(६१)
‘मुझसे हाई… को ?’
*’बाहर’ न जाओ
जाओ तो
आ ओढ़नी आओ*
‘मेरे साथ क…वीता’
*छतरी
ऐसी-वैसी नहीं
बतलाती
जुवाँ गुजराती
छै…तरी
‘छै’ यानि ‘कि है
और
‘तरी’ यानि ‘कि तारने वाली
न दिन खाली
रात काली घटाटोप से
धूप-प्रकोप से
तभी गई स्वीकारी
एक मत
चूँकि राखत पत
इसलिए चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*पानी की एक बूँद
बहती बहती आ रही थी
सागर की तरफ,
तभी उसके मन में एक विचार कौंधा
आखिर कब तक
ये तटों का बन्धन कब तक रहेगा
और यही सोचते सोचते
उसकी आँख लग चली
अब सपन हैं
और अपन हैं
मनमानी करने की
पूरी छूट जो मिल जाती है
बढ़ चली पानी की वह बूँद
किनारे फाँदने लगाया जोर उसने
और लो तट के सिर पर आ चढ़ी
पर हा !
मनमानी का सुकून पा ही नहीं पाई थी
कि किनारे लगा पेड़
अपना गला तर करने मचलने लगा
सूरज सुखाने के लिए
तेज किरण रूपी हाथ आगे करने लगा
प्यासी धरती अपनी ओर खींचने लगी
डरकर पानी की बूँद ने
आवाज लगाई
माँ नदिया !
वैसे कोई आश्चर्य वाली बात न थी
माँओ को नींद आती ही कहाँ है
हमेशा अपने बच्चों की चिन्ता
जो सताती रहती है
चिता में लेटने तलक
सो माँ ने लहर रूप हाथ से
उसे आपने में समाहित कर लिया
तभी नींद खुल चली पानी बूँद की
वह सिसकी भर माँ के दामन से जा लिपटी
और बोली माँ
ओ ! मोरी माँ
‘मैं सिख… लाती’
*सोच का ‘स’ सड़क का रहता है
तब तक रास्ता देता है
पर ध्यान रखना
छोट सा भी घेरा ‘श’ शंका का
बना कर शोचनीय दशा पर
ले जाकर खड़े कर देता है*
(६२)
‘मुझसे हाई… को ?’
*काई पाथर पाथर…
डग भर
संभल कर*
‘मेरे साथ क…वीता’
*भली काई
हो कञ्चन पानी
पड़े न आँख गढ़ानी
साफ-साफ दे जाती दिखाई
जो रही कमी तो हमार
न चल रहे हमीं देख-भाल
क्या सिर्फ देखने के लिये
ये भाल
इतना विशाल
उत्तुंग हिम-शिखर
भाई !
चल तो संभल कर*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*रसोई घर में
भोजन बनाने का काम
पूरा हो चुका था
बात गांव की है
जब मिट्टी के घर थे
और चूल्हे पर बनतीं थीं रोटिंयाँ
माँ ने तभी अंगारों पर
पानी छिड़का
तभी घी की डबुलिया में रक्खे घी ने
सार्थक नाम परि
घी की डबुलिया में
पांचों अंगुलिंयाँ दूर
नख शिख डूबी जो रहती है
उस परि के माध्यम से
चूँकि माँ रोटिंयाँ चुपड़ रही थी
अग्नि को बुझाने में बाजी मारने के लिये
यह सोच करके कदम बढ़ाया
कि मैं तो अग्नि परीक्षा
पास करके आया हूँ
पानी से भी ठण्डा हूँ
गर्मी बड़ जाने पर लोग मुझे
सिर पर लगाते हैं
मैं गर्मी के लिए मार देता हूँ
पानी जैसा तरल तो हूँ ही
बस फिर क्या था
निकल चला चार दिवारी फाँद
पर हाय ! डबुलिया से
कदम नीचे सरक ही न पाया था
कि अग्नि जो
पानी से बुझ नहीं पाई भी अच्छे से
फिर से चिन्गारी छोड़ने लगी
घी को जलाने मचलने लगी
तब घी ने आवाज लगाई
माँ जो पास में ही बैठीं हुईं थीं
उन्होंने नीचे खिसकते घी के लिए
अपनी अंगुली से समेट करके
घी की डबुलिया में फिर से पहुँचा दिया
घी ने राहत की साँस ली*
‘मैं सिख… लाती’
*कदम
क… दम
ऐसा सुनकरके
बढ़ा नहीं लेना चाहिए
कदम फूँक फूँक के
बढ़ाने की बात कही गई है*
(६३)
‘मुझसे हाई… को ?’
*माँ दही मिश्री जीत
भा… रत
रश्मो-रिवाज रीत*
‘मेरे साथ क…वीता’
*सीख ‘आई’ दी
भूल जाते हम
अपना कार्ड ‘आई-डी’
परीक्षा देने जाते समय
पर माँ कभी न भूलती
अपने ‘लाड़-के’ के लिये
खिलाना
हाथ-अपने दही मिसरी
ये दुआ पढ़ते हुए
‘के तू खड़े खड़े जमीं पर
अपने पैरों के पंजे उठा भर
आसमाँ छिये
आमीन*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बार
सन्त ग्रहस्थ सभी एकत्रित हुए
आहार शब्द
जो अन्न पान ग्रहण करने के लिए
बोला जाता है
वो सार्थ नाम रखता था
कि आ यदि हार चला है तू
हे शरीर !
तो मेरी शरण ले ले
अब दूसरे से आहार कर लीजिए
ऐसा कहना
कुछ कुछ कर्कश सा जो लगता है
इसलिये सभी ने मिलकर
नया नामकरण करना चाहा
सन्तों ने कहा
हमें कोई एतराज नहीं है
हम तो इस शब्द को उचित समझते हैं
क्षुधा रोग विनाश तभी होगा
जब हम यह सच्चाई स्वीकार करेंगे
इसलिये हार के पहले
इस क्रिया में
यदि हम संलग्न होते हैं
तो हमारा घर छोड़ना व्यर्थ हो चालेगा
सो हमें तो यही नाम ठीक लगता है
यदि आप लोगों को खटकता है
तो आपके लिये नया नाम खोजने में
हम आपकी मदद जरूर कर सकते हैं
ग्रहस्थ-पण्डितों ने कहा
कि हाँ भगवन् !
आप ही कोई मार्ग सुझाईये
तब बड़े गुरु जी बोले
कि देखो
कौए काँव काँव करके
अपने जात भाईंयों को बुलाते हैं
सो बुलाने वाला शब्द भो ! अच्छा है
और चूँकि हम सभी जिन के उपासक हैं
सो शब्द जिन और रख लीजिए
छोटी ‘इ’ की मात्रा
अलग करते ही
जनता-जनार्दन का
जन शब्द और जोड़ लीजिए
अर्थात्
भोजन शब्द सबसे अच्छा रहेगा*
‘मैं सिख… लाती’
*गुरुओं के वचन
बड़ा वजन रखते हैं
ध्यान देना चाहिए उन पर हमें*
(६४)
‘मुझसे हाई… को ?’
*दूजे मदर्से
ना पढ़े या पढ़े
दें बता कपड़े*
‘मेरे साथ क…वीता’
*बड़भागे
कपड़े देवता से दो कदम आगे
देवता क…पड़े ?
