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कविता

कविता- माँ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

और क्या आप बीति सिवा कविता 
कह रही खुद की क…बीता
यानि ‘कि गुजरे क्षणों की झलक
समय की ओट में लुप-छुप
निकल पल पलक कहती रहती
कवि…ता

                                              “माँ”

1)
तकलीफ में बच्चें का
एक रोंआ भी
क्या हुआ
‘के माँ…
हर श्वास के साथ
पड़ती दुआ
भले ले लो
मेरी जान को
पर बख्स दो
इस नन्हीं सी जान को
या खुदा !
सच
देर…..
बगैर बच्चे के
जी ही न सकेगी माँ
ये सोच-के
खुदा
कई दफा
बख्शता बच्चे की जाँ

2)
आया नहीं
बच्चा पेट में
‘के अब भगवान्
लेट भी नहीं सकते
पल-दो पल भी साथ अमनो-चैन
आती…जाती
हिचकिंयों पे हिचकिंयों से
है जो बेचैन
बैठ भी नहीं सकते
पल दो पल भी साथ अमनो-चैन
वैसे थे तलक अब भगवान्…
इस बच्चे की माँ की माँ से परेशान
अविराम,
माँ तुझे प्रणाम

3)
लग न जाये ठण्डी,
‘बच्चे को’
नहला-कर
‘माँ’
अपने आँचल से
पोंछने लगती जल्दी

4)
गई रात आधी
अब तक माँ बैठी है
लोरी सुना, मैंनु सुलाने
रही रात आधी
लो माँ उठ बैठी है
गा प्रभाती, भानु जगाने
जाने, कब सोती है माँ
अनोखी है माँ

5)
दरद,
बच्चे की सहन-शक्ति से बाहर हुआ
‘के माँ,
गाती, गुनगुनाती विरद
हो चली बेहोश
‘के दौड़े-भागे आये चले आशुतोष
कहीं माँ
दे न दे श्राप डरते हैं
कई दफा…
माँ की खातिर
भगवान्
बच्चे को माफ करते हैं.

6)
बच्चे का वजूद होती है
भगवान् हैं, इस बात का सबूत होती है
लानत है…जीते-जागते उस मुँये पर
माँ रह-रह-के अगर खून के बूँद रोती है

माँ का ऐहसान
एक हो तो बता दूँ
मैं तारे कैसे गिना दूँ
सागर के जल-कण
मरुस्थल के रज-कण
मैं सारे कैसे गिना दूँ
मैं तारे कैसे गिना दूँ
वो माँ का थाम अंगुली, साथ चलना
झुलाना, बना कर अपने हाथ पलना
माँ का ऐहसान
एक हो तो बता दूँ
मैं तारे कैसे गिना दूँ
वो माँ का थाम अंगुली, लिखाना हमें
बन कर पीछे की हवा धकाना हमें
माँ का ऐहसान
एक हो तो बता दूँ
मैं तारे कैसे गिना दूँ

7)
खबर ये झूठी है,
माँ बच्चों से रूठी है
माँ चीज ही अनूठी हैं
माँ रूठती तो रूठती तब
लो फिर से कर दी थी, माँ की गोदी-गीली
और पहले थी की गीली, वो न अभी सूखी है
बखूबी याद, माँ को अपनी ड्यूटी है
माँ चीज ही अनूठी है

रूठती तो रूठती तब
रात नींद की थी खराब माँ की रो…के
चोट ली थी लगा भाग, माँ थी रोके
तू जो था शरारती गजब
माँ रूठती तो रूठती तब

खबर ये झूठी है,
माँ बच्चों से रूठी है
माँ चीज-ही अनूठी हैं

8)
बच्चा माँ के लिये प्यारा नहीं
कहना दोबारा नहीं
लगते जिगर है बच्चा
नूरे नजर है बच्चा
बच्चा माँ के लिये क्या क्या नहीं
मंजिल सफर है बच्चा

धक-धक संगीत बच्चा
रातों की नींद बच्चा
बच्चा माँ के लिये क्या क्या नहीं
आशा उम्मीद बच्चा

दूज चाँद पून बच्चा
दिन का सुकून बच्चा
बच्चा माँ के लिये क्या क्या नहीं
जिंदगी जुनून बच्चा

बच्चा माँ के लिये प्यारा नहीं
कहना दोबारा नहीं
लगते जिगर है बच्चा
नूरे नजर है बच्चा
बच्चा माँ के लिये क्या क्या नहीं
मंजिल सफर है बच्चा

9)
हो सामने बैठा
जीमने बेटा
और…
‘पूरी’ फूल जाये
तब…
सुर्खी चेहरे पे
माँ के जो छाये
नायाब है वो
लाजवाब है वो

10)
चलाकर हारती चली जाती है
वो इक माँ है, जो अपने मन को
मारती चली जाती है
फिर…के साँस भरती है
बच्चों के लिये
माँ जीती है और मरती है

