(१)
‘मुझसे हाई… को ?’
*जीत चुनरी से हमारी
नजर-नजर-काली*
‘मेरे साथ क…वीता’
*नजर
हे मेरे ईश्वर !
जमाने जमाने जो खोटी
थी मैं जब छोटी
रख दी थी आई ने
टिकली काली
मैं हुई क्या बड़ी
अपने पैरों पे हुई क्या खड़ी
सामने आईने
मैंने मिटा ली
माने
बुद्धि खरच
माँ ने
उड़ाई चुनरी दूजा ही सुरक्षा कवच
माँ जानती जादू सच*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक दिन की बात है,
खेल हार जीत का था
मरने मारने का नहीं
दो शेरों के बीच में लड़ाई छिड़ चली,
एक शेर मैदान में
पूरे जोश के साथ उतरा,
शेर बब्बर जो था
दूसरा भी मैदान में आया
उसकी माँ लड़ाई देखने के लिए
उसके साथ में ही आई हुई थी
जैसे ही, ‘माँ ने’
अपने बच्चे को हारते हुए देखा,
‘के तुरंत
भागती-दौड़ती घर पर आई,
और एक ढ़ाल ले जा करके
अपने बच्चे के लिए दे दी
फिर ?
फिर क्या
अपनी माँ का वह बच्चा
सवासेर बन चला,
सामने से शेर प्रहार करता
पूरी ताकत लगा के,
यह ढाल से उसका प्रहार रोक लेता
अब धीरे धीरे
जीतने वाला शेर हारने लगा,
क्यों ?
क्योंकि सारी की सारी
लगाई गई ताकत
बेकार जो जाने लगी थीं,
और माँ का बच्चा कोई प्रहार न करके,
सिर्फ सामने वाला का प्रहार
अपनी ढाल के ऊपर झेल करके,
खेल-खेल में ही
बब्बर शेर को मात दे गया
जीतने के बाद,
उसने जीत का सारा श्रेय माँ को दिया
और कहा माँ
मैं तो इसे भार समझ करके
घर पर यहाँ वहाँ
डाल करके आ गया था
मगर अब मैं,
इसे हमेशा अपने साथ रखूँगा,
जब भी मैदान में उतरूँगा*
‘मैं सिख… लाती’
*कभी जरूरत पड़े,
तो सबसे पहले सलाहकार के रूप में
माँ को चुनना चाहिए*
(२)
‘मुझसे हाई… को ?’
*और-ही जुदा
ओढ़नी ही ओढ़नी
ओढ़नी सदा*
‘मेरे साथ क…वीता’
*उर्दू जुबाँ
आवाज के लिए
‘सदा’ कहके पुकारती
हमें सुनना चाहिये
सदा आवाज-भीतरी
बाहरी आवाज तो
चढ़ायेगी चने के झाड़ पर
या फिर गिरायेगी टाँग खींच कर
हमें चुनना चाहिये
दिल के भी फैसले
दिमाग का चिराग तो
खुद अपनी ही साँस से
उल्टीं साँस ले*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक व्यक्ति,
बंजी करने
गांव गांव जाता था
उसका
कोई सबसे प्यारा मित्र था
तो छाता
चिलचिलाती धूप में
इस छाते की छाहरी
जंगल से आने-जाने में
उसकी मदद करती थी
उसी छाते में
हाट-बाजार पहुँच करके
वह अपनी दुकान जमाकर
बैठ जाता था
और साँझ के समय
उसे अपने काँधे पर रक्खे हुये
अपने घर आ जाता था
एक दिन की बात है
लौटते समय बरसात होने लगी
कुछ-कुछ अंधेरे सा हो चला
जंगल के रास्ते से गुजरते वक्त
उसका सामना एक बाघ से हो गया
कुछ हथियार तो था नहीं
जो कुछ था
बस यही उसका हाथ में
उसका अपना यार
पर वह
बिलकुल नहीं डरा
उसने अपने मित्र छाते को
आगे कर दिया
और जैसे ही शेर ने
छलाँग लगाई
तो उसकी आँख में
छाते की
नुकीली लोहे की डण्डी जा घुसी
शेर ने तुरत पीछे पैर लिए
और सीधे अपनी माँद में
जाकरके चैन की साँस ली
यहाँ पर यह व्यापारी
छाते का शुक्रिया अदा करता है
और सुरक्षित अपने घर पहुँच करके
छाते को भूरी-भूरी प्रशंसा करता है*
‘मैं सिख… लाती’
*कुछ दोस्त, जीवन सूर्य अस्त होने के
पहले कभी नहीं छोड़ना चाहिये*
(३)
‘मुझसे हाई… को ?’