रहे बता कपड़े
घाट घाट का पानी पी आये हम
सूरज के सामने
मुख करके तपस्वी कहाये हम
और ज्यादा क्या बनूँ
अपने मुँह मियां मिट्ठू
बोझ बैग पिट्ठू न लादा
देर ज्यादा न तैर,
डूबा साधा*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक मदरसे में
पक्षिंयों के बच्चे पढ़ते थे
एक माँ कागी
अपने बच्चे को प्रवेश दिलाने लाई थी
प्रिंसीपल ने
बच्चे से कुछ पूछा,
बच्चे ने जबाब देते समय
कुछ शब्द खाये
कुछ बतलाये
यानी इतनी जल्दी-जल्दी बात की
‘के मेडम के लिए
कुछ भी समझ में न आया
अब मेडम ने बच्चे कुछ लिखाया
बच्चे ने ‘क’ लिखा ‘फ’
फिर बच्चे ने ‘म’ लिखा ‘प’ दिखा
माँ कागी सब देख रही थी
वह बोली मेम
न जाने क्यों ये इतनी जल्दी-जल्दी
काम करता है
मैंने आपके विद्यालय का
खूब नाम सुना है
आप इसे लायक बना दीजिए
प्रिंसीपल ने
इसे एडमिशन दे दिया
बच्चा भी कुछ परेशान था
‘के मैं कुछ बोलता हूँ
तो दूसरे बच्चे मेरा मजाक उड़ाते हैं
इसलिए उसने मेम की
सारी बात मानी
मेडम ने कहा बेटा
तुम साफ साफ शब्द बोलो
यह थोड़ा सा कठिन है
इसलिए पहले हम
मोती जैसे अक्षर बनाने सीखते हैं
सुनते हैं
कोई व्यक्ति एक काम भी यदि
सलीके से करना सीख ले
तो दूसरे और कामों में भी
सुधार आता है
बस अब बच्चा धीरे-धीरे हाथ को
संभाल करके लिखना सीख चला
अरे यह क्या जादू ?
शब्द भी उसके तोते जैसे मीठे
और स्पष्ट निकलने लगे
माँ कागी और बच्चा
दोनों बहुत खुश थे*
‘मैं सिख… लाती’
*हमारा लिखना
बोलना
ओढ़ना ये सभी क्रियाएं
हमारा परिचय देतीं हैं
कि हम कितने पानी में है
इसलिए हमें
संभल के कदम रखना चाहिए*
(६५)
‘मुझसे हाई… को ?’
*दे घड़ी
रक्खी नहीं छोड़नी
घड़ी-घड़ी ओढ़नी*
‘मेरे साथ क…वीता’
*घड़ी-घड़ी करने योग काम की
याद दिलाने
बुजुर्ग सयाने लोगों ने
नाम ही रख दिया ‘घड़ी’
जो टिक-टिक करके चलती जाती
कहती जाती
टिक-टिक
जो तू मछरिया
तो पानी राख पल पल
यदि तू
अपनी माँ की प्यारी बिटिया
सुन’री
चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*आज एक भालू माँ ने बच्चे दिये
दो बच्चे थे
बड़े ही सुन्दर थे वह
एक बार की बात है
जब समय ठण्डी का था
ये सभी लोग आग जलकर
ताप रहे थे
तभी इनमें से एक बच्चा
आकरके झुलस चला था
बचाते-बचाते भी उसका
आग में सारा शरीर जल गया
डॉक्टर ने उसे बचा तो लिया
लेकिन अब कभी भी
बाल न आ सकेंगे
ऐसा अफसोस के साथ कहा
माँ ने उसे कृत्रिम बालों वाला एक चोला
बनबा दिया
और हिदायत दी
कि बेटा इसे तन से उतारकर
कभी भी बाहर मत निकलना
यह बाल हमारी बहुत रक्षा करते हैं
लेकिन जब देखो तब यह भालू का बच्चा ठण्डी खा चलता था
उसे भारी जो लगता था यह लबादा
माँ बार-बार डाटती रहती थी
पर वह माने तब ना
एक दिन दोनों भाई
जंगल से निकल रहे थे
आज फिर यह भालू का बच्चा
अपना फर वाला कोट
पहिन के जो नहीं निकला था
दूसरे भाई ने कहा भी
कि हम घर से बाहर चल रहे हैं
व्यवस्थित होकर चल
पर वह बोला
तुम जो हो मेरे साथ
मेरे वीर भाई
मेरा कोई
बाल भी बांका न कर पायेगा
दोनों बढ़ते गये
दूर एक पेड़ पर
मधुमक्खिंयों का छत्ता देख
दोनों की जीभ में पानी आ गया
वह चढ़े पेड़ पर
और शहद पीने लगे
तभी मक्खिंयाँ आ गईं
और उन्होनें दोनों भाईयों पर
हमला बोल दिया
चूँकि भालु का भाई
उसे आगे कर भागा
फिर भी मक्खिंयाँ
उसके सारे शरीर में चिपक चली
डंक तीर से चुभ चले
माँ ने बच्चों के घर पर आते ही
डंक निकाले
लेकिन जहर चढ़ जाने से रात भर
उल्टिंयाँ होतीं रहीं
और उसकी माँ रोती रही
‘मैं सिख… लाती’
*बड़ों की बात मानते ही
बड़े-बड़े खतरे
हमारे पास आने से कतराते है
बड़ों की बात मानना चाहिए हमें*
(६६)
‘मुझसे हाई… को ?’
