(११)
‘मुझसे हाई… को ?’
*ओ लाडो,
सूट हैं फूल अगर
तो खुश्बू चूनर*
‘मेरे साथ क…वीता’
*आँख से नाक के भारी दाम
यूँ ही
थोड़े ही
स्वर्ग ने ‘रख लेने दिया
अपना नाम
आँख तो यहाँ वहाँ चलती फिरती
फिरकनी भाँत
साथ
साथी भी नहीं कोई उसका
अपना
सारा काम खुद ही करती रहती
पर नाक की
धाक और ही
हवा धकाती
‘खुशबु नाक तक’
श्वास खींच लाती
यानि ‘कि
बिना खुशबु के खूबसूरत चीजें
कब दिल को छू पातीं हैं
साध्विंयाँ बतलातीं हैं
खुशबु वाला
‘फूल’ निराला
चुन’ री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*सुनते हैं,
थी पक्की दोस्ती
पर एक बार
सूट और चुनरी की दोस्त टूट गई
मौका देख करके
एक रुपए के सिक्के ने कहा
सूट तुम्हारी कीमत
मेरे बराबर भी नहीं है
सूट ने कहा
भाँग-वाँग चढ़ा करके तो
नहीं आ रहे हो
एक रुपए के सिक्के ने कहा
चलो तौल करके देख लेते हैं
“हाथ कंगन को आरसी क्या
और पढ़े लिखे को फारसी क्या”
पर ये क्या ?
सचमुच पलड़ा जिस पर सूट रखा था
वह उठ चला
हल्का साबित हुआ
और एक रुपए के सिक्के का पलड़ा भारी
वही पर एक कपास का पौधा लगा था
उससे सूट ने पूछा माँ
ये क्या हो रहा है ?
मैं एक रुपए से भी हार चला हूँ
तब ‘माँ ने’ कहा
खुदबखुद जो कह रही है
मुझे चुन ‘री
तुम उस चुनरी की बात अनसुनी करके
कहाँ छोड़ के आये हो उसे
तब उसने सिर झुका लिया
लेकिन खुदबखुद चुनरी आ गई
और जैसे ही सूट के साथ जुड़ी
‘के पलड़ा के ऊपर
फिर सिक्के पर सिक्के चढ़ते चले गये,
सिक्के ही नहीं नोट भी
फिर सोना चाँदी
यहाँ तक की कोहिनूर हीरा पर
पलड़े पर दाव खेलने निकल चला
लेकिन पलड़ा था ‘कि
टस से मस भी नहीं हुआ
सूट की आँखें अब गीली थीं*
‘मैं सिख… लाती’
*सब कुछ हम ही नहीं होते हैं
दूसरा भी हमारी
कीमत बढ़ा देता है
देखो, एक अंक आगे आते ही
शून्य दहाई का अंक बन जाता हैं*
(१२)
‘मुझसे हाई… को ?’
*नाता ‘तीन छै’ का
चुनरी का
और रावण धी का*
‘मेरे साथ क…वीता’
*वज्रांकित अभिलेख
चुन’री
लक्ष्मण रेख
सति प्रधान
सीता क्या हनुमान
यहाँ तक ‘कि भगवान् राम भी
उलाँघ
उलाहना के सिवाय
कुछ न पाय
सो बनती कोशिश
उलाँघ ना
ओ भाई-बहना !
लक्ष्मण रेख
चुन’री एक*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक मेंढ़क के लिए
कहीं से नागमणी मिल चली,
अब वह पानी में
सर्पों से डर के नहीं छिपता है,
बखूब ही नहीं
खूब घूम सकता है
खुले आसमान के नीचे
वह भी खुल करके
खूब धूम मचा सकता है
चूँकि अब
साँप उससे
सात फिट दूर से जो निकलते हैं
एक रात उस मेंढक ने
एक सपना देखा,
‘के साँपों ने
लम्बी कूद की प्रतियोगिता करवाई है
जिसमें मुझ मेंढ़क ने भी भाग लिया है
और मैं उस नागमणी को
अपने साथ लिये हुए कूँद पड़ा हूँ
पर ज्यादा लम्बा न कूँद पाया हूँ,
फिर दूसरे राउण्ड में
न जाने मेरे मन में क्या आया
मैं उस मणी को
एक तरफ रख करके कूँद चला
हाँ…
नंबर तो पहला आया,
लेकिन मणी छली सर्पों ने चुरा ली
पर अब क्या ? मैं खूब जोर से रोने लगा
और मेरी नींद खुल पड़ी
मैं नागमणी पर ही चूँकि सोया हुआ था,
उसे हाथ से स्पर्श कर के बोला
मैं तुम्हें कभी भी
अपने से दूर नहीं करुँगा
भले छलाँग ज्यादा न भर पाऊँ
तुम्हारे वजनी होने के कारण
पर हम एक अच्छे दोस्त हैं
और हमेशा रहेगें भी*
‘मैं सिख… लाती’
*जब अपनी सुरक्षा की बात आये
तब
कोई भी समझौता नहीं करना चाहिये*
(१३)
‘मुझसे हाई… को ?’