*ओढ़नी ‘पर’
लगते ही
लगता हाथ अम्बर*
‘मेरे साथ क…वीता’
*मानते हैं,
आसमाँ छुवाना हवा को भी आता है,
मगर
‘पंखों से जिनका गहरा नाता है’
उनका
कहना ही क्या ?
सभी हवाएँ भरोसे मन्द कहाँ
और आजकल तो पश्चिमी हवा का
जोर सा चल रहा
कह रही
ले चलने की कहीं
कहीं
ले चल रही
इसलिए
पूरब चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक कपास के बीज का अरमान था,
‘के मुझे आसमान छूना है,
यही मुकाम मन में रख करके,
जा पहुँचा वह धरती माँ की गोद में,
दरार के रास्ते पानी पा
अंकुर फूट पड़े,
बकरी से बच,
नन्हा पौधा बड़ा हुआ,
हवा के थपेड़े खा करके,
आज रुई से भर गया है,
किसान बाबा ने,
रुई चरखे वाले को दी
सूत कात के,
करघे पर ताना-बाना बुन
बुनकर दादा ने निकाल दिया कपड़ा,
केसरिया रंग रँगा दिया रंगरेज चाचू ने,
दुकान पर,
बिकने लगा बजाज दादू की
एक पर्वतारोही ने खरीद लिया,
और अब ले उसे,
लाठी के सहारे चढ़ा पर्वत पर,
पर यह क्या ?
वह हाथ में ले करके
कब तक पहराये,
उसे जमीन पर रख,
वह पर्वतारोही,
कुछ देर थकने के कारण लेट गया,
तभी हवा ने उसे उड़ाकर
कँटीलीं झाड़िंयों में उलझा दिया
जागते ही पर्वतारोही ने
बड़ी सावधानी से,
काँटों से बचा कर निकाला,
तभी लाठी बोलती है ‘कि
मैं अपना जीवन
इसके लिये समर्पित करती हूँ
और लग चली वह सहारा बन करके
फिर ?
फिर क्या
अब झण्डा
गगन से
बेरोक-टोक बातें कर सकता था,
वह बड़ा खुश था,
आसमान छूने का अरमान,
हाथ जो लग चला था
पर यह सब हुआ
लाठी के कारण,
उसने उसे खूब धन्यवाद दिया*
‘मैं सिख… लाती’
*जो मंजिल तक पहुँचाने में
सहायक हों
उन्हें अपना दोस्त बना करके
रखना चाहिये*
(४)
‘मुझसे हाई… को ?’
*साॅट कट का
‘कट’ से वास्ता
चुन’री सीधा रास्ता*
‘मेरे साथ क…वीता’
*जमाना
*गड़रिया जो उखाड़ लेता
तेरे केश ‘री
ए ! भीड़ में चलने वाली भेड़
तू बनायेगी भी तो क्या रास्ता
रास्ते बने हैं
हुये पूरे सपने हैं
चाहिये
पर कोई
केशरी
चुन’री*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक घुन वाला कीड़ा था,
एक मोटी सी लकड़ी को देख करके
वह कहता है,
अरे किसी ने इसमें,
रास्ता नहीं बनाया है अभी तक,
आने जाने में कितना घेर के
आना-जाना पड़ता है,
मैं रास्ते पे रास्ते बना दूँगा
बस फिर क्या ?
दिन रात एक करके जुट गया,
मानो धुन ही सवार हो गई हो
पर हाय राम !
हम एक पहलू के लिये क्या पकड़ते है,
दूसरा पहलू पकड़ने से रह जाता है
चूँकि लकड़ी गोल रहती है,
इसलिए बन चले रास्ते,
रास्तों में एक रास्ता
कोल्हू के बैल वाला भी रहता है
एक दिन लग चला
उस घुन के कीड़े के हाथ में,
सुबह से साँझ होने को आई थी,
पर मंज़िल दूर-दूर तक कहीं भी,
न दी दिखाई
फिर ?
फिर क्या
दौड़-दौड़ कर
घुन के कीड़े ने दम तोड दी*
‘मैं सिख… लाती’
*पुराने रास्तों से तो रहता है
मंज़िल का वास्ता,
नये रास्तों से कितना है
कौन कह सकता है
सच
‘फरिश्ता
पुराना रस्ता’*
(५)
‘मुझसे हाई… को ?’
