कितनी
थम भी जाओ मेरी भगिनी*
(८०)
‘मुझसे हाई… को ?’
*ए ! ‘बच्ची’ जरा
ये नजरें, बहुत कुछ लें चुरा*
‘मेरे साथ क…वीता’
*छू आना
आँखों ने भी खूब जाना
और इस कला में
दिमाग शातिर
बड़ा माहिर जमाना
चुन’री बिन्ना
चुनरी बिना
आज मुश्किल बड़ा
लाज बचा पाना
यानि ‘कि
नजरें भी ले जातीं रंग चुरा
ए ! संभल जरा*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बुलऊआ होता है
जिसका बड़ा प्यारा
नामकरण किया है बुजुर्गों ने
‘मोचायने का बुलऊआ’
जिसमें घर में जो नई बहू आती है
उससे बूढ़े-बुजुर्ग कहते हैं
मो… चायने
यानि ‘कि
अपना मुंह दिखा दो ज़र्रा बिटिया
तब बहुरानी भी कहती है
वो चायने यानि ‘कि
पहले वजन रखों हाथों में
पर असमंजस की बात तो
यह रहती है कि
चाहिये क्या ?
वो किस चिड़िया का नाम है
यह नहीं बताती है
सुनते हैं
बुजुर्गों के पास लाल होते हैं
गुदड़ी के लाल जो रहते हैं बुजुर्ग
सो
जो जितना करीबी होगा
उतना
कुछ
बहुत कुछ नहीं
सब कुछ बहुरानी के हाथ पे रख देगा
पर हाय !
नया जमाना
बिटिया पहले से ही
मुँह दिखाने तैयार बैठी है
अब ‘वो’ से वंचित रह जाये तो
उसकी अपनी नादानी है
बुजुर्ग तो अपना सब कुछ
देने तैयार बैठे हैं
‘मैं सिख… लाती’
*ज्ञान वृद्ध वैन
अंग-अंग ढ़ाक राखें
अंतरंग ज्ञान वृद्ध जैन
नाक राखें*
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