*अब पहरे बत्तीस भी कम
‘री जुवाँ जो तुम*
‘मेरे साथ क…वीता’
*बड़ा प्यारा शब्द है
‘पहरी’
राज खोलता सा
कुछ शब्दों से दोस्ती करके
यूँ बोलता सा
‘के मंजिल पा… हरी जा रही
तुम्हारी ही मनमानी से
तुम्हीं पे तुम्हारी न स्वाभिमानी हँसे
कल
अपना छल
ऐसे ही न
बुढ़ापे बिना ‘जुवाँ’
पहर से ज्यादा पहरी
चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक स्थान पर
गुरु जी अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे
शिष्य आपस में वार्ता निरत थे
‘के देखो वो बच्चा रो रहा है ?
कोई बतला सकता है वह क्यों रो रहा है
एक महन्त बोलते हैं
दाँत निकल रहे होंगे
वह बच्चा तभी रो रहा है
पहले वाले सन्त ने पुनः पूछा
अच्छा बताईये
दाँत रुलाते है
या कोई और ?
महन्त बोलते हैं
जीभ रुलाती है
पहले वाले सन्त ने फिर पूछा
अच्छा अब बताईये
क्यों होता है ऐसा ?
महन्त बोलते हैं
जीभ समझती है
रोने चिल्लाने से
पहरे से छूट चालेगी
और अब जो नये पहरेदार
एक दो नहीं पूरे के पूरे
धीरे-धीरे करके बत्तीस आने वाले हैं
इसलिए घर सिर पर उठाए रख रही है
और अभी तो फिर भी ठीक है
कई जुबान सीख
सार्थक नाम जुबान बन चलेगी
बात बात पर फिसल जो चलेगी
सो पहरे तो चाहिये ही चाहिये
तब उनमे से एक सन्त बोलते हैं
क्या इसके अलावा
कोई दूसरा तरीका नहीं है
तो जब सभी मौन साध लेते हैं
तब बड़े गुरु जी ने कहा
हाँ है
ठहाका ले
हंसे खेले
खुश रहे
तब भी यह पहरे
दाँत और ओठों के
अपने आप ही दूर हो चालेंगे
सभी सन्तों ने कहा एक सुर से
जय जय गुरुदेव*
‘मैं सिख… लाती’
*बिन्दु तक पहुँचने के लिए
रास्ते कम नहीं
कम-से-कम तीन सौ साठ रहते हैं*
(६७)
‘मुझसे हाई… को ?’
