माँ…गो चालीसा
पर्दे से नहिं पौछा करती,
हाथ कभी भी गौ माता ।
आड़े समय न छोड़ा करती,
साथ कभी भी गौ माता ।।
किस मुँह कह पायेंगे भूली,
अरे ! भले कर ले संध्या,
आते आते करे न हरगिज,
रात कभी भी गौ माता ।।1।।
नहीं पलटती पेज लगाकर,
थूक कभी भी गौ माता ।
नहीं बुझाती दीप श्वास निज,
फूँक कभी भी गौ माता ।।
ओ ! नागिन माता सुन ले,
जठरानल चाहे भस्म करे,
टुकड़े जिगर मिटा, न मिटाती,
भूख कभी भी गौ माता ।।2।।
बारिश में न करें तरबतर,
नैन कभी भी गौ माता ।
कहे दिल दुखाने वाले नहिं,
वैन कभी भी गौ माता ।।
चैन गवा देती हित औरन,
फौरन लुट पिट मिट जाती
पे न स्वयं के लिये दिखी,
बेचैन कभी भी गौ माता ।।3।।
नहीं गिराती खाने चुगली,
लार कभी भी गौ माता ।
करे न हरगिज लक्ष्मण रेखा,
पार कभी भी गौ माता ।।
बाट न जोहे बड़े काम की,
करते छोटे काम चले,
है इतिहास गवाह बनी ना,
भार कभी भी गौ माता ।।4।।
टाँग खींचने का नहीं करती,
काम कभी भी गौ माता ।
करे काम दिन रात न चाहे,
नाम कभी भी गौ माता ।।
फलाँ-फलाँ मैं नाम कहाँ,
मैं रहा आत्मा राम अहा,
सोच यही विसराये शाम न,
राम कभी भी गौ माता ।।5।।
कॉलर उठा गुमान ‘मान’ न,
चखे कभी भी गौ माता ।
मुँह न दूसरों का आशा से,
तके कभी भी गौ माता ।।
भली तरह जाने लुप-छुप जो,
किये काम वे शल्य बनें,
ले माफी, सर पाप बोझ नहीं,
रखे कभी भी गौ माता ।।6।।
नहीं किसी के करे उजागर,
राज कभी भी गौ माता ।
कल की चिंता में खोती नहिं,
आज कभी भी गौ माता ।।
चूनर चाँद सितारे टकती,
टकराती है गली गली,
बन कर गिरी न घर औरों के,
गाज कभी भी गौ माता ।।7।।
बिन पूछे नहिं पत्र किसी का,
पढ़े कभी भी गौ माता ।
नोंचे, रखे न नाखूँ इतने,
बड़े कभी भी गौ माता ।।
जाने मटकी पाप डूबती,
आप आप जब भर चलती,
मनमाने को अपनी बात न,
अड़े कभी भी गौ माता ।।8।।
फिरे उड़ाती छल्ले नहिं,
सिगरेट कभी भी गौ माता ।
भरी न ले जाये करीब गुरु,
स्लेट कभी भी गौ माता ।।
अपना जो देने को वो भी,
खड़ी सहर्ष कमर बाँधे,
नहीं किसी का काटा करती,
पेट कभी भी गौ माता ।।9।।
धरती धरी रहे, न नभ में,
उड़े कभी भी गौ माता ।
गलती अपनी सिर औरन नहिं,
मडे़ कभी भी गौ माता ।।
जितना भी बन सके खामिंयाँ,
ढ़के दूसरों की भरसक,
खोद रखे मुर्दे निकाल न,
गड़े कभी भी गौ माता ।।10।।
लटकी रहे न नलिनी पे बन,
कीर कभी भी गौ माता ।
छोड़े वचनों के विष बुझे न,
तीर कभी भी गौ माता ।।
रखे ज्ञान औषध का भी जो,
अलसुबहो वन राह धरे,
ढ़के न कान, सके नहिं सुन भी,
पीर कभी भी गौ माता ।।11।।
करे नहीं नीलाम किसी की,
साख कभी भी गौ माता ।।
करें नहीं अरमान किसी का,
राख कभी भी गौ माता ।
बारिश का सिर झुका करे,
अभिवादन खूब फबे देखो,
बात बड़ों से करती मिला न,
आँख कभी भी गौ माता ।।12।।
रहे न करने में मजाक,
मशगूल कभी भी गौ माता ।
पुनि पुनि करे न वही दुबारा,
भूल कभी भी गौ माता ।।
ले अंगार न और जलाने,
जाने जलें, स्वयं पहले,
ढ़कने चाँद न फेंका करती,
धूल कभी भी गौ माता ।।13।।
जीभ कटे क्यों ? जीमे करे न,
बात कभी भी गौ माता ।
जीभ चिढ़ाये नहीं दिखाये,
दाँत कभी भी गौ माता ।।
अपना दिखा, ‘कि चारों खाने,
चित हो चाली पहले ही,
जीत न चाहे, क्यों खायेगी,
मात कभी भी गौ माता ।।14।।
मारे चोंच न लख प्रतिद्वंदी,
काँच कभी भी गौ माता ।
बन मदारी न फिरे नचाती,
नाँच कभी भी गौ माता ।।
शक्ति नहीं फिर भी भिड़ जाती,
शेर दरिन्दों से जाके,
टुकड़े जिगर न आने देती,
आँच कभी भी गौ माता ।।15।।
करे न बातचीत अपनों से,
बन्द कभी भी गौ माता ।
छिन न गवाती लेन देन,
आनन्द कभी भी गौ माता ।।
भरसक भर पायेगी जितने,
रंग भरे धरती नभ में,
भरे फिजा में नहीं विषैली,
गंध कभी भी गौ माता ।।16।।
कतरा करे न दाँतो से,
नाखून कभी भी गौ माता ।
करे न सुनो भावनाओं का,
खून कभी भी गौ माता ।।
पाटी बाँधे भले आँख पै,
रखे हाथ लम्बे-लम्बे,
लेती अपने हाथ नहीं,
कानून कभी भी गौ माता ।।17।।
नील झील दृग् करे नहीं,
रक्ताभ कभी भी गौ माता ।
बने न दे रहने ख्वाबों को,
ख्वाब कभी भी गौ माता ।।
जाने दैव देख ले कब हा !
