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कविता

कविता- कन्हैया ! जन्माष्टमी

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

(१)
जन्माष्टमी मतलब
गो सेवा
गो शाला
गो रक्षा
गो पालन
सच ‘माँ गो’ धन

(२)
जन्माष्टमी मतलब
No बूचड़ खाने
No कत्ल घर
No सिलेटर हाऊस
No कसाई मण्डी
सिर्फ और सिर्फ गो अंधी भक्ति

(३)
जन्माष्टमी मतलब
गैय्या दूध
दूध मलाई
मलाई मक्खन
मक्खन घी
छाछ दही

(४)
जन्माष्टमी मतलब
मोर पंख
बाँसुरी बोल
हटके मुस्कान
मटकी मक्खन
ढ़ाई आखर

(५)
जन्माष्टमी मतलब
दया धरम
रहमोकरम
आँख शरम
खाना गम
बनें मर… हम मरहम

(६)
जन्माष्टमी मतलब
रक्षा बहिना
शिक्षा करुणा
क्षमा शरणा
दया सुमरना
प्रसन्न मना

(७)
जन्माष्टमी मतलब
फल की इच्छा बिना करम
दया, क्षमा, करुणा धरम
रखना हया लाजो शरम
माफी दफा सौ, बाद गरम
सहजो-निराकुलता शरण परम

(८)
जन्माष्टमी मतलब
गोपाल, G० चाल
गुलाल, रोली भाल
ढ़ाल, गुम मलाल
धमाल, सुर ताल
कमाल, अन्तरंग बाल

(९)
जन्माष्टमी मतलब
No खून खराबा
No दरिया खूनी
No खून की होली
No पैनें नाखून
No खून नाखून

(१०)
जन्माष्टमी मतलब
गीता सार
मतलब पर-पीड़ा देख दृग् जल धार
मतलब नाक पर,
चश्मे, गुस्से का न भार
मतलब सामने अपना जो,
तो जाना हार
मतलब बिना मतलब का
गाय बछड़े जैसा प्यार

(११)
जन्माष्टमी मतलब
या: श्री सा गो
गिर गो-बर्धन
मतलब गाय गिर गोबर धन
गोविन
मतलब win यानि ‘कि
विजेता बनने के लिये
ज्यादा कुछ नहीं करना है
बस Go यानि ‘कि चल पड़ना है

(१२)
जन्माष्टमी मतलब
मेरी गैय्या
बरगद छैय्या
ध्रुव तरैया
लकड़ी नैय्या
Luck ‘री नैय्या

(१३)
कन्हैया !
कल तुम्हारे समय में
झोपड़ी थी
जो पड़ी थी
ढ़ाई अक्षर प्रेम
आज हमारे समय में
बंगले हैं
जो बगलें झाँकते हैं
दिमाग से सोचते हैं
हैं तो आलीशान
पर दिल छोटे रखते हैं
बस कहते हैं मैय्या
वैतरण तरैय्या
गैय्या

(१४)
क्यूँ कन्हैया !
मैं इस जन्माष्टमी पर
तुम्हें मक्खन न खिलाकर
तुम्हारी गैय्या का
गल कम्बल सहला आऊॅं
गौशाला जाकर
तुम्हारी गैय्या को गले तक
खिला आऊॅं तो चलेगा क्या ?
क्यूँ कन्हैया !

(१५)
कन्हैया !
कल घर घर में गोशाला थी
आज
जहाँ दूर दूर तक एक भी घर नहीं है
वहाँ गोशाला है
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(१६)
कन्हैया !
कल
थरथर काँपती थी
गौ रव से अला बला
आज
गौरव शोर हो चला
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(१७)
कन्हैया !
सिर चढ़ के बोल रहा स्वारथ
पानी बेच रहा भारत
आज
सिन्थेटिक दूध आ गया
घोर कलजुग छा गया
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(१८)
कन्हैया !
आज
मधुशाला गली घर
और अंगुलियों पर नहीं
गिन लो
गौशाला अंगुली पर
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(१९)
कन्हैया !
बहती अब नहीं भारत में नदी
दूध घी दही
पानी भी रीसाइकल आजकल
मतलब वही का वही
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(२०)
कन्हैया !
सार्थ नाम गौरव
आज महाभारत के
पन्नों में तो मिलता है
पर भारत के कुन्नों से
हो चला है नरारत
मचेगी ही मचेगी
महाभारत
हा ! मा ! धिक् ! स्वारथ

(२१)
कन्हैया !
सार्थ नाम ‘सारी’
‘के नख शिख ढ़क चले नारी
नहीं रही अब
सूट आ गया
वो भी बग़ैर चुन्नर
और दुशासन घर-घर

(२२)
कन्हैया !
आँसू की बूँद तो दूर रहे
‘रे गैय्या खून के फब्बारे छूट रहे आज
ओ ! सुन लो ना आवाज

(२३)
कन्हैया !
बछिया तो फिर भी ठीक है
अमृत जो देती है
पर बछड़े कचड़े से भी गये बीते आज
ओ ! सुन लो ना आवाज