मुख निवाला ले अपने बाद में
बच्चे के लिये
खड़ी निवाला ले अपने हाथ में
दरख्तों सी बनती छतरी है
बच्चों के लिये
माँ जीती है और मरती है

11)
रोटी बनाते वक्त
खुद के लिये
छोटी, पूरी-वाली लोई चुन आता
‘वही हाथ-माँ-का’
बेटे के लिये
मोटी, पराठे-वाली लोई चुन लाता
जाने …
मदरसे
ऐसे-कैसे
कक्षा दूसरी में
नाप-तौल सीखा था
माँगने पर…
फल्का आधा
देता …
पौन से भी ज्यादा
अजीबोगरीब… ऐसा
माँ का हाथ है
और इससे भी बढ़-चढ़-के
निराली ही कुछ
माँ की बात है

12)
अंतर् पटल-पर
या ! मालिक
या माँ लिख
हैं दोनों बरोब्बर

13)
हट्टा-कट्टा
मेरे हिस्से का भुट्टा
मुझे दे दिया

थोड़ा-मुट्टा
पापा के हिस्से का भुट्टा
तोड़कर टुकड़ा छोटा सा मुझे दे दिया
मम्मी ने
छोटा-मुट्टा
अपने हिस्से का भुट्टा
तोड़कर टुकड़ा बड़ा सा मुझे दे दिया

और लेने के नाम पर
ले ली मेरी एक मुस्कान भर
जिसकी
और जिसकी रही भूखी
माँ उम्र भर

14)
अपना सब-कुछ
उतार देने के बाद भी
वसीयत का कागज
जब भरने से पूरा रह गया
तब…
माँ की आँखों के
मोतिंयों से न रहा गया
वे टप-टप-टपक
बना जहाँ तलक
भरने पूरा लगे
वसीयत का कागज
‘के न कहीं से अधूरा लगे

15)
करे तो करे कैसे
बच्चा
फिनिस पूरा, टिफिन
आदत जो रहती माँ-को
रखने की
बने जैसे
दिल-से छोटे से टिफिन में
पूरा किचिन

16)
फल्के सेंकते वक्त
यदि फल्का कहीं से फूट जाये
तो माँ
अपने हाथों की अँगुलिंयाँ
रख देती है वहाँ
‘के फल्का फूलने से न कहीं से
छूट जाये
अब यार ! कौन माँ नहीं चाहती
सामने जीमने बैठे
उसके बेटे का पेट
अच्छे-से भर जाये
हाँ…हाँ …
जलता है तो हाथ थोड़ा-बहुत उसका जल जाये

17)
गये…
नये आये बरष
नहीं पाये बरस
पापा
सुन…
अ’जि जाने भी दो
अभी छोटा है
सच…
माँ का-दिल सिर्फ
माँ के पास होता है

18)
मुफ्त महीनों ठहरने
एक अजनबी को
हो दिया आलीशाँ
अपना मकाँ
रहमानों में
मेहरवानों में
जो नाम किसी का
उछलके
होता रूबरू
तो
है वो एक माँ

19)
खिला आईस्क्रीम
हाथों से
अपने
आँचल से
माँ…ने मुँह दिया पोंछ
यह सोच
‘के किसी बहाने से पानी न पा जायें
बच्चा
कहीं सर्दी न रखा जाये

20)
माँ…ने कभी
जीने पर
अकेले न छोड़ा
‘के गिर, न जाये बच्चा,
धड़ाम से, जैसे घोडा
बने जैसे
बहुत थोड़ा
माँ बनके घोड़ा
ले आती बिठा काँधे
तो कभी ले आती
पीठ-पे-उठा
हाथ अपने दोनों पीछे बाँधे

21)
अपने आँचल का
छोर
गर्म पानी मे बोर
कर देती साफ सुथरा
एक बार
बस उघाड़
हाथ-पैर मुखड़ा
वो भी जब वक्त दुपहरी का आ जाये
‘के बच्चा उसका जर्रा सी भी न
ठण्डी खा जाये

22)
अपनी स्वेटर की बाहें
खोल चढ़ा लेती है
और गलती से कोई
स्वेटर की बाहें
उसके बच्चे की चढ़ा दे
तो माँ मोल झगड़ा लेती है

23)
पेड़ के नीचे भी जब,
पानी लगे टकने
आँचल में छुपा,
अपने बच्चे को माँ
ढ़क लेती है बालों अपने

24)
होती ल‌ट्टू
सारी दुनिया, देख अपना फोटू
जाने सारा शहर है
सिर्फ एक माँ की नजर है
जो बन के बाबरी
रही देख वो वाली फोटू
जिसमें कोने से ही भले
पर झाँक रहा हो… उसका बेटू

25)
बच्चे को अपने हाथ से
खीर खिलाती है
फूँँक-फूँक के
वो भी
किनार वाली ‘जी
ओ ! ‘जी !
किनार वाली ही
जो पपड़ी हो चली है सूख के
अखीर में खाती है

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