(३१)
‘मुझसे हाई… को ?’
*सुनो
नज़र मिला सको
कपड़े ‘कि यूँ पहनो*
‘मेरे साथ क…वीता’
*क्या क्या नहीं आता
नजरों को
लगना आता
किसी से लग जाना आता
टिकना आता
किसी से टकराना आता
‘रहो बच्ची’
इन नजरों से
वैसे, बच न पाये अच्छे-अच्छे
सो गुजारिश
बनती कोशिश
बन सकें दिल के सच्चे
हम बच्चे माफिक
या मालिक !*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बन्दर माँ ने
अपने बगीचे में
बीज डाले
‘कि कल बच्चे के काम आयेंगे पेड़
पर एक बार
माँ देखती क्या है,
एक दिन उसका लाड़ला
हाथों का दुरुपयोग करके
मिट्टी में से खोद खोदकर
वो बीज उगने से पहले
बीच में ही दाँतो के नीचे
कुट्ट करने के लिये
कदम बढ़ा चला
माँ सपने में ही चींख पड़ी
और बोली No… No… No…
आँखें भर आईं थीं उसकीं
आवाज सुनकरके
बगीचे में जो पानी डाल रहा था
वह बेटा दौड़कर
आया और रोती हुई माँ से पूछा
माँ क्या हुआ
तब बेटे के हाथ में
पौधों के लिए पानी देने का पात्र
देखकर के
उसे गले से लगा करके बोली
कुछ नहीं बेटा
एक डरावना सपना देख रही थी
इसलिए चींख पड़ी
फिर बोलती है
बेटा !
अपने बीज कैसे हैं
तब बेटा कहता है
माँ बीज नहीं पौधे बोलो
बस कुछ ही दिन मे
सार्थक नाम विरख
मतलब
वि-विशेष
रख-रक्षा करने वाले
बन चालेंगे यह*
‘मैं सिख… लाती’
*जो हमारी रक्षा करें
उसकी हमें भी
रक्षा करना चाहिए*
(३२)
‘मुझसे हाई… को ?’
*ओढ़नी
यानि ‘कि’ ‘covering’
न ‘कि कबर ‘in’ *
‘मेरे साथ क…वीता’
*मिलावट से झटक हाथ
किया झट से इंग्लिश ने अनुवाद
ओढ़नी यानि ‘कि कवरिंग
सहज समझे वे
अद्भुत लोग विदेश के
जाने हम कब समझेंगे
वैसे बुद्धि तो हमने भी लगाई
हिन्दी कुछ इंग्लिश मिलाई
कबर ‘in’ जी
कब्र के अन्दर
मतलब अकड़
बन लाल बुझक्कड़
ओढ़नी भिजाई
सच
लानत है हम पर
विश्व-गुरु
अपने भारत की हमने नाक कटाई*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*बरफ के मम्मी पापा ने
अपने बच्चे को विद्यालय भेजा
शिक्षक थे ‘सर आईस’
विदेश से पढ़-लिख कर जो आये थे
इसलिए लोगबाग उन्हें
इंग्लिश नाम से जानते थे
मतलब सीधा सीधा सा है
बरफ समाज का ही स्कूल था वह
‘सर आईस’ का
लेक्चर था एक दिन
उन्होंने बतलाया
देखो बरसा हो
गर्मी हो
या सर्दी हो
हमें वगैर कुछ ओढ़े घर से बाहर
नहीं निकलना चाहिये
एक बच्चे ने पूछा सर
सर्दी में तो निकल सकतें है हम
‘सर आईस’ ने कहा
नहीं बेटा, हमारा शरीर
सार्थ नाम बा… रफ है
नख शिख ढ़क करके रखने के बाद भी
पल पल घुलाता ही रहता है
सच,
आ… ई… और सा… करता है
ऐसे ही कुछ शब्द और है
आ… ई… आऊच…
इसलिए बेटा,
फूँक फूँक कर कदम रखना
बस आज इतना ही
जय बरफ
जय भा’रत*
‘मैं सिख… लाती’
*ऐसे वैसे नहीं होते हैं सर
सार छुपा रहता है उनकी बातों में
सिर्फ पते की बात बताते हैं
ऐसा ही नहीं है
पते से भी लगाते हैं*
(३३)
‘मुझसे हाई… को ?’