(२४)
कन्हैया !
क्यूॅं
आखिर क्यूॅं
नामकरण कर गये हो तुम
भू…सा
भूमि जैसा क्षमाशील
अत्त ढ़ा रही है दुनिया
राख अनाज
अग्नि लगा रही है दुनिया
फिर भी भू…सा चुप्पी साधे
राधे-राधे

(२५)
कन्हैया !
गैय्या का जीवन जो पानी है
उसमें से ‘अ’ की मात्रा
उड़ा दी दुनिया ने आजकल

खाने पीने की चीजें
पनी में डाल कर
ऊपर से गांठ बांध कर
जो फेंक देती है

और जाने अनजाने में
अपने माथे पर लिख
गो-हत्या पाप
अमिट लेख लेती है

(२६)
कन्हैया !
कल पुराने समय में
गैय्या की पूछ-परख भी थी

आज नये जमाने में
सिरफ पूंछ वाला
एक जानवर रह गई गैय्या
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(२७)
कन्हैया !
सुनते हैं
तुम कहते थे
जिसमें देवी देवता करोड़ हैं वो गैय्या
पर आजकल तो
बैठी रोड़ पे मिलती है गैय्या
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(२८)
कन्हैया !
तुमने गैय्या के दूध को
अमृत कहा था
पर आजकल लोगबाग वीगन बन रहे हैं
‘रे कुछ कुछ
ऐसा ही प्रोनाउन सेशन
we वी
Gun गन
जाने क्यों न सुन रहे हैं
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(२९)
कन्हैया !
कल
हृदय हृदय में
माँ गो अंधी भक्ति ज्योत जलती थी
पर आज गोशाला
चन्दे से चलती है
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३०)
कन्हैया !
तुम तो चले गये छोड़ के
पर गैय्या रोती रोती
सिसकती सिसकती
कल चुप हो जाती थी
यह सोच के
‘के तुम्हारा नाम तो
हर रोज कानों में पड़ता है
ग्वाल-बाल जो कहते हैं
लो, ‘हरी’ घास खा लो
पर आजकल तो
घोटाले हो रहे
हहा ! चारा घोटाला
सच, घोर कलजुग आ गया
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३१)
कन्हैया !
कल
गैय्या जो उठती थी
तुम साथ साथ उसके उठ पड़ते थे
गैय्या लो बैठती थी
तुम साथ साथ उसके बैठ चलते थे
पर आजकल तो
जहां गैय्या उठती बैठती है
वहाँ से लोगबाग नजर चुरा के
पतली गली पकड़ते है
जाने
अपने अप-टू-डेट होने पर
कितने अकड़ते हैं
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३२)
कन्हैया !
अब आंखों में पानी नहीं रहा
बात बात पर लाठी उठते हैं
लोगबाग
सच तुम क्या गए
तुम्हारी
गैय्या के तो फूॅंट ही गये भाग
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३३)
कन्हैया !
गुस्से के साथ-साथ
आजकल
नाक पर चश्मे का भी भार है
कह रही जो सरकार है
‘के दु‌धारू नहीं
वो पशु बेकार है
सच, घोर कलजुग आ गया
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३४)
कन्हैया !
तुम्हारी प्यारी गैय्या को बेघर करके
लोगबाग
चाँद पर घर बनाने मचले हैं
जाने… इन पापियों के
फल रहे कौन से पुण्य पिछले है
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३५)
कन्हैया !
तुम क्या गये
गौरव A ग्रेड भी चला गया
आजकल लोगों के हाथों में
फायर-बी-ग्रेड सो
बीड़ी सि-ग्रेड जो
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३६)
कन्हैया !
तुम कल
जिनका माखन चुराते थे
वे गोपियाँ माखन की
मटकी पे मटकी
लुटा देतीं थीं तुम पर
पर आजकल
तेरा-मेरा खूब हवा खा रहा है
हर गली नुक्कड़ पर
कोई न कोई गुम्ठी वाला
यह आवाज लगा रहा है
‘के विष ले ‘री
दुनिया ए ! ‘री
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३७)
कन्हैया !
कल गैय्या
चेन की वंशी बजाती थी
तुम जो बजाते रहते थे वंशी
रहकर के उसके आसपास ही
पर आजकल
सिसक सिसक रो करके
गैय्या बड़ी ही बेचन हो करके
तुम्हारे मंदिर की
घण्टी बजाती रहती है
तुम फिर भी नहीं सुनते हो
क्या अपनी गैय्या से रूठे हो
एक बार
फिर से आओ ना कन्हैया
पलकें बिछाए राह निहारती गैय्या

(३८)
कन्हैया !
तुम गैय्या के माथे पर
मोर मुकुट रखते थे
पर आजकल
गैय्या घोर विकट समस्या से
गुजर रही है
बन्द हो चुके हैं घर दोर-
चौखट ऊँची हो चली है
पोलीथीन गली गली डली है
ओ ! गोबिंद
नाम ही तुम्हारा तो गोपाल है
अपने नाम की कुछ तो रक्खो लाज
ओ ! सुन लो ना आवाज

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