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कविता

कविता- सत्य

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सत्य
(१)
आई नहीं ‘कि साँझ
लो फूल धूल में मिला
वैसे यह सफेद झूठ है
कड़वा सच तो यह है
‘के फूल फूलते ही
कुछ धूल हो चला

(२)
कद ओछा मत कीजिये
सत्य बोलना मात्र
सत्य नहीं है
अनित्य आदि बारह भावना
परम सत्य है
कुछ हटके सोचा कीजिये

(३)
यदि आप पूछते ही हैं
‘के सत्य क्या है ?
तो
कृत्य जाते हैं
गोरे-काले हमारे
हमारे साथ
पिंजरा यहीं पर,
पड़ा रह जाता है
रखना गाँठ बाँधकर
यह बात

(४)
सूखकर के
कड़क हुई एक पीली पत्ती ने पूछा
सत्य क्या है ?
हवा ने उसे गिराते हुये कहा
म…र…न
अक्षर पलटाकर के
न…र…म बनी
नई लाल कोंपल ने कहा झूठ
सफेद झूठ
तभी अनुभवी
अधेड़ पेड़ बोला
“उत्पाद-व्यय धौव्य युक्तं सत्”

(५)
छुपाते होंगे
बोलते होंगे लोगबाग गोल-गोल
पर खुदबखुद बोल ही बोल रहे हैं
‘चूरी’
भले कल हो,
पर किस किसके मुहॅं पर रक्खो पारा
‘चूरी’ हो रही पल-पल जो
सत्यम्
पूरी तो झूठ है
कहता पूरी
देता आधी जमाना
सच ! जमा…ना

(६)
साँच को समझ पाने
उसकी तुकबन्दी वाला शब्द
काँच ही ले लो
जिसे आईना भी कहते हैं
और कौन नहीं कहता है
सभी तो यही कहते हैं
‘के आईना झूठ नहीं बोलता है

(७)
हम पर
सबके सब न रीझ चलेंगे
कुछ तो
हमें देखते ही खीझ उठेंगे
और ये खीझने वाले कहाँ तक सही हैं
ये हम आप तो क्या
राम को भी खबर नहीं है

(८)
ज्यादा देर न रहने वाली
आसमां में पतंग
कुछ कुछ पतंग शब्द की बनावट ही
कह रही है
पत+अंग
ज्यादा उड़ लिया हो तो
ओ ! अन्तरंग
हो चालो अन-तरंग

(९)
यूज & थ्रो
झूठ हो सकता है,
कह सकते हैं झूठ के लिये
पर सत्य तो
एवर-ग्लो
evergreen
‘आमीन’

(१०)
सत्य कड़वा रहता है
पिलाने से पहले
मॉं बनना
फिर
फिर क्या ?
दबा देना नाक
‘गला’
गटक लेगा सत्य

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