*चूँकि एड्रेस…
ड्रेस…
अच्छी पहनें
अच्छी बहनें*
‘मेरे साथ क…वीता’
*ऐसा वैसा नहीं
‘कप’ ड़ा चैम्पियन
देखो दुनिया ने खुद लगा रखा
कप ‘ब’ड़ा
चूँकि ‘व’ तो वैकल्पिक सखा
वो भी पढ़ने-लिखने में
न ‘कि सिर्फ खेलने कूँदने में
कखहरा पढ़ा
नाम तभी तो पड़ा
क… पड़ा
मतलब,
कपड़े का माहात्म्य बड़ा
सो गौर तलब
शालीन पहना कपड़ा,
‘के हमारा माहात्म्य बढ़ा
न औरों की ही
‘नजरों में’
अपनी भी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
एक अमरूद का बगीचा था
कुछ गजेड़ी गाजा पीते
और
‘दम मारो दम’ कहा करते थे
एक बार
एक तोताराम
तोतों के झुंड से आकर
इसी पेड़ पर बैठा
इत्तेफ़ाक से
कुछ दिन उसी समय पर
वह तोतों के झुण्ड आता
और वही तोताराम
यहाँ इसी पेड़ पर आकर बैठ चला
और सीख चला
ये अपशब्द
‘दम मारो दम’
इन लोगों को इस तोते का यह कहना
बड़ा प्यारा लगता था
फिर ?
फिर क्या
वे लोग अनार के कुछ दाने खिलाने लगे
तोताराम के लिए
अब तो यह तोताराम
बिना बुलबाये ही
‘दम मारो दम’
बोलने लगा
लोकिन यह क्या
सभी तोतों ने इसे
अपने झुण्ड से निकालने का
निर्णय ले लिया
क्यों ?
क्योंकि
सभी बच्चे
इस जैसी ही आवाज निकाल चले थे
फिर क्या ?
जैसे ही उसने
अपने आपको अकेले देखा
‘के जल्दी ही
अपनी गलती स्वीकार करके
पहले जैसी ही
मीठी बोली बोलने का
प्रण कर लिया
और
हित मित परिमित
बोलने का भी*
‘मैं सिख… लाती’
*सलीका सभ्यता
हर जगह कीमत रखता है
हमें छोड़ा सा अपना लाभ
ना देख करके
ऊँची सोच रखना चाहिये*
(३४)
‘मुझसे हाई… को ?’
*जब तक
‘कि मैं ढ़के
आ राखते चुनरी सखे*
‘मेरे साथ क…वीता’
*जब जब आपस में
मैं टकराया है
चकराया है दिमाग
सुनते हैं,
दिल के पास नादुई चिराग
जर्रा हटके दिमाग से
जर्स सटके दिल से
आ लेते फैसले
और मंजिल से कम कर फासले
लेते जागा
सोया अपना भाग
‘रे जाग
जाग ‘रे…जाग*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक दिन
एक मेढ़क
अपनी माँ से बोला
माँ ! हम लोग कितने डरते हैं
माँ साँपों के लिए
उनकी माँ
अण्डों से बाहर निकलते ही
अपना भोजन बना लेती है,
ऐसी खबर मुझे मेरे दोस्तों से मिली है
मतलब कुछ ज्यादा नहीं हैं अपने दुश्मन
माँ ! हम लोग फिर भी डरते हैं
और अपनी
छलांग लगाने की कला के आगे तो
बड़े-बड़े जानवर भी नहीं लगते हैं,
माँ ! क्यों ना हम
पानी से बाहर निकल कर
अपना सर उठाकर जियें
और अपनी जिन्दगी
उस खुले आसमान के नीचे बितायें,
माँ बोली
बेटा !
हमेशा ध्यान रखो
हमारी आँखें दो हैं
और हमारी ओर लगी आँखें सौ हैं
पानी हमें बचाता है,
पानी से बाहर हम
खतरे को सिर पर उठाकर निकलते है
लेकिन बच्चे की रगों में
गर्म लोहू जो दौड़ रहा था
वह कब मानने वाला था माँ की बात
पानी से बाहर आ निकला
अफसोस माँ आज भी
पलक पावड़े बिछाय
आँखों में पानी लिए इंतजार में बैठी है
पर बच्चा देर क्या
सवेर क्या
हुई अबेर भी
मगर अभी तक नहीं आया,
और शायद अब
कभी नहीं आयेगा *
‘मैं सिख… लाती’
*डरना वरना तो ठीक है
भाई बस
‘मैं… ढ़क’ के रखना चाहिए*
(३५)
‘मुझसे हाई… को ?’
*विरली
चुन’री
पर-हित छार-छार हो चली*
‘मेरे साथ क…वीता’
*किसका मन नहीं कहता है
‘के मैं सरोज कहलाऊँ
चाँद दोज कहलाऊँ
पर वो कोई विरला है
जिये
जो दूसरों के लिये
‘के भले बोझ कहलाऊँ
पर खुशी वह खोज लाऊँ
जिससे
लौं जाते
किसी चिराग को रोशनी मिले*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक दिन
एक भँवरा फूल से बोलता है,
तुम्हारी और काँटे की दोस्ती
जमती सी नहीं है
कहाँ तुम कोमल नाजुक-कमसिन
और कहाँ काँटा पैना नुकीला
जख्मों को देने वाला
तुम्हारे इतने पास जो रहता है
जरूर तुम्हें भी चुभन देता होगा
तुम्हारी जगह में होता तो
कब की दोस्ती तोड़ लेता
बस ये सब बातें,
फूल को सहीं सीं लगीं
हाय राम !
जाने क्यों लोगबाग
खामखा किसी के कानों में
विष उडेल जाते हैं
फिर ?
फिर क्या
फूलों ने काँटों से झगड़ा कर लिया
तब काँटों ने भगवान् से कहा
‘के प्रभो ! आपने हमें
फूलों की रक्षा करने भेजा था
लेकिन फूलों को हमारी जरूरत नहीं है
अब हमें भी
कठोर से नाजुक बना दो
पर अफसोस
अभी तक बच्चों की बस आँख छूतीं थीं
अब उनके हाथ भी आ करके
बेरोकटोक छूने लगे
और ये क्या ?
खुशबू लेते सहलाते
एक दूसरे तक पहुँचा कर
स्नेह प्रगट करते
तो ठीक था
पर इन्होंने तो
फूल की पाँखुड़ी पाँखुड़ी
तोड़नी शुरू कर दी
फूल को बड़ा खेद हुआ*
‘मैं सिख… लाती’
*अपने अपनों से
झगड़ा करना अच्छा नहीं होता*
(३६)
‘मुझसे हाई… को ?’
*चलती बनों फिकर
है उड़ा दी माँ ने चुनर*
‘मेरे साथ क…वीता’
*काली से काली क्यों न हो
माँ के लिए सिर्फ एक बार
तिनके तोड़ना
होता ही होता
नजर का उल्टे पाँव दौड़ना
यम के द्वार
हर चक्रव्यूह का तोड़ रखती है माँ
दूसरे विद्यालय की
दूसरी कक्षा में जो पढ़ रही होती है
ढाई आखर
ज्ञान तलस्पर्शी
अनुभव बेजोड़ रखती है माँ*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*कुछ पत्थरों के बीच की जगह में छुपकर
एक छिपकली
अपनी माँ के साथ रहती थी
आज उसका जन्मदिन है
वह माँ से बोली
माँ !
आज मैं पत्थरों के बीच
न मना करके
खुले आसमान के नीचे
मनाना चाहती हूँ अपना जन्म-दिन
माँ !
मत रोकना मुझे आज
कल से तेरी सब बात मानूँगी
और माँ रोक पाती
‘कि शोर मचाती हुई
घर की चौखट से बाहर निकल
मस्ती में झूमने और नाचने लगी
सुध-बुध जाने कहाँ खो गई,
तभी ताँक लगाये बैठी नागिन
दबे पाँव आकरके,
जाने कब
उसे अपना ग्रास बना के
चल पड़ी
किसी को खबर ही नहीं लगने पाई,
और भी जो बच्चे थे
छिपकली के साथ में
वह थोड़े चौकन्ने थे
जल्दी-जल्दी
अपने छुपने के स्थान में
जा छुपे और सभी ने मिलकरके
एक प्रण किया ‘के हमें अब
अपने घर से बाहर
सिर्फ आग लेने के लिए ही आना है
यानि ‘कि बहुत जरूरी हो
तभी निकलना है
वो भी चौकन्ने रहते हुये*
‘मैं सिख… लाती’
*मस्ती में इतने न खो जाओ
‘कि दुनिया की बस्ती से ही खो जाओ*
(३७)
‘मुझसे हाई… को ?’
*पार
‘चुनरी’ पतवार
न नैय्या ही
खिवैय्या भी*
‘मेरे साथ क…वीता’
*मौत सत्य तो है
पर सुन्दर नहीं
जन्म सुन्दर तो है
पर सत्य नहीं
लेकिन चुनरी
चूँकि लक्ष्मण रेख है
इसलिए सत्य है
प्रथम सीढ़ी हंस विवेक है
इसलिए शिव है
ये, वो दो जहान, एक है
इसलिए सुन्दर भी है
सच
चूनरी
न दूसरी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक छिपकली के बच्चे ने
अपने घर में टँगी
एक फोटो की ओर
इशारा करके कहा
माँ !
ये किसका फोटू है
जिसमें अपने दुश्मन साँप
इन अद्भुत महापुरुष के आगे
केचुए जैसे लग रहे हैं
माँ बोली बेटा !
ये हमारे पूर्वज हैं
बड़े ही संगम के साथ रहते थे यह
चौकन्ने रहने में
इनके आगे कोई नहीं लगता था
यह भी पहले हमारे जैसे ही थे
जन्म के समय छोटे-मोटे
लेकिन बचते-बचते
इतने बड़े हो गये ‘कि अजगर भी
इनके आगे
सिर पर पैर रखकर भागते थे
इन्हें आजकल के लोग
डायनासोर कहते हैं
बच्चा कहता है
माँ !
मैं भी अपनी सुरक्षा करते करते
हमेशा चारों तरफ अपनी नजरें रखकरके
फूँक-फूँक के कदम उठा
संयमित रहकरके
यहाँ तक पहुँच
एक दिन जरूर
अपने दुश्मनों के लिए छकाऊँगा,
‘मैं सिख… लाती’
*बला नहीं
छिपना भी एक कला है*
(३८)
‘मुझसे हाई… को ?’
*कला ‘एक छै’
चाँद पास
चुन’री
खास नेक ‘छै’*
‘मेरे साथ क…वीता’
*कलाधर के साथ साथ
‘चन्द…मा’ के लिये
मृग लांछन भी कहा
स्याही-दामन जो रहा
दामन सुदूर
मन भी चुनरी का पाक है
तभी धाक है
चहुंओर
तलक क्षितिज छोर
धरा विशाल यह गगन
पाताल क्या त्रिभुवन
नयन-मनहर
सच्चा धन चूनर*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक गिरगिट और छिपकली में
गहरी दोस्ती थी
लेकिन एक दिन
छिपकली बोली
मित्र तुम्हारा यह सिर उठाना बार-बार
और कदम आगे बढ़ाना
मुझे कुछ कुछ अच्छा सा नहीं लगता है
बस मैं तो इतना चाहती हूँ
‘के जब तुम मेरे साथ रहो
तो इस अपनी बेहुदा आदत के लिए
अपने घर पर ही
एक कोने में रख कर आया करो
वरना अपनी दोस्ती में
दरार पड़ने में देर नहीं लगेगी
गिरगिट यह जानते हुये भी
‘के यह बला नहीं
हमारे अन्दर
भगवान् की दी हुई
एक अद्भुत कला है
फिर भी वह मान चला
अपने मित्र की बात
पर थोड़ी ही दूर हुई
‘के फुस्कारने की आवाज सुन
दोनों ठिठके,
छिपकली बोली
क्यों ‘भाई गिरगिट
आज से पहले तक तो
साँप के आने की पहले से ही
सूचना देकरके तुमने मुझे
आगाह किया था
पर
यह आज
अपने इतने करीब
कैसे आ चला है
अब
छुपो और बचो इससे
और दोनों बड़ी मुश्किल से
अपनी अपनी जान बचा पाये
आज छिपकली को समझ आया
‘कि गिरगिट
क्यों अपना सिर उठा करके चलता है
यह दूरबीन है इसकी*
‘मैं सिख… लाती’
*बला
चश्मा उतारकर
देखने से कला सी लगती है
कभी नाक का भार
उतारना भी चाहिये हमें*
(३९)
‘मुझसे हाई… को ?’
*वजनदारी रखता है
‘दुपट्टा’
भारी अच्छा है*
‘मेरे साथ क…वीता’
*पेन्सिल ने रबर को भार न माना
माना आभार
तभी सिर पर चढ़ाये रखती है
न सिर्फ पल-पलक
सुबह से साँझ
फिर देर रात तक
कीमत जो बढ़ाती
पेन्सिल की
‘रबर’
ऐसी वैसी भी नहीं
तलक मंजिल ई हमसफ़र
आ भले भारी
पर चुनते चूनर*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक गाय विदेश में पली बड़ी
A. C. में रहती थी
खूब मस्त थी
खूब खाने मिलता था
एक दिन उसके मालिक ने
उसकी पूँछ
चूँकि अब कोई काम की न रह गई थी
तो कटवा दी थी
मख्खी मच्छर जो नहीं थे वहाँ
एक नया ‘लुक’ आ चला
गाय भी खुश थी
कुछ भार सा कम जो हो चला
आज वही गाय विदेश में जो पली बड़ी
A. C. में रही
अपनी जुड़वा बहिन से मिलने
भारत आई है
बहिन के यहाँ A. C. कूलर की कोई भी व्यवस्था नहीं है
पर भा… रत है गाय भारत की
व्यवस्थित है कार्यक्रम उसका
पूँछ जो है ना
मक्खी-मच्छर
आँख उठाकर भी नहीं देख पाते हैं
और मेहमान गाय परेशान है आज
वह मन ही मन सोचती है
क्यों मैं विदेशिंयों के हाथ लग गई हूँ
उन्होंने मेरी पूँछ ही काट करके रख दी है
जो इन दुश्मनों से रक्षा करने के लिए
मुझे भगवान् ने दी थी
पर रात-भर भारत गाय ने अपनी पूँछ से मेहमान गाय की बनती कोशिश
अपनी पूँछ से हवा करते हुए
सुरक्षा रखी
‘अतिथि देवो भव’
भावना से जो ओतप्रोत है वह
सुबह मेहमान गाय
सार्थक गाय का यश गाती हुई
अपने देश वापिस लौट चली*
‘मैं सिख… लाती’
*मानते हैं
कुछ पाने कुछ खोना पड़ता है,
पर सब कुछ खोकर
कुछ पाना कहाँ तक अच्छा है*
(४०)
‘मुझसे हाई… को ?’
*काँटे न कहाँ ? ‘री ओ
जूतिंयाँ पाँवों में डाल ही लो*
‘मेरे साथ क…वीता’
*घुल-मिल फूल
हो चलते माफिक धूल
काँटों की नाप-तौल का अलग काँटा है चुपके-चुपके यह
गद्देदार धूल में जा बैठते छुपके
गन्दे मनसबों से इनका गहरा नाता है
‘के अपना गैर
आये कोई भी नंगे-पैर
चुभन लिये बिन जा न पाये
माँ बचाये
बन सके जैसे
इन काँटों से
हो दुआ कबूल
आमीन…*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक भैंस
हर रोज अपने बच्चे को
नदी पर ले जाती थी,
किनारे पर ही
खूब नहलाती थी
आज किसी काम से
वह बाहर गई है
बेटे को हिदायत देते हुए
‘के आज तालाब पर मत जाना
में कल ले चलूँगी
मगर वह कब मानने वाला था
वह रोने लगा
माँ ने कहा
अच्छा चले जाना
लेकिन किनारे पर ही रहना
ज्यादा दूर नहीं जाना
बच्चा आया
रहा तो किनारे पर ही
लेकिन तालाब के किनारे-किनारे
गोल गोल चलता गया
पर हाय ! यह क्या ?
इसका पैर क्यों नहीं उठ रहा है
लगता है यह मगर का इलाका है
जहाँ शिकार को फाँसने के लिए
दलदल का पहले से ही
बखूबी इंतजाम किया गया है,
अब क्या ?
मगर ने धर दबोचा पाँव उसका
माँ घर पर मिठाई ले कर आई है
है इंतजार बच्चे का,
किन्तु एक अरसा हुआ
इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा*
‘मैं सिख… लाती’
*जगह-जगह लोगबाग
किस्म किस्म केे जाल बिछाये
शिकार की ताँक में बैठे रहते हैं
ये बात हमें
घर से बाहर निकलते ही
याद रखना चाहिए*
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