*चुनरी दीवा रतन
परचम तले न तम*
‘मेरे साथ क…वीता’
*डेरा
तले अँधेरा
झुक-झूम
उलगना धूम
बाती-तेल
‘हवा…ले’ खेल
सुन ‘री
ये सब न करीब
रतन दीव
चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*अंधेरे ने ललकारा
दीपक ने कमान संभाली
अंधेरा कहीं भाग गया हो
ऐसा लगा,
और दीपक ने चैन की साँस ली,
‘कि तभी एक अट्टाहस सुनाई पड़ा
पता है
यह अंधेरे की हँसी थी,
वह बोला दीपक
मैं यहाँ हूँ
तुम्हारे ही तले
दीपक अब क्या करे ?
कोई उपाय नहीं सूझ रहा था उसे
तभी कोई सन्त पुरुष
जिन्हें देखते ही
लो
वो अंधेरा नो दो ग्यारह हो चला था,
जाते हुए अंधेरे से दीपक ने पूछा,
क्यों कहा चल दिये
ओ ! सार्थक नाम दीये
तब अंधेरा बोला
उनके हाथ में रत्नदीप जो है,
अब हम पल भी नहीं ठहर पायेंगे,
और सिर पर पैर रख करके भागा वह
दीपक आज बहुत खुश हैं,
चूँकि अब तक जीत करके भी
अंधेरे से हारता आया था
आज किसी से हार करके भी,
जीत का एहसास कर रहा है वह*
‘मैं सिख… लाती’
*जीत-हार
हर पहलू से देखनी चाहिए*
(१४)
‘मुझसे हाई… को ?’
*भार नहीं
‘री चुनरी जैसा
कोई भी यार नहीं*
‘मेरे साथ क…वीता’
*अद्भुत शब्द भारी
‘आ’ तो आप आप आ जाता
सो आ’भारी
चुन ‘री
आभार
‘चुनरी’
मानते ही भार
स्वारथ जीत, भा’रत हार
अब यार
वजनदारी भी कोई चीज
चुनरी अजीज*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बढ़िया चिड़िया थी,
एक दिन एकांत पाकर
मन की लहरों में बह चली,
अपना संतुलन धीरे-धीरे खो बैठी
और सोचने लगी मनमाना,
हाय !
जाने मन के झाँसे में
क्यों आ जाता हैं जमा’ना
चिड़िया ने सोचा…
इन पंखों का भार तो ठीक है,
ये मुझे उड़ने में सहायक बनते हैं
पर ये रोम मेरे किस काम के हैं
कई दफा
दूसरे लोगों से सुनने में आया हैं,
‘कि
चिड़िया शरीर पर काँटे लिये फिरती है
कोई आता जाता है तो,
लहुलुहान हो जाता है
बस एक नई फितूरी
सिर पर सवार हो चली,
अपनी ही चोंच से
उखाड़ फेंके अपने बाल उसने
एक भी फर जब तक तन पर रहा
चैन की साँस नहीं ली उसने
पर ये क्या ?
शाम से ही ठंडी परेशान करने लगी
पत्तिंयों में छुपी,
तो पत्ते नुकीले लगे,
डाली के घर्षण से लहुलुहान हो चली
पर अब क्या रोना हाथ लगा,
सच,
इस मन ने अब तक जितना बन सका
दुनिया को सिर्फ और सिर्फ ठगा*
‘मैं सिख… लाती’
*हर चीज की अपनी अपनी कीमत है
कोई भी किसी से कम नहीं हैं
‘अजीज…
हर चीज’*
(१५)
‘मुझसे हाई… को ?’