*कहे
कह चू चू चिड़िया
चूनर ओढ़ गुड़िया*
‘मेरे साथ क…वीता’
*ऐसे वैसे नहीं
हटके-कुछ, कुछ-जुदा ही
बेजुवाँ भी
पता
गूँ-गुटर-गूँ कहकर
कबूतर कहता
‘ओढ़ चुनर तू’
और आसमाँ छू…आ
कहता चूहा
कहकर ची ची
छोड़ दी, क्यूँ ओढ़नी
छी छी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*आज
सार्थक नाम शंख
जिस किसी ने भी किया हो
उसे हंस बाबा की चौपाल से
पुरस्कृत किया जाना था
सबसे ज्यादा वजनी शंख कौन सा है
उसे मान सम्मान के साथ बुलाकर
स्टेज पर ऐसी चादर उड़ाई जानी थी
जिसमें पूरे आकाश गंगा के सितारे
टकने आने वाले थे
अपनी मर्जी से
न कि जबरदस्ती से
हंस बाबा ने कहा
धन्य हैं यह सज्जन
जिन्होनें चरितार्थ किया
बुजुर्गों के चुने
इस शंख नाम के लिए
के शंख वर्ष जीना भी संभव है,
मगर बड़ा संयम
रखना पड़ा होगा इन्हें
साथ आभार कितना भार
पीछे खींच करके
ले जाना पड़ा होगा इन्हें
खतरा देखते ही
भीतर परकोट में जा
ठहरना पड़ा होगा इन्हें
देर दुबक कर
बैठना पड़ा होगा इन्हें
जहाँ दुनिया
भौतिकता की चकाचौंध में
अपनी जान तक
जोखिम में डालने की परवाह न करते हुए
मौज मस्ती में व्यस्त है
वहाँ मर्यादा में रह करके
अपने घर के भीतर रहना
कितना कठिन होता है
सच भगवान् की उढ़ाई ओढ़नी
इन्होनें इतनी विशाल कर दी है
वह भी वगैर दाग धब्बों के
कि भगवान् स्वयं
अपने होठों के पास लाकर इन्हें
फूँक भरने के लिये लालायित है
धन्य है यह साधक
सार्थक नाम शंख
और तालिंयों की गड़गड़ाहट से
हंस बाबा की चौपाल गूँज उठी*
‘मैं सिख… लाती’
*लोग करते हैं प्रसंशा
करते हैं प्रसंशा लोग
सही रास्ते चले चलिये
और बस थोड़ा सा इन्तजार कीजिए*
(६८)
‘मुझसे हाई… को ?’
*क्यूँ राखना यूँ कदम
होवे कल
‘के आँखे नम*
‘मेरे साथ क…वीता’
*दुमुँही
अद्भुत शब्द कदम
जादुई
कहता उठाते समय गलत
क… दम ?
भाई
इतनी दम कहाँ से आई
और सही कदम उठाते समय कहता
कद…म
ऊँचा इतना कद तो रखती सिर्फ माई
वाह भाई वाह*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बन्दर
पढ़ लिख के आया विदेश से
जूँ से परेशान था वह
उसे पता चला ‘के पसीने
और घने बालों में जूँ होते हैं
उसने गर्मी कुछ ही रही थी
बाल उखाड़ लिये नोच-नोचकर
और राहत की सांस ली,
दश दिन तक तो बाल आये ही नहीं
गर्मी गई
और अब बरसात आई
उसके बाल आने तो लगे
लेकिन दूर दूर आये घने नहीं
बरसा ने अपना रंग दिखाना शुरू किया
अब जो बाल
बरसात और ठण्डी से रक्षा करते थे
वह खूब याद आये
वह सोचता है
भगवन् ने इतने लम्बे बाल कहाँ दिये थे
जितने लम्बे भेड़ के लिए देता है
जिसे गड़रिया निकाल कर
दो पैसे में बेच देता है और
भेड़ को कड़ाके की ठण्ड में
ठिठुरने छोड़ देता है
शूकर जैसे कड़े भी बाल न दिये थे
भगवान् ने मुझे
कि
लोग चन्द सिक्कों की खातिर
अपने सहाई को
दुखों के दलदल में धकेल दें
सहज बाल दिये थे
वानर को नर जैसे बस इतना था
‘के घने थे
हिसाब-किताब से बड़े होते थे
बड़े की नहीं होते रहते थे
कवि कोविदों ने कहाँ
‘कपि मद गले ऐसी ठण्डी पड़ना’
इसका मतलब है
बरसात की ठण्डी और
गुलाबी ठण्डी
कपि के लिए कपकपी न दे पाई
बाद में ठण्डी में
बन्दर ने बन्द मुट्ठी की
और जीत हथियाई
हाँ थोड़े बहुत जुए से परेशान था
तो भाई-वृन्द थे ही
आपसी प्रेम बड़ ही रहा था
एक दूसरे के काम आकरके
लेकिन अब क्या ?
हाथ अफसोस है
‘मैं सिख… लाती’
*आगे पीछे सोच समझकर के
कदम बढ़ाना चाहिए हमें*
(६९)
‘मुझसे हाई… को ?’
