=गो ‘पिरिया’=
मधु शाला बिलकुल विपरीत है
मधु यानि ‘कि मधुर लगाये है
और माहुर यानि ‘कि जहर छुपाये है
मैं आपसे
गउशाला की बात कर रहा हूँ,
भागीरथ प्रयास साध्य ‘गौरव’
यहाँ पर सहज साध्य है
अद्भुत शब्द है ‘गो’
माँ शब्द लगाकर
जैसे ही संबोधित करते हैं
नया शब्द बनता है ‘मांगो’ वो मिलेगा
गो धूलि बेला थी
यानि ‘कि साँझ का समय
सहजू जो बचपन से ही
पढ़ने चला गया था
आज घर पे आया,
पापा गोशाला में थे
वहीं चला आया
आते ही सबसे पहले उसने
पापा को सिर्फ चरण स्पर्श न कहा,
झुककर पैर छुये
पापा ने जुगजुग जाओ कहते हुए
उसे गले से लगा लिया
तभी क्या देखता है
धूल उड़ातीं हुईं
गायें एक के पीछे एक
कई चलीं आ रहीं हैं
लेकिन यह क्या ?
बिना लड़े, बिना भिड़े
मां गाये अलग-अलग,
अपनी-अपनी जगह,
जहाँ पर वो बाँधी जातीं हैं
जा पहुंचीं
पापा ने कहा बेटा !
देखो, इन्हें अतिक्रमण करना तो
आता ही नहीं है
दूसरे की जगह से
दूसरों की चीज से
इन्हें कोई सरोकार नहीं है
तभी पापा ‘सानी’ ले आये
जिसे सार्थ नाम जानिये
जिसका कोई सानी
मतलब बराबरी करने वाला न हो
हमारे भोजन जैसे
गैस कुकर की आवश्यकता नहीं
पापा ने बस थोड़ा सा धोन डाला
मोन तो हमें चाहिये पड़ता है
और नोन जैसा
भुरक दिया चुनी चापर
लो तैयार दाना-दाना खिला-खिला
मैं बता दूॅं
यह इतना प्रिय है गायों के लिए
‘कि जिसमें ये रक्खा जाता है
उसको भी
घी के घड़े जैसे ‘पिरिया’ कहते हैं
अब बच्चा क्या देखता है
अपनी अपनी पिटिया चट करने में
गायें लग चलीं
बीच बीच में एक दूसरे के खाज-खुजली
मिटाने आपस में चाटने का काम तो
कर रहीं थीं वे,
लेकिन एक दूसरे की
शान्ति भंग करने के रास्ते
उन्होंने न अपनाये थे,
लगता है जंगल में
सन्तों के आस-पास रहने से
सन्तोष की कुछ हटके छाप
लगी थी उनमें
अब एक और
चमृत्कृत कर देने वाली घटना,
गायों को दुहने का काम चल रहा है
पापा एक एक बछड़े को छोड़ते जाते
क्रमशः और गायें अक्रम से हैं
उन्हें नहीं देखते
‘कि इस गाय को मैंने
दुह लिया या नहीं
यानि ‘कि उन्हें पता है
जिस गाय का बछड़ा है
उसी के पास जाकरके
दुग्धपान करेगा
सो जैसे ही बछड़े का ‘गिरमा’ क्या छूटा
वह अपनी नाम ‘गिर’ माँ
के पास दिखा
क्रमशः सारीं गायें लग चलीं
सच बगैर मदरसे
गैय्या
ढ़ाई आखर खूब पढ़ी भैय्या !
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