*चुनरी धागा
जुड़ते ही
पतंग सौभाग्य जागा*
‘मेरे साथ क…वीता’
*यूँ ही नहीं भाग जागा
कपास
कखहरा ‘पास’
जा तब कहीं बना धागा
यूँ ही नहीं सौभाग्य जागा
चरखा
करने सार्थक नाम ‘राज’ ‘और’
पेट माफिक ‘च’ रखा
जा तब कहीं बना धागा
यूँ ही नहीं अहोभाग जागा
धागा
सु’नि, सा, रे, गा, मा, पा धा… गा
ठिकाने लागा
सुन’री,
सो धागा चुनरी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*परिंदा ‘बया’
मामा-बन्दर को
बरसात के पहले ही
याद दिलाने आ गया
के मामा बर्षा से बचने,
दाँत किटकिटाने से अच्छा है
एक घर बना लो
अबकी दफा
बन्दर ने
उसका घोंसला न तोड़कर,
एक घर की व्यवस्था करने की सोची
बहिन बया
उसकी एक अच्छी मित्र बन गई
उसने मामा-बन्दर को
एक सुन्दर-सी
बड़े-से वृक्ष की कोटर का पता बताया
बन्दर खूब खुश है,
बर्षा आ के चली गई,
मामा बन्दर अपने परिवार के साथ
उसी कोटर में रहते हैं,
ठण्डी से बचाव हो जाता है,
बच्चों को अब गर्मी में
लू भी नहीं लगती है
सच
अकेली पतंग
आकाश कब छू पाई,
धागे से जुड़ते ही नभ से बतियाई
किसे नहीं पता
पन्ने पन्ने तो छपा*
‘मैं सिख… लाती’
*बात पते की हो,
तो ना-नुकर किए बिना
मान लेना चाहिए*
(१६)
‘मुझसे हाई… को ?’
*खरगोश सी न ढ़ाकें
कान आँखें
चुनरी राखें*
‘मेरे साथ क…वीता’
*था हारना ही
हुआ पुकारना तभी,
‘ख’ रगों ‘स’
‘ख’ मतलब शून रगों सा
न सही खून
चाहिये तो, भले बूँद
पानी
मानौ जिन्दगानी
और दो कदम आगे
क’पास धागे
न सिर्फ क… छुआ
छुआ कछु… आ भी
यूँ ही न लगे हाथ कामयाबी*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक जंगल में एक खरगोश था
बड़ा ही सुन्दर था वह
देखते ही मन मोह लेता था
एक बार
एक भेड़िया ने उसे देख लिया
वह भागा
अपनी जान बचा करके
उसने भरसक प्रयास किया
कभी झाड़िंयों में छिपकर
तो कभी दौड़कर
छलांगे भरता हुआ
आगे भागा जा रहा है,
भेड़िया भी पीछा कर रहा है
लगता है
आज हाथ धोकर पीछे पड़ गया है
हार-थक के खरगोश
एक जगह रुक गया
और उसने
बड़े बड़े अपने लम्बे कानों को
अपनी छोटी-छोटी सुन्दर सी
आँखों पर रख लिया
और मन ही मन खूब प्रसन्न हुआ
यह सोचकर ‘कि
दुश्मन उसे नहीं दिखाई दे रहा है
पर अफसोस
उसने खुद की आँखें बन्द की हुई हैं
तभी भेड़िया दबे पाॅंव आता है
और उसे धर दबोचता है
खरगोश
सिर्फ चीख मार कर रह गया
हा ! हहा !*
‘मैं सिख… लाती’
*खतरे नजरअंदाज करने से
अपनी ही हानि होती है
हमें अपना बचाव करने में
कोई कसर नहीं छोड़ी चाहिए*
(१७)
‘मुझसे हाई… को ?’