*महॅंगी दूध से मलाई
ओढ़नी
अपने घाॅंई*
‘मेरे साथ क…वीता’
*इतना भी
आसान नहीं
‘ओढ़नी’
पाउडर का दूध
ऐड़ी-चोटी का भी लगाकर जोर
न पाया ओढ़
हा ! माया होड़
निकला मुख से
बस इतना ही
वैसे आसान ही
‘ओढ़नी’
गउ गिर का दूध
ऐ ‘री थोड़ी सा ही लगाकर जोर
होड़ उस-ओर*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*हंस दादा की पंचायत लगी हुई थी,
असली दूध कौन है
आज इसकी पहचान होना थी
जगत् में प्रलचन था,
‘कि जो कुछ तरल सा है,
जिसका रंग सफेद सा है,
वह दूध है
कई लोग’ दूध’ इस नाम से
चूँकि बाप दादाओं के समय से
बजते आए थे
इसलिए सारे के सारे
कतार में
बड़े उत्साह के साथ खड़े हुए थे
आक का दूध
सबसे पहले आकर के कतार में बैठ गया
फिर खिन्नी का दूध
उसके बाद में नारियल का दूध
और सारे के सारे दूध
दाबा कर रहे थे,
‘कि हम ही सही दूध है
बेचारी गाय इन सबसे आगे
क्या कहे ? आकरके
सबसे पीछे चुपचाप बैठ गई
हंस दादा ने कहा
निर्णय सुनाते हुए
‘कि देखो,
सिर्फ सफेद होने से कोई यदि दूध हो
तो मैं भी सफेद हूँ
भाई बगुला भी सफेद हैं
और यदि तरल और सफेद कहो
तो पानी का झाग तरल भी है
और सफेद भी है
पर सुनिये,
दूध तो वह है,
गरम होने बाद
ठण्डे होते होते
जो ऊपर से
ओढ़नी सी परत मलाई की
ओढ़ रखता है
बस इतना सुना ही था
‘कि गाय के दूध के अलावा
सभी का सिर झुक चला*
‘मैं सिख… लाती’
*म’लाई
ओढ़नी
चुन’री*
(६)
‘मुझसे हाई… को ?’
*न अंग्रेज ही
‘एज-एज’ वाले
‘री मन के काले*
‘मेरे साथ क…वीता’
*दिन गुलामी के अच्छे थे
हम दुपट्टे जो साथ रखते थे
‘के जाने कब बाँधनी पड़े कम्मर
आजाद क्या हुये
हमने छोड़ री चुन्नर
चुन’री
आज भी
स्याही नजर-नजर
माना
बदला जमाना भले
क्या हम-तुम बदले
हा ! क्यों हमने छोड दी चुन्नर*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*मानस के तट पर
एक बड़ी प्यारी सुन्दर सी
सुनहरी मछली रहती थी
वह कभी पानी में
ऊपर छलाँग लगाने भी आती
तो आँखें अंग अंग में लगाए
बिना नहीं आती थी
एक दिन एक मछुआरा
वंशी ले करके आया
कुछ दाने साथ में
खिलाने के लिए भी लाया
बोला मछली बिटिया
आ तुझे भूख लग आई होगी,
मैं भोजन लिया आया हूँ
वही पास में हंस बाबा बैठे थे,
उन्होंने रोक दिया
अब गहरे पानी से मछली बाहर आए
इसके लिए बगुला तपस्वी बन करके
ध्यान लगाए बैठा था
कई मछलिंयाँ बोलीं
‘री चल संतों के दर्शन से
जन्मों के पाप कट जाते हैं
चलें हम सभी दर्शन करने के लिए
मछली ने हंस बाबा की तरफ देखा
उन्होंने आँख दिखा दी ।
तभी मगरमच्छ ने
जोरों से रोना प्रारंभ कर दिया
‘के बहिन मीना
बहुत दिन हुए
तुम्हारे दीदार से वंचित हूँ मैं
हंस बाबा रोकते रहे
पर हाय !
मीना ने एक न सुनी
लेकिन यह क्या ?
ऊपर आते ही बगुले का ध्यान
ढोंग निकला
बचती बचती मछुआरे के पास आई
दाने वाली वंशी के
काँटे की पैनी नोक देख कर भागी
पर हाय !
“विनाश काले विपरीत बुद्धि”
न बच पाई
मगरमच्छी आँसू के चक्कर में आ
गंवा दिये उसने
प्राण अपने*
‘मैं सिख… लाती’
*जमाना एक थैले का चट्टा-बट्टा
हा ! जमा…ना*
(७)
‘मुझसे हाई… को ?’