हा ! हा ! तिरछी नजरों से,
सो न उठाये मजबूरी का,
लाभ कभी भी गौ माता ।।18।।
लील न जाये अपने को बन,
मीन कभी भी गौ माता ।
बने न किसी समक्ष झुका दृग्,
दीन कभी भी गौ माता ।।
कौन कहाँ से चला आ रहा ?
जाना कहा ? विचारे बिन,
करे व्यतीत न संध्या अपनी,
तीन कभी भी गौ माता ।।19।।
रखे नहीं आकाश कुसुम,
अभिलाष कभी भी गौ माता ।
बनी फिरे नहिं चलती फिरती,
लाश कभी भी गौ माता ।।
रहे न इतनी दूर आ सके,
पास, के जा फिर दूर सके,
आती इतनी नहीं किसी के,
पास कभी भी गौ माता ।।20।।
बात बात में पकड़ा करे न,
तूल कभी भी गौ माता ।
नहीं किसी से बोले उल-
जलूल कभी भी गौ माता ।।
लिये खड़े सब ‘टोकन’ टोक न,
कहे रखूँ किस मुख पारा,
भूल बताने की सो करे न,
भूल कभी भी गौ माता ।।21।।
नहीं किसी को दिया करे,
बद्दुआ कभी भी गौ माता ।
मन बहलाने भी न खेले,
जुआ कभी भी गौ माता ।।
खूब जानती चिनते जो,
दीवार बढ़े जाते पग-पग,
जाने नीचे और, न खोदे,
कुआ कभी भी गौ माता ।।22।।
करे किसी से तू कहकर नहिं,
बात कभी भी गौ माता ।
छतरी खोले, रोके नहिं,
बरसात कभी भी गौ माता ।।
जाने खूब छोड़ मैदां,
बुजदिल ही भागा करते हैं,
लडे़ वीर बन करे नहीं,
अपघात कभी भी गौ माता ।।23।।
नदी पिये न नीर, पिये न
क्षीर कभी भी गौ माता ।
उलझन न दे बनने टेडी़,
खीर कभी भी गौ माता ।।
खुला जिसे मिल गया पींजरा,
जा अरमाँ-आसमाँ छुआ,
पड़ी न पैर किसी के बन,
जंजीर कभी भी गौ माता ।।24।।
पड़ जाती बन स्वर्ण, न कोसे,
पंक कभी भी गौ माता ।
बना न रखे अधीनस्थों को,
रंक कभी भी गौ माता ।।
वैकल्पिक कर प्रश्न सभी हल,
कहे जाँच कोई भी लो,
लिये न आती आर-पार के,
अंक कभी भी गौ माता ।।25।।
सुने बात दीवार लगा न,
कान कभी भी गौ माता ।
जोखिम में डाले न हरगिज,
जान कभी भी गौ माता ।।
गणना करते समय स्वयं से,
ही है कर शुरुआत रही,
पलक न भूल रही अपनी
पहचान कभी भी गौ माता ।।26।।
पड़ी हाथ हथकड़ी, गई न,
जेल कभी भी गौ माता ।
करे सितार न दूज चाँद का,
मेल कभी भी गौ माता ।।
फूल, पत्तियाँ नहीं तोड़ती,
यूँ ही नहिं खोदे माटी,
करती फिरे न हवा पानी का,
खेल कभी भी गौ माता ।।27।।
खे पतवार लिये, न सलंगर,
नाव कभी भी गौ माता ।
अपने नहीं दिखाती सबको,
घाव कभी भी गौ माता ।।
धक्के खाने मिलें और क्या,
पीने घूँट अश्रु रह-रह,
जाती तभी न शहर, छोड़ के,
गाँव कभी भी गौ माता ।।28।।
नहीं निराशा के मेघों से,
घिरे कभी भी गौ माता ।
टोपी इस सिर उस नहिं करती,
फिरे कभी भी गौ माता ।।
गिरती तो बन बीज भाँति भू,
गुण क्रम से बढ़ सकने को,
अपनी ही नजरों से हन्त ! न,
गिरे कभी भी गौ माता ।।29।।
छोड़ सलीका रही नहीं पल,
पलक कभी भी गौ माता ।
भूले नहीं मिलाना संध्या,
सिलक कभी भी गौ माता ।।
जाने खूब लगी ही रहती,
भूख प्रशंसा की सबको,
भूले माथ न सुमन लगाना,
तिलक कभी भी गौ माता ।।30।।
बात यहाँ की किया करे न,
वहाँ कभी भी गौ माता ।
सिर न भाँत गज धूल उड़ेले,
नहा कभी भी गौ माता ।।
जाने खूब पाप का होता किस,
किस रीत्या बंध हहा !