*रावण आज
प्रतिज्ञाबद्ध ना ‘री
चुन ‘री लाज*
‘मेरे साथ क…वीता’
*विरला
था भला
कल रावण
राम का ‘रा’
अपने नाम में लगाये फिरता था
और फिर लगाये है जो पीछे शब्द वन
‘के सही
और भव में
पर जाऊँगा जरूर वन
इसलिये पीछे
अपने नाम में लगाये रखता था
पर आज
आखर पलटने के लिए आमादा है
कम
रा… व… न…
न… व… रा… (नेवला) ज्यादा है
दिखी ‘नहीं’
ना… गिन
‘के न दिख रही*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*जंगल के दो राजाओं के बीच
लड़ाई छिड़ी
सेनाएँ आमने सामने थीं
पुराने नियमों में
कुछ हेर-फेर किया गया था
और शायद
लोगों की माँग के ऊपर ही
यह बदलाब लाया गया था
२१ वीं सदी जो लग रही थी
पहले के नियम थे, ‘कि
अवला और बच्चों पर
हाथ न उठाया जाये
निहत्थों पर
अस्त्र-शस्त्र न चलाया जाये
और और भी कई नियम थे
उन सब को एक तरफ रख करके
नया नियम घोषित किया गया
‘के जंग में अब
सब कुछ जायज किया जाता है
कोई धर्म नहीं,
कोई कर्म नहीं
यानि ‘कि
जिसकी लाठी
उसी की भैंस होगी
फिर,
फिर क्या ?
लाशों पे लाश बिछ चलीं
किसकीं ?
योद्धाओं कीं नहीं
बच्चों कीं
अवलाओं कीं
बुजुर्गों कीं,
बचे जवां
लेकिन अब करें क्या ?
जवानों ने भी
अपनों की चिता के साथ
अपनी चिता भी तैयार कर ली
यानि’ कि
जंगल उजड़ चला पूरा का पूरा
पाप कर्मों ने आँखें तरेर
जाने कुछ ऐसा घूरा*
‘मैं सिख… लाती’
*बुजुर्गों के बनाए नियम
सम-सामायिक ही नहीं
सार्वभौमिक भी होते हैं
दूरदर्शी जो होते हैं बुजुर्ग*
(१८)
‘मुझसे हाई… को ?’
*कपड़े
बाँस नहीं…
‘के छेद सुर निकल पड़े*
‘मेरे साथ क…वीता’
*काँटा इलेक्ट्रानिक
ई, लेक
यानि ‘कि लाखों में इक
सोने चाँदी का और अलग
जानता ही सारा जग
एयर टाईट
कोई और ने कहा होगा इसे वेट-लाईट
यानि ‘कि हल्का-फुलका
सोने चांदी तोलते वक्त
हवा के साथ मिल रच लेता बखूब
खूब खेल छल का
अमूल ‘री
सोने चाँदी की धूल भी
चुन ‘री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक बार
एक गरीबा नाम के
व्यक्ति के लिए
जमीन की खुदाई के समय
एक सोने का टुकड़ा हाथ लगा
वह पहुँचा उसकी तोल करने के लिए
एक ऐसे काँटे पर,
जहाँ ट्रकों की तुलाई होती थी
उसने वह छोटा सा टुकड़ा रक्खा
और काँटे की तरफ देखने लगा
काँटे वाले ने कहा
इसका कोई वजन ही नहीं
यह क्या उठा लाये हो
फेंको इसे
वैसे मुझे तो पैसे से मतलब है
जितने एक ट्रक की तुलाई के पैसे लगते है
मुझे तो बस उतने पैसे दे दो
सुनते ही
“गरीबी में गीला आटा” नाम कहावत
चरितार्थ हुई
गरीबा पैसे देकर आगे बढ़ा
रास्ते में एक संत पुरुष के दर्शन कर
उनकी शरण में गया
तब उन्होंने चेहरा पढ़ करके कहा
अरे ! माटी माधो
आ मैं चलता हूँ साथ में तेरे,
हम लोग चलकरके इसे
सुनार बाबा के यहाँ तुलाते हैं,
अब तू नाम का गरीबा है,
तेरे पास लक्ष्मी
खुद चलकरके आई है*
‘मैं सिख… लाती’
*एक ही फार्मूला
जगह जगह काम नहीं आता है
काटा तभी नाम पड़ा
काँटा*
(१९)
‘मुझसे हाई… को ?’