*अब अकेले
ज़माने से लड़,
क्यों छोड़ी चूनर ?*
‘मेरे साथ क…वीता’
*अकेली कहाँ चुनर
चूनर की एक एक डोर
बनी मिल कर बेजोड़
संगठित बन्द मुट्ठी चूनर
सिर्फ मिला इसे भू…वर
‘के चाँद-सितारे टूट अम्बर
टिके
कहीं टके
तो सिर्फ इसके अन्दर
सच पहरेदार जब तक इसकी नजर
न कर पाये चा, ची, चू नर*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*जाने क्या हुआ था आज,
सुबह-सुबह
एक गाय बाजार आई
और कहने लगी
ओ ! बढ़ई दादा,
मेरे सर पर,
मेरे यह सींग है ना जो
काफी बड़े-बड़े हो चले हैं वो,
बहुत भारी से लगते हैं,
ऐसा लगता है,
मानो किसी ने पहाड़ रख दिया हो
मेरे सर पर
मेरे प्यारे बाबा
इन्हें अपने तेज औजार से
तुरत-फुरत काट दो ना
और आपके लिए
जितने भी पैसे चाहिए हों
मुँहमाँगे ले लो
बढ़ई दादा ने समझाया
बेटा,
सींग तुम्हारे बचाव के लिए
भगवान् ने
बड़ी रहमत करके दिए हैं ,
इनके बिना तुम परेशान हो जाओगी
लेकिन हाय !
“विनाश काले विपरीत बुद्धि”
उस गाय ने एक न सुनी
वह कहने लगी,
मैं आपसे ज्ञान लेने नहीं आई हूँ
काम करना तो कीजिए
वरना में दूसरी दुकान देख लेती हूँ
आखिर कार
उसने बढ़ई दादा से
अपने सींग काटवा ही लिए
और एक अनोखी सी
राहत की सांस ली,
पर ये क्या ?
जिनके बाप दादा भी अब तक
दुम दबा के भागते दिखाई देते थे
उनके छोटे छोटे से
पिल्ले भी भौंक रहे हैं
अपनी बड़ी-बड़ी सी
आँखें दिखला कर के
अब गाय पछता रही है,
पर अब क्या
जब चिड़िया चुग गई खेत*
‘मैं सिख… लाती’
*बुजुर्गों के आगे,
अपनी बच्चा बुद्धि
नहीं चलाना चाहिए
‘अनबुझ दिया
बुजुर्ग धिया’ *
(८)
‘मुझसे हाई… को ?’
*ड्रेस कीमती
चुनते ही
चुन’री
वेषकीमती*
‘मेरे साथ क…वीता’
*ऐसा वैसा नहीं
अशेष कीमती
शब्द बेशकीमती
पता
खुदबखुद कहता
‘बेस’ की मति
‘बेस’ मतलब नींव
जिस पर खड़ा होता
कामयाबी का महल
आ करते पहल
‘के जब तक बनते
‘बेशकीमती’
चुनरी चुन रखते*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*बड़ा पुण्य रहा,
बीज पत्थर पर न पड़ करके,
मिट्टी में पड़ा
अंकुर फूटे,
लगा नभ छूने,
पर ये क्या ?
हवा क्षितिज छुड़वाने के लिए मचल पड़ी,
तभी बागवान बाबा आये,
और उन्होंने एक बाँस ला करके
उस नन्हे से पौधे को
सहारा देने के लिए
पहले मिट्टी में थोड़े गहरे में जा करके
लगा दिया,
फिर इस नन्हे से पौधे को
एक रस्सी से बाँध दिया
यह सब देख कर
पौधा कहने लगा
ओ ! मेरे प्यारे बाबा
मुझे किसी का सहारा
और बन्धन नहीं चाहिए,
मैं तो स्वयं ही अपने सहारे
छू लूँगा आसमान
तब दादा कुछ बोल ही पाते,
‘कि
हवा के एक तेज झौंके से
फिर के फारसी सलामी भरने लगा
वह नन्हा सा पौधा,
फिर ?
फिर क्या
उसने ना नुकर किए बिना ही
अपने आपको
माली बाबा के लिए सौप दिया
आज वो नन्हा पौधा
सचमुच आसमान से बातें करता है
और उसका दोस्त मनमानी करके
हवा के हवाले हो के
होले-होले नहीं
आँखें खोले-खोले ही
अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठा*
‘मैं सिख… लाती’
*अपने सिर पर हाथ रख कर,
रास्ते पर बैठने के बजाय,
किसी के काँधे पर बैठ करके
आकाश छूना बुरा नहीं है,
अच्छा है*
(९)
‘मुझसे हाई… को ?’