पकड़े कान न कहे पाप कर,
अहा, कभी भी गौ माता ।।31।।
मुश्किल देख न झाँपे शश से,
नैन कभी भी गौ माता ।
चाँदी समझ उठाती नहिं मुख,
फेन कभी भी गौ माता ।।
भूल रही न ओम तिव्वती ‘हुम’,
मुस्लिम ‘आमीन’ जिसे,
कहते भाई ईसाई,
‘आमेन’ कभी भी गौ माता ।।32।।
मोड़े नदी भाँति बढ़ गये न,
कदम कभी भी गौ माता ।
बात बात में खाती दिखे न,
कसम कभी भी गौ माता ।।
सिर्फ न सुना, गुना भी, शक है,
लाइलाज इक बीमारी,
पाले पोसे सो न सही भी,
बहम कभी भी गौ माता ।।33।।
चुभने वाला रखे नहीं,
अंदाज कभी भी गौ माता ।
चुभने वाले चुने नहीं,
अल्फाज कभी भी गौ माता ।।
प्रतिद्वंद्वी मुख हार दिखाने,
बड़ा तर्क का भार रही,
रखे न चिल्लाने वाली,
आवाज कभी भी गौ माता ।।34।।
हटे निभाने में नहिं पीछे,
फर्ज कभी भी गौ माता ।
हटे चुकाने में नहिं पीछे,
कर्ज कभी भी गौ माता ।।
पढ़ी दूसरे विद्यालय की,
जो दूजी ही कक्षा में,
हटे मिटाने में नहिं पीछे,
मर्ज कभी भी गौ माता ।।35।।
करे न पातर जीमें जिस तिस,
छेद कभी भी गौ माता ।
काल भटोसे बचा रही नहिं,
श्वेद कभी भी गौ माता ।।
यूँ ही दीन दयाल प्रभो ने,
दिया न पेट बड़ा इतना,
बने पचाती, नहीं उगलती,
भेद कभी भी गौ माता ।।36।।
सीधा करे न उल्लू सीमा,
लाँघ कभी भी गौ माता ।
उसे न दे जो बनकर सोया,
बाँग कभी भी गौ माता ।।
रहमत जो बरसाई उसने,
कर सहर्ष स्वीकार रही,
लख याचक को लघुतर, रखे न,
माँग कभी भी गौ माता ।।37।।
इत-उत आ जा करे न जाया,
वक्त कभी भी गौ माता ।
करे न अपनी कूख रक्त,
आरक्त कभी भी गौ माता ।।
गम खाती, पी जाती गुस्सा,
पल पल चाह रही जीना,
मरने से पहले नहिं बनती,
सख्त कभी भी गौ माता ।।38।।
काँटे घड़ी न पलट घुमाती,
मिली कभी भी गौ माता ।
छीन दूसरों की रंगत नहिं,
खिली कभी भी गौ माता ।।
जो संकल्प किया आये,
फिर आँधी या तूफान भले,
अंगद का सा पैर तनिक न,
हिली कभी भी गौ माता ।।39।।
नाम किसी का करे नहीं,
बदनाम कभी भी गौ माता ।
टकराती नहिं सखे ! जाम से,
जाम कभी भी गौ माता ।।
जब-तब मिले छाँव करती सिर,
इस उस किससे अनजाना,
घाम न करती, करे न दिन,
आराम कभी भी गौ माता ।।40।।
=दोहा=
जयतु जयतु जय मात गो,
‘माँ…गो’ जय जयकार ।
सहज निरा’कुल बन सकूँ,
लग पाऊँ भव पार ।।
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