*’साथ चुन’री’
एक एक ग्यारा भी
न सिर्फ दो ही*
‘मेरे साथ क…वीता’
*लक’री
नाम न पड़ गया… ऐसे वैसे ही
दिश् दश
फैला जश
किसने नहीं सुना
जिसकी लाठी उसकी भैंस
साथ इसका जिसने चुना
हाथ उसके
ताकत गुणा-लख’री
नाम ही बता रहा
हाँ आ…आ
साथ चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*प्राय: करके
सार्थक नाम रखे जाते हैं
प्रत्येक भाषा में
लेकिन अंग्रेज चिंतक सोचते रहते थे
‘कि लीडर तो सार्थक नाम है
चूँकि लीड लेता रहता है
वही बनाया जाता है नेता
पर वॉस नामकरण क्यों किया गया है
यह बात समझ से परे है
एक बार की बात है
पहुंचे हुए एक पादरी भारत आये
उनके लिए भारतीय लोगों ने
अथिति देवो भव
ऐसा मान कर खूब आदर सम्मान दिया बाग-बगीचे में घुमाते वक्त
जब उन्हें बाँस का झुरमुर बताया गया
‘के यह बाँस है
जब उन्होंने सुना
वॉस तब उन्होंने बुद्धि दौड़ाई
और सोचा राज मिल गया
चूँकि बाँस कभी भी
अकेले नहीं मिलता है लगा हुआ
हमेशा बहुत सारे बाँस
एक साथ लगे हुए मिलते हैं
सो उन्होनें बताया
कि जिन्हें नायक बनना है
उन्हें हमेशा
भले किसी एक के लिए
पर अपने साथ रखना चाहिये
और जितने ज्यादा लोग
हमारे साथ होंगे
उतनी ताकत बढ़ेगी हमारी
सो आ परिणति मोरी
बनती कोशिश साथ चुन’री*
‘मैं सिख… लाती’
*साथ
ज्यादा नहीं
न सही
पर ‘सात’ के बराबर तो है*
(७०)
‘मुझसे हाई… को ?’
*दौड़ती ‘हाइ-वे कार जिन्दड़ी
तो बेल्ट चुन’री*
‘मेरे साथ क…वीता’
*शब्द बेल्ट को
जरा दूर-दूर पढ़ते हैं
तो सार्थक स्वर निकलते
वे… ल… ट…
लट यानि कि
बाल से महीन
मकड़ी के जाल की इतनी महिमा
के सुदूर पद दो
दूर पद चार
पद गुण दो-चार
यानि कि भारी-भरकम
होने के पर भी
तेज गति से भाग-दौड़
सहज जी ले
फिर एक नहीं
वे यानि ‘कि दो लट की तो
बात ही क्या कहना
झट चुन’री बहना*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*बच्चे पतंग उड़ा रहे थे
अपने घर की छत पर जाकरके
लेकिन यह क्या
धागा कभी हवा के जोर से
तो कभी दीवार के किनारों की मार खा
टूट जाता था
बच्चे गाँठ पे गाँठ देते आ रहे थे
पतंग उड़ाने का मजा तो
नहीं कह सकते
आया कि नहीं आया
पर हाँ इतना जरूर कह सकते हैं
कि माजा का क्या महत्व है
यह पता पड़ गया
वहीं से एक दादा जी निकले
उनसे उन्होंने धागा-माजा
कैसे बनता है ऐसा पूछा ?
और सीख लिया नुस्खा
और पतंग उड़ाना बन्द करके
देर तक काँच चढ़ाते रहे बच्चे
चावल का आटा ले आये
गर्म पानी में डाल लुगदी बनाई
उसमें काँच मिलकर
अँगुलिंयों में पट्टी बाँध कर
धागा छत पर ही
यहाँ से वहाँ तक बाँध कर
तैयार कर लिए माजा
अब उड़ा रहे हैं पतंग
और कह रहे बार-बार
दूसरों की पतंग काटकर
‘के काट्टा है
काट्टा है
‘मैं सिख… लाती’
*सुरक्षा बहुत जरूरी है
बार के पहले
धार करना नहीं भूलना चाहिए*
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