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कविता

कविता- पापा

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

पापा

1)
सबसे प्यारे
जग से न्यारे
मेरे पापा

रस्ते काँटे
गोद उठाते
मेरे पापा
सबसे प्यारे
जग से न्यारे
मेरे पापा

जब अम्बर से
पानी बरसे
छाता छाते मेरे पापा

गोट न मारें
बन के हारे
खेल जिताते मेरे पापा

दे दे थपकी
ले ले झपकी
देर सुलाते मेरे पापा

हाथ मिला के
दोल बना के
डोल, झुलाते मेरे पापा

खड़ी चढ़ाई
नीची खाई
पंख लगाते मेरे पापा

उठ पञ्चे पे
रख कंधे पे
गगन छुवाते मेरे पापा

सबसे प्यारे
जग से न्यारे
मेरे पापा

2)
बच्चों के काम के लिये
पापा
रखते है अपनी जेब में
रुमाल
तो… सिर्फ नाम के लिये

3)
पापा ने जेब में हाथ डाले हों
और-कभी खाली निकाले हों
ऐसा देखा न सुना
क्या कहूँ पुनः

4)
एक बार और तो कह देते है
क्यों सर-पे चढ़ा रक्खा है
पापा दोबारा वही कह देते है
जो पहले से कह रक्खा है
फिर थोड़े ही बनेगा चढ़ाते
चढ़ा लेने दो
अभी
लाड़…का मेरा कुछ हल्का है

5)
पापा जब भी घर आये,
लेने आग आये
‘के
बच्चों की जिंदगी में
न लग आग जाये

6)
सबसे पहले जूते का तला,
घिसता पापा का…
सबसे बाद में,
जूते खरीदने से रिश्ता पापा का

7)
चुटकी बजा कर कभी,
सिगरेट का गुल न झराया
‘पापा-ने’
गादी पर अँगुली बजा कर कभी,
गुटखे का तम्बाखू न उड़ाया

‘के बच्चे अभी कच्चे घड़े हैं’

अपनी जुबाँ को कभी,
जायका अपशब्द न चखाया
‘पापा-ने’
अपने हाथों को कभी
छलकता जाम न थमाया

8)
कहा होगा अच्छे-अच्छे खाँ ने
छुट्टे पैसे नहीं है
छुट्टे पैसे कब दिये है
पापा ने
‘लगे हाथ’ जितने पैसे
सब के सब दिए है

9)
क्यों रोकेंगे पापा,
दीक्षा लेने से
दिला साईकल,
बचपन से ही, रहे याद दिला,
तू साँई…कल

10)
न अकेले गया था
मैं
पापा के साथ में
मेले गया था
हर झूले पर, मुझे झुलाया
‘पापा ने’
हर ठेले पर, कुछ न कुछ मुझे दिलाया
वैसे… यह सब जो हो रहा था
उसमें कुछ भी न नया था
सच…
होता ही जुदा-सा
पापा बेटे का नाता

11)
मैं…बैठा था पापा के साथ
दुकान-में
तभी…
ले लो मलाई का बरफ
पड़ी आवाज कान में
खरीद लिया…
पापा ने मलाई का बरफ
खाया मैंने सिरफ
पापा ने पिया
जो मेरे खाने के बाद था गया बच
अद्भुत होते ही पापा… सच

12)
नादाँ था
मैं ज्यादा न कुछ बड़ा था
घुटनों के बल चलता था
ले आये थे पापा साईकल
दुनिया में जो थी सबसे निराली
तीन पहिये-वाली
सपने जोड़ते-जोड़ते छक जाता था सूर
ठेलते ले जाते थे
पापा
‘तलक -दूर’
ठेलते ले आते थे
जब दौड़ते-दौड़ते थक जाता था सूर
बस कोई कह न पाता था
पापा-से
मजदूर

13)
ना कहना,
होगी किसी ने सीखी
मना करना,
होगी बपौती किसी-की
पापा से तो, बस
माँग, करने भर की देर रहती
पापा को दी
धीमी-सी
आवाज भी
गूँज-गूँज के कहती
पा…पा

14)
अपनी थाली का
मीठा नमकीन
मैंने झट से चट कर लिया
‘पलक पाई न झपक’
किसी ने थाली में
मीठा नमकीन
फिर से रख दिया
मैं बैठकर, पापा के साथ में
खा रहा था जो खाना
अब जायज ही है
थोड़ा बहुत पापा को जादू आना

15)
कभी…
स्वप्न में भी
आँखें न दिखाईं
‘पापा नें’
बाहें फैलाईं
मैं जब-जब
दिया-दिखाई
सामने
यहाँ तक ‘कि
स्वप्न में भी
और है जायज ही
अरे ! सिर्फ लड़का ही नहीं
मैं उनका लाड़-का भी

16)
कहा होगा किसी फलाँ ने
कही नहीं जाना
अपना सबसे बढ़िया-घर
‘मा-ने’
पापा ने तो
सबसे नजर बचा के
घर से बाहर लाके
खूब घुमाया चिड़िया घर

17)
सात समंदर पार भी हो
सुन चीख
दौड़े-दौड़े चले आते हैं
‘पापा’
लाड़…के की खातिर
घोड़े तक बनने
सहज तैयार हो जाते हैं

18)
मँगाया चाँद मैंने
अबकी साल गिरह पर
तोहफ़ा
मेरा हूबहू
स्टेचू
ले आये थे पापा
जिस लिखा
मेरे चाँद
I Iove You

