(१०१)
जिह्वा को संस्कृत में कहा है रस.. ना
मतलब रस नहीं है इसमें
और यदि ‘श’ शक्कर वाला लेते है तो
रशना मतलब होता है रस्सी
यानि ‘कि बन्धन
पैंनी जो इतनी रहती है
कही से भी सन्धि स्थान पा जाती है
इसलिये होंठ
और दाँतो का पहरा ही काफी नहीं
इस जुबां की जुवानी जो
सन्नाती रहती है
सो बनती कोशिश
लगाम लगा कर के रखना
चूँकि हमारे बड़े बुजुर्गों ने
अच्छा न माना बगलें तँकना
(१०२)
पचपन के होने को आये हैं हम
ओ ! सुनो तो
बचपन से ही नहीं
जुबाँ माँ के पेट से ही मिलती है हमें
अभी तक
सलीके के साथ
उसे चलाना न सीख पाये हैं हम
रे मंजिल चूमेगी कैसे
हमारे कदम
आंखें नम
जुबाँ नरम रखने के लिये कहा है
क्या दादी नानी के किस्सों में
हमनें नहीं सुना है
(१०३)
स्वयं शब्द ही कह रहा है
रफ़्तार
रफ़्तार पकड़ते ही
तार…’रफ’ हो जाते हैं
गिरने के चान्स ज्यादा रहते हैं
खरगोश के जैसी रफ्तार से
कछुए के जैसी चाल भली
भाई चर्चा गली गली
कहानी में
खरगोश की नहीं
कछुये की दाल गली
(१०४)
जिन्हें खुद पर विश्वास नहीं
उन्हें अपने हथियार डाल देने चाहिए
खुदा की आश करना
एक खुशफहमी के सिवा
और कुछ नहीं है उनके लिये
क्योंकि
ख़ुदा अपना हाथ सिर्फ उनको देता है
जिनकी आंखों में भरोसा तैरता है
और जिसका मन
‘है मेरी मुट्टी में ये सारा जहां’
यह जाप मंत्र मनके पल-पