माया
(१)
स्वयं शब्द ही कह रहा है
मॉं…या मैं
दोनों में से कोई एक रहेगा
अब मर्जी आपकी
मॉं जिसमें सारा संसार
समाया है
वह चाहिए या फिर
माया जिसने हमारा संसार बढ़ाया है
(२)
खुद-ब-खुद कह रहा है
शब्द मायाचार
नम्बर एक क्रोध
नम्बर दो मान
नम्बर तीन माया
नम्बर चार लोभ के लिये
साथ लेकर के
होता है मेरा अवतार
अर्थात् हाथी का पांव माया
जिसमें सभी पाप
सभी कषाय
और जाने क्या-क्या न समाया
(३)
शब्द ही कह रहा है
क…पट
‘क’ मतलब क्या
‘पट’ मतलब कपड़ा
यानि ‘कि कपड़े से क्या ढ़कते हो ?
हहा ! धधकता अंगारा है कपट
और इस लोक-वाक्य पर
अंगूठा न लगा किनका
‘के चोर की दाढ़ी में तिनका
(४)
कोई और नहीं
बे-ईमानी
बेई ‘मानी’ है
मतलब
करेला और नीम चढ़ा
नागिन अरु पंख लगाई
बचना भाई
(५)
जिस तरफ मुख है
उस तरफ पीठ क्या आती है
मतलब
शब्द संरचना पलटी क्या खाती है
छ…ल
ल…छ
लक्ष्य से
अक्ष यानि ‘कि
आंख हो जाती है चार
हहा ! मायाचार
(६)
कितनी ही ठगी कर लो
बगलें ही झॉंकनी पड़ेगीं
बगुले के आगे
बगुले के आगे
थोड़े ही निकल पायेंगे हम
और जब नम्बर पीछे से
ही लगना है
तो ठगने के पीछे क्यूं लगना है
(७)
दीर्घ ‘आ’ की मात्रा खींच करके
स्याही खर्च मत करो
तिरिय चरित्र ज्यादा उचित
कहना तिरिया चरित्र तो मति संकुचित
तिरिय मतलब
टेढ़ा-मेढ़ा चलना
हा ! हहा ! !
तेरा-मेरा करना
(८)
कपट
काठ की हाँडी है
हाँडी तो जाती ही जाती है
अग्नि पे चढ़ाते ही
चीज जो अपनी गाँठ की है
वो भी चली जाती है
(९)
आंख पे
नाक पे
होंठ पे
जुबाँ पे
हाँ ! हाँ ! ! सारे चेहरे पे
मौन प्रतिध्वनि झलकती है
जाने मेरी परिणति
क्यों कर
टोपी इस की
उसके सिर करने मचलती है
(१०)
सख्ती मतलब कठोरता
वह नहीं रखना जीवन में
तब हम जीभ बन पायेंगे
वैसे अभी दिल्ली दूर है
जीव बनने के लिये
‘भ’ के आगे पढ़िए
‘म’…’य’…
हाँ ! हाँ ! ! दोनों अक्षर मिलाकर
बना शब्द माया छोड़िये इसे
अब आगे पढ़िए
‘र’
बिलकुल रोष करना बड़ा दोष है
इसे भी छोड़िये
हाँ ! हाँ ! ! और आगे बढ़िए
‘ल’ फिर बोलिये ‘ल’
हाँ ! हाँ ! ! ला…ला
मतलब लोभ-लालच
इसे भी छोड़िये
बस अब जी के बाद रख लीजिए
आने वाला अक्षर
जी…व
Ok 👌
(११)
वक्त करवट लेता है
मत खिलाईये
किसी को धोखा
धोखा यदि कोई
खिला जाये तो
खा लीजिये
मुफ्त तजरबात देता है
(१२)
ठगा
मैंने उसे
या
मैंने मुझे
जर्रा अपनी
अन्तर्-आत्मा से तो
पूछिये
(१३)
ऊंट है तो पहाड़ है
पहाड़ है तो है आसमान
भाई क्यूं रखना आस-पास मान
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