19)
भले मैंने
स्कूल से लौटते वक्त
तक न चलाई
यानि ‘कि हो गुमाई,
या फिर
‘सोफनर’ को चढ़ाई
पर पापा ने
पेंसिल मुझे
कभी
करके टुकड़े-टुकड़े
न थमाई

20)
मेरे जूतों पर
‘चेरी’ का पालिश
‘मारा… पापा ने’
अपने जूतों पर
बस….
ब्रश

21)
कभी हाथ न सकोचा
‘पापा ने तो बस’
लगा दिया अँगूठा
जो भी,
हो जैसा भी
मैंने सोचा

22)
आसमान से टूटते तारे को देख
पापा के दिल से दुआ निकलती
सिर्फ एक,
मेरा चाँद दूज
रखना हमेशा महफूज
या खुदा
खुद-आ
आमीन

23)
अभी क्यारियों से दूर कई हाथ
पर हूँ जो पापा के साथ
फूल कुछ हटके
अमूल
खुशबू भिजाते हैं
बेवजह
पापा जो उन्हें
शामो सुबह भिंजाते है
न ऐसे वैसे भर
पढ़-कर मंतर
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दुःख भाग् भवेत्’

24)
किसी ने बेचने के लिये
बाजार में
कोई नई चीज जमा ली
खरीद के,
पापा ने
तुरत-फुरत मेरे हाथों में
थमा दी
पुराना…. नया
न कोई वाकया वो याद
‘के किसी चीज के खातिर
हो करनी पड़ी मुझे
पापा से फरियाद

25)
वैसे न अकेले जाते हैं
पापा जब मेले जाते हैं
खातिर अपनी
आखिर-आखिर भी
न कुछ भी लाते हैं
पर लाड़-के
अपनी लाड़-की
के लिये
क्या कुछ नहीं लाते हैं

26)
नरम-नरम
लाकर दिये
गरमागरम
नीबू नमक घी लगाकर
मैंने खाये भुट्टे जी लगाकर
होंटों पे फेरते हुये जुबान
पापा ने ऐवज में ली सिर्फ
मुझसे मुस्कान
रहे जिसके वो
छक-कर
चखकर भी
हमेशा से भूखे
सच
कुछ हटके
होते ही पापा कुछ अनोखे

27)
अपने लाड़-के को
आतरे-तीसरे
नई बेल्ट दिलाते जाते
दिलाते जाते
दिलाते जाते
पापा
‘इन’ से शर्ट ‘ओपन’ करके
‘अपना’
पुराना वही बेल्ट चलाते जाते
चलाते जाते
चलाते जाते

28)
अपनी बाँहे चढ़ाये रखना चाहते हैं
‘के जाने कब
जिंदगी में जंग छिड़ जाये
‘पापा’
अपने लाड़-के की
अँगुलियाँ भी ढ़कना चाहते हैं
कहीं
जर्रा सा भी,
रंग न उड़ जाये

29)
अपनी हथेली की सेक देकर
बच्चे के हाथ की लकीरें
बड़ी कर देते हैं
पापा
बचपन से ही
बच्चे के हाथ में घड़ी कर देते हैं

30)
नींव के पत्थर पापा
बच्चे प्रश्न उत्तर पापा

बैठा कर काँधे पर
हो खड़े फिर पंजे पर
देते छुवा अम्बर पापा
रात ‘जहाँ’ चन्दर पापा

नींव के पत्थर पापा
बच्चे प्रश्न उत्तर पापा

छोर क्षितिज सफर
धूप ढ़ाये कहर
छाँव घनी तरुवर पापा
जल-मीठे निर्झर पापा

नींव के पत्थर पापा
बच्चे प्रश्न उत्तर पापा

बस मुख से निकला
मन चाहा वह मिला
जादू और मन्तर पापा
सत्य शिव सुन्दर पापा

नींव के पत्थर पापा
बच्चे प्रश्न उत्तर पापा

31)
शहर के ऊँचे से ऊँचे स्कूल में,
लिखा करके मेरा नाम
मुझे स्कूल भेजने खुद आते थे पापा
छोड़ दूसरे जरूरी काम
मैं था रहता जो रोता
मुझे स्कूल से लेने खुद आते थे पापा
मैं उनका लाड़…का जो था

32)
मस्ती
करने पर
मटर-गस्ती
मेरे गाल पर
एक थप्पड़ जमाया
पापा ने
फिर
लगा झिर
आँखों से
अपने हाथों से
तलक देर
सिर्फ और सिर्फ मुझे हेर
सहलाया
फिर कभी हाथ न उठाया
वो दिन है…
‘के आज का दिन
फिर कभी
मैंनें भी
उन्हें न रुलाया

33)
कहीं पर भी,
यहाँ तलक
स्वप्न में भी
दिये नहीं ‘कि
पापा दिखाई
बच्चों की गादी
खुजलाई

34)
बड़ा सा सुराख
अपने रेन कोट का
करके नज़र-अंदाज
मेरे रेनकोट का
छोटा सा सुराख
देखकर
पापा कहते है टोककर
चल
नया दिला देते हैं आज

35)
रोजना…
मेरी दीवाली
पापा भले लेने आग
लौटें घर
पर लौटें
न हाथ खाली

36)
मचलते
लाड़-के को मनाने के लिए
पेन जेब में रखते पापा
कब अपना काम
बनाने के लिए

37)
माँ की आँखें होती होगी झील
पापा की आँखें तो समन्दर होती हैं
जो अन्दर ही अन्दर उमड़ती हैं
कभी किनारे उलाँघती हैं तो तब
होती है बेटी की विदाई जब

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