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तीर्थक्षेत्र पूजन

पूजन- सिद्धवर कूट के पार्श्वनाथ भगवान्

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सिद्धवर कूट पूजा
पार्श्व नाथ

मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।
आओ आओ आह्वानन मैं ।
करु, पधारो हृदयाँगन में ।।
मंदिर मैंने यहाँ बनाया ।
कलश स्वर्ण का जहाँ चढ़ाया ।।
लहराते पच-रंग जहाँ पर ।
शिखर और नभ-चुम्ब कहाँ पर ।।
चौखट ऊँची नीचे द्वारे ।
रत्न वेदिका स्वर्ग नजारे ।।
चावल पीले, सीले नयना ।
कर स्वीकार निवेदन लो ‘ना’ ।।
।।स्थापना।।

जल प्रासुक चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
कभी खबरिया ले लो म्हारी ।
बीती जाय उमरिया सारी ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

चन्दन घिस चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
धन्य, हाथ रख कर दो सर को |
उठा नज़रिया लो पल भर को ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

सित अक्षत चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
हुआ खूब वन निर्जन रोना ।
पास चरण इक दे दो कोना ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

फुल्ल-पुष्प चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
मन्द-मन्द मुस्कान भेंट दो ।
छल, प्रपंच, अभिमान मैंट दो ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

घृत व्यंजन चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
रँग दो रंग स्वानुभव परणत ।
कर दो संग शगुन गुण सम्पत् ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

दीवा घी चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
दो आशीष उठा हाथों को ।
कर दो नामे जगरातों को ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

नूप धूप चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
अपनी भेंट छतर-छाया दो ।
मैंट मूठ-मन्तर माया दो ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।।

ऋत-ऋत-फल चरणों में लाया ।
आने तुम अपनों में आया ।।
कृपया मुझे बना लो अपना ।
कोई और न मेरा सपना ।।
मंशा-पूर्ण जगत्-रखवाले !
बाबा सिद्धवर-कूट वाले ।

जल, गन्ध, शालि-धाँ, पुष्प-सरब ।
चरु, दीप, धूप, फल, अष्ट-दरब ।।
चरणों में करता अर्पित हूँ ।
अर सह-परिवार समर्पित हूँ ।
बिन तेरे और न शरण मुझे ।
बस लाज रखना नाथ तुझे ।।

कल्याणक
छ: महिने अभी गर्भ आने ।
सुर रत्न लगे नभ बरसाने ।।
सूनी सूनी सी स्वर्ग धरा ।
लग रही सुहानी वसुन्धरा ।।

प्रभु जन्मे सिंहासन काँपा ।।
सुरपति पथ मर्त्य भूमि नापा ।।
अभिषेक मेरु पर्वत कीना ।
श्रद्धा जिसकी समकित चीना ।।

चित्-चिदानन्द चिंतन डूबा ।
भव भोग शरीरन मन ऊबा ।
तज राज-पाट पहुँचे वन में ।
तन नगन निरत कच-लुंचन में ।।

चउ कर्म घातिया विघटाये ।
चउ नन्त चतुष्टय प्रकटाये ।।
समशरण भेक-अहि, सिंह-हिरणा ।।
बैठे तज जात-वैर अपना ।।

ध्यानानल शुक्ल जलाई अब ।
अवशेष कर्म भू-साई सब ।।
इक समय मात्र शिव पहुँचे जा ।
मैंने नित नमन तिन्हें भेजा ।।

दोहा
बन्दर बाट न जानता,
बाबा का दरबार ।
भर कर झोली ले गया,
आया जो इक बार ।।

जयमाला

जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।
देहरी द्वार छोड़ के ।।
तेरा दरबार छोड़ के ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

दुखड़ा अपना मैं जाकर
और किसको सुनाऊँ ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

सभी को मतलब मतलब से ।
किसी को भी न मतलब मुझसे ।।

दिवाना पैसों के पीछे ।
टाँग अपना बन के खींचे ।।
जमाना हँसे पीठ पीछे ।

जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।
देहरी द्वार छोड़ के ।।
तेरा दरबार छोड़ के ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

दुखड़ा अपना मैं जाकर,
और किसको सुनाऊँ ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

सभी को मतलब मतलब से ।
किसी को भी न मतलब मुझसे ।।

नाम के पीछे दौड़े है ।
दाम से रिश्ता जोड़े है ।।
जगत् छुप तीर छोड़े है ।

जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।
देहरी द्वार छोड़ के ।।
तेरा दरबार छोड़ के ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

दुखड़ा अपना मैं जाकर,
और किसको सुनाऊँ ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

सभी को मतलब मतलब से ।
किसी को भी न मतलब मुझसे ।।

लगाये चेहरे पर चेहरा ।
‘कि गूँगा अंधा और बहरा ।।
जमाना जिया श्याह गहरा ।

जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।
देहरी द्वार छोड़ के ।।
तेरा दरबार छोड़ के ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

दुखड़ा अपना मैं जाकर,
और किसको सुनाऊँ ।
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ।।

सभी को मतलब मतलब से ।
किसी को भी न मतलब मुझसे ।।

दोहा
चेहरा पढ़ना जानते,
बाबा माँ के भाँत ।
मनमाना रखते रहें,
ला-ला लाला-हाथ ।।

आरती
दिये लिये आरती उतारता हूँ मैं ।
टकटकी लगा तुम्हें निहारता हूँ मैं ।।

आरती उतारूँ पहली, गर्भ कल्याण की ।
रत्न बरसात देव, देवि-साथ आन की ।।

दिये लिये आरती उतारता हूँ मैं ।
टकटकी लगा तुम्हें निहारता हूँ मैं ।।

आरती उतारूॅं दूजी, जन्म कल्याण की ।
निरत अभिषेक इन्द्र, प्रीत तज विमान की ।

दिये लिये आरती उतारता हूँ मैं ।
टकटकी लगा तुम्हें निहारता हूँ मैं ।।

आरती उतारूॅं तीजी, तप कल्याण की ।
स्वयं चीर चीर राह, ली विपिन प्रयाण की ।।

दिये लिये आरती उतारता हूँ मैं ।
टकटकी लगा तुम्हें निहारता हूँ मैं ।।

आरती उताऊँ चौथी, ज्ञान कल्याण की ।
प्राणी मात्र के लिये, समशरण प्रदान की ।।

दिये लिये आरती उतारता हूँ मैं ।
टकटकी लगा तुम्हें निहारता हूँ मैं ।।

आरती उतारूँ और, मोक्ष कल्याण की ।
समय मात्र पाई, ठकुराई मोक्ष थान की ।।

दिये लिये आरती उतारता हूँ मैं ।
टकटकी लगा तुम्हें निहारता हूँ मैं ।।

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