*बिटिया राख
न सिर्फ चूनरी
ये हमारी नाक*
‘मेरे साथ क…वीता’
*बड़ा प्यारा शहर है रा…ख
आखर पलटते ही
अवतरता सार्थक शब्द
ख…रा
सच
होगी ही होगी खरी
तभी राखने की बात आई
चुन’री
अब यार !
चली आई
मात्र एक नहीं
कई जमाने से
रखती ही होगी कोई न कोई कला
‘के न खरीद सकते होंगे जिसे
खनखन करते चार पैसे*
‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक मूँछ वाला साॅंप था
बड़ी धाक थी उसकी
सो ठीक भी है,
इतने जल्दी थोड़े ही
मूँछें आतीं हैं साँपों की,
और पता हैं,
साँपों का दुश्मन
घर से बाहर ही है
ऐसा ही कहाँ है
घर के भीतर भी दुश्मन बैठा है,
जिस पर कोई
विश्वास ही नहीं कर सकता है,
‘के ये जीवन है या मौत,
हाँ…हाँ
ना’गिन माँ
कौन नहीं जानता है,
और फिर उससे बचने के बाद
मोर, नेवला, बाज
कौन-कौन नहीं,
कोन कोन बैठे दुश्मनों से
बचना पड़ता हैं
तब कहीं मूँछें आतीं हैं साँपों की,
इतने जल्दी थोड़े ही
मूँछें आतीं हैं साँपों की,
कहानी आगे कहती है
‘कि
एक दिन
वह साँप अपने बिल में घुस रहा था,
यह जो बड़ीं-बड़ीं मूँछें थीं,
वह बिल के छेद से बड़ीं पड़तीं थीं,
तो उसने जाकरके
एक पत्थर पर घिस लीं
पर हाय राम !
घिसते ही मूँछें
लहुलुहान हो चला मुख उसका
खूब तेजी से दर्द बढ़ रहा है
फिर भी खुश है वह
‘के काम मन का हुआ
खून पोंछ के
अपने कबीले में जा पहुँचा वह
सभी ने साधारण सा साँप समझा उसे,
किसी ने भी मान सम्मान नहीं दिया
जो लोग आज तक उसे बड़ा ही
बुद्धि जीवी समझ के आगे आगे करते थे
वहीं धका करके उसे
पीछे करने में लगे हुए हैं*
‘मैं सिख… लाती’
*एक सिक्के के दो पहलू होते हैं
एक को देख करके
खोटा या चोखा
कहना अच्छा नहीं होता है*
(१०)
‘मुझसे हाई… को ?’
*जबरदस्त बेरियर
चुनर
झीनी-झीनी भी*
‘मेरे साथ क…वीता’
*कानों से सुना
आँखों से देखा भी है
न सिर्फ अभिलेखा ही है
दो छोड़
‘मोर’
पंख से
भुजंग जिसे खली
डरती वो छिपकली
तभी दिवार-दोर
न सिर्फ सजावट के लिये
बल्कि रुकावट के लिये
पंख मोर
चुन’री*
सुन लीजिए ना, क… हानी ?’
*एक चमरी गाय थी
जंगल के राजा शेर को,
एक बार एक जख्म हो गया
जिस पर बैठकर
मक्खिंयाँ परेशान कर रहीं थीं
शेर को उसी समय
बुखार भी तेजी से आ रहा था
वह कराह भर रहा था
वहीं से यह चमरी निकली
कराह सुन करके,
वह उस शेर के पास गई
अपनी पूँछ से हवा करके,
उसने जख्म भरने तलक
बखूब
शेर की खूब सेवा की
शेर ने
चमरी गाय की तरफ
दोस्ती का हाथ बढ़ाया
और पूछा
बहिन !
तुम खुश तो हो
कोई
दुख तकलीफ हो तो कहो ?
तब उसने कहाँ
जंगली कुत्ते रात भर भोंकते रहते हैं
वह मुझे अच्छे से सोने भी नहीं देते हैं
मैं उनसे डरती रहती हूँ हमेशा
तब शेर ने
गाय को दहाड़ना सिखा दिया
बस,
अब जैसे ही,
जंगली कुत्ते भोंकते के लिये होते
‘के चमरी गाय एक भयानक सी
दहाड़ लगाती
जिसे सुनते ही
जंगली कुत्ते
शेर को आस-पास जानकरके
दुम दबाकर भाग जाते
और अब चमरी गाय चैन की निंदिया भरती
मीठी-मीठी जैसी मिसरी*
‘मैं सिख… लाती’
*दरवाजे पर यदि ताला अटका भी है
तो कई चोरों के लिये तो देखते ही
खटका ही है*
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