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कविता

कविता- चिड़िया

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

चिड़िया

1)
माँ चिड़िया
क्या आई हो लेने आग
घौंसले में हो घुसी भी नहीं
‘कि लो, फिर-के रही हो भाग
तन भर बच्चे को
क्या मन-भर खिलाओगी
अद्भुत… अद्भुत… अद्भुत
जो बच्चों को मन-भर न खिलाये
वो माँ ही क्या
‘के मुख बच्चे की जगह
‘रे बस-बस
माँ के मुख से आये

2)
अभी
था बनाया ही
‘कि हवा ने
नीचे गिरा दिया घौंसला
एक मीठी मुस्कान ले
थोड़े से उचका काँधे
फिरके बना लिया घौंसला चिड़िया ने
और कहा हवा से
चल…
फिर…के चल
और देख ले
इसकी मजबूती
‘के… कल ये
मेरे लगते जिगर की
सेज अनूठी

3)
चिड़िया की छोटी सी चोंच है
पर छोटी न सोच है
बच्चे है चार-चार
एक जैसा करती सभी से प्यार
ला…ला के मुँह में डाल रही दाने
काम चोरी न आती
न आते इसे बहाने
भर लाती उतना
बन सकता जितना पानी
यूँ बच्चों के नाम ही सी पूरी जिंदगानी
सबसे बढ़िया
माँ…चिड़िया

4)
एक बात बताऊँ माँ
तुझे अकेला छोड़ के
मैं कभी न जाऊँगा
बोली…
चिड़िया भोली
हाँ…हाँ…
‘पर’ आने को रहते
सभी यही कहते
मुख चूजे
ये अल्फाज गूँजे
क्या मानौ भी
हाँ… मानो भी

5)
कह रही…
टिटहरी
टिक… हरि
टिक… हरि
किरपा तुम्हारी है
आज….
मेरे बच्चों ने
अण्डे की खोल उतारी है
मना रही मैं जशन
पर… मन उठा रहा है प्रशन
अण्डे थे
अब तक ये
थे सँभलते, बिना डण्डे के
अब लगेंगे ‘पर’
मैं कहाँ तक रखूँगी नजर
हाय ! राम कितनी लाचारी है
सो… अब
आगे सँभालने की
तुम्हारी जिम्मेदारी है
वैसे कम ना किरपा तुम्हारी है
सहारे तुम्हारे ही तो दुनिया भर की
माँओं ने बाजी मारी है

6)
चोंच से हलक की दूरी
ज्यादा कहाँ…
पर
पढ़ती रहती दुआ
वह माँ चिड़िया
दाना चोंच में भर रखती दबा
‘के भूखे-प्यासे हैं
वहाँ
उसके नादाँ

7)
दाना लेती कुछेक हो
और देती रहती सेक हो
‘क्या दिया’
नाप-तौल का विवेक खो
और तो और
बच्चों की देख रेख तो
बना पर्याय नाम तुम्हारा
सचमुच तुम दिल नेक हो
माँ चिड़िया
तुम्हें तहे दिल से सलाम हमारा

8)
वाह माँ चिड़िया
हर्र लगी
न फिटकरी
और रंग चोखा
हवा में डोलते
वृक्ष-पर
बना…
अपना घर
नसीब किया बच्चों के लिये
हिंडोलने रूप अद्भुत झूले का
नायाब तोहफा
वाह ! माँ चिड़िया वाह !
पाया तुमने दिमाग अनोखा

9)
तात…मात
चिड़ियाँ जुग ने
सुदूर इतर
दूर बिरादर
देर सहोदर को भी न दिया रुकने
इर्द-गिर्द
घौंसले के
‘के
अण्डे चूजा न बने
चूजा…
अभी
छू… जा न सुने

10)
बनाने से ले-के घौंसला
बच्चों को उड़ने का
थमाने तलक हौंसला
माँ चिड़िया
कभी हाथ खाली न आई
ताना… बाना
तो कभी
पानी… दाना लाई
एक सुर से
कण्ठ-बच्चे हर से
निकला तभी
देखते-ही माँ
‘आई’

11)
आये कहाँ से हो
चूजे तुम कितने भूखे हो
माँ को देखते हो
‘के मुँह बा देते हो
और बलिहारी
अद्भुत माँ तुम्हारी
थकती नहीं, खिलाते खिलाते
आँखों ही आँखों में कहती जाती,
जाते जाते
मुड़-मुड़ के, टकेक वो
बस ठहरो पलेक दो

12)
कंकरीली सेज माँ टिटहरी
अण्डे़ दिये
‘बड् डे’ हुये
हुये भी नहीं
अभी पूरे दो दिन
‘के बच्चे के लगते ‘पर’

और माँ चिड़िया
सेज सुनहरी
अण्डे दिये
‘बड् डे’ हुये
होने को नौ दिन
अभी घर पर ही टिके, लगते जिगर
सच ! सुख सुविधाएँ
सुस्त बनाएँ

13)
क्या ऐसा है ?
बैठी चिड़िया सेक देने के लिये
अण्डे पे
‘के चूजे जाते निकल
हाँ… जाते तो निकल
पर,
चूजे नहीं
सण्डे पे सण्डे
हाँ वन्दे
ऐसा है

14)
थोड़ा पग धरा धरो
ज्यादा मत उड़ा करो
कहा होगा दुनिया ने
ओ !
माँ चिड़िया ने तो
अपना पेट काटकर
लगाये बेटे के ‘पर’
‘के जा
जा के
छू…आ
आसमाँ
मेरे भगवान् !
है मेरी प्रार्थना
रहे हर की
हर के पास माँ
ओम

15)
मिट्टी सा रंग लिये
आड़ मिट्टी में अभी-अभी अण्डे दिये
सुदूर
बहुत दूर अभी…
अजनबी
पर… लगी फाड़ने गला
कहाँ हो तुम…
कहाँ हो तुम…
मादा…
और नर
सात समन्दर पार भी हो, सुन करके
कहता हुआ ‘कि आ जाता
कहाँ हो तुम…
कहाँ हो तुम…
जुग-जुग जुग-टिटहरी जिये

16)
वाह
‘री कुदरत
कद काठी
एक-भाँति
शक्ल सूरत
किसे खिलाया
किसे भुलाया
भले भूल जाये
माँ चिड़िया
पर…
किसी भी जिगर के टुकड़े को
न भूखा सुलाये

17)
फुर्र
हो जाने
‘पर’
लगते जिगर
लगते ही पर
जाने क्यूँ चिड़िया
सेक दे रही बार-बार
सजग पहरी बन, कर रही देख-भाल
कर नज़र-अंदाज जाल
अपनी जान जोखिम में डाल
नजर चुरा
इतर चुरा लाई दाने चार
चोंच में भर लाई अमृत-धार
जाने आसमाँ धरती
माँ का दिल रखती
माने क्यों चिड़िया
फुर्र
हो जाने
‘पर’
लगते जिगर
लगते ही पर

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