*ला कान पास चुन’री
कहे काफी कुछ सुन ‘री*
‘मेरे साथ क…वीता’
*शब्द कान
अक्षरों को कुछ दूर-दूर करके पढ़ते है
तो एक धुनि खड़ी होती आन
‘का ना’
मतलब भले एक, पर आँख तो है
यानि ‘कि नज़र वो भी पारखी रखता
चूँकि राज पा… रक्खे रहता
पेट में आप
माँ पेट में, हम और आप
ले यही आकार
लें जो अवतार
आ, जोड़कर इससे अब तार
कर लें गफलते क्षार-क्षार*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक घना जंगल था
उसमें एक प्रतियोगिता रखी गई,
जिसमें शब्द में ही
यानि’ कि प्रश्न में ही
उत्तर छुपा है
ऐसा खेल खेला जा रहा है
यदि प्रश्न समझ में नहीं आता है
तो प्रतियोगी
लाइफ-लाइन के रूप में अपने घर
जाकरके या अपने मित्रों से
पूछ-ताछ कर सकते हैं
लेकिन इतने जल्दी होकर आना है
मानो
घर अग्नि लेने के लिए गये हुए हो
पहला प्रश्न रखा गया,
‘ओढ़नी’ ?
सारे प्रतियोगी सिर खुजलाने लगे
सभी लाइफ लाइन खरच करके घर गए,
लेकिन कोई भी
सटीक सा उत्तर खोजकर लाने में
समर्थ न रहा
प्रतियोगिता से
बाहर के लोगों से उत्तर चाहा गया
एक कछुआ
जिसने दूसरी ही पाठशाला में
दूसरा ही कखहरा छुआ था
यानि ‘कि
सार्थ नाम क’छुआ ने कहा
मैं अपने कुए तक
ले चलना चाहता हूँ
आप सभी लोगों के लिए
उत्तर वहीं मिल सकता है इसका
सभी ने हाँ कह दिया
फिर ?
फिर क्या,
वह कुए में जाकर बोला
ओढ़नी
आवाज टकराकर आई
‘ओढ़नी’
बस मिल गया ज़बाब
सभी ने एक सुर से तालिंयाँ बजा दीं*
‘मैं सिख… लाती’
*चीजों का शाब्दिक अर्थ भी
बहुत कुछ
राज खोलता है
हमें सुनने का प्रयास करना चाहिये*
(२०)
‘मुझसे हाई… को ?’
*शायद ही आ पाऊँ
भिजाऊँ
चुन ‘री
कहा…
‘मां…ने*
‘मेरे साथ क…वीता’
*बिन्दु शून्य एक भाँत
सो उसकी अलट-पलट के साथ
कहा शब्द मा… नें
भले और की ना
पर करें अनदेखी का
हो कहा जब माँ ने
यूँ ही थोड़ी ही लगा रक्खा पीछे
आत्मा ने
हाँ… महात्मा मे
हाँ… हाँ… परमात्मा ने भी
लगता उसके दर तक भी,
दे आई दस्तक माँ की नेकदिली*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*माँ हिरनिया को
किसी काम से बाहर जाना था
बच्ची हिरनी को
घना जंगल पार करके
स्कूल आज अकेले ही जाना पड़ा,
लेकिन उसकी माँ
घर से निकले वक्त
हिरायत दे कर निकली थी
‘के बेटा
एक बड़ा सा आईना
अपने साथ में लेकरके जाना,
रास्ते में यदि शेर मिले
तो डरना घबराना मत
बस वो तुम्हें देख न पाए,
इस आईना को
उसके सामने कर देना
बच्ची हिरनिया
साहस के साथ बढ़ रही थी
‘के शेर सामने से आता दिखाई दिया
बच्ची ने अपने आगे
उस एक बड़े से शीशे को खड़ा कर लिया
जिसे वह
अपने स्कूल बैग में
फोल्ड करके लाई थी
और वह पीछे दुबक के खड़ी रही
बगैर डरते हुए
अब हुआ यह ‘कि
शेर ने जैसे ही आईने में देखा
अपना ही एक और दूसरा हमशक्ल
तो दहाड़ा
फिर ?
फिर क्या
शीशे वाला शेर भी कम थोड़ी था
कमजोर पड़ करके
असली शेर ने दुम दबाई
और सीधे आ करके
अपनी माँद में पनाह ली
माँ भी उसी रास्ते से लौट रही थी
बच्ची हिरनिया को सुरक्षित पाकरके
बड़ी खुश हुई वह*
‘मैं सिख… लाती’
*बुजुर्गों के अनुभव
सिर्फ इस भव के नहीं होते हैं
कुछ कुछ शब्द ही कहता
अन…भव
सो
अन…भव के भी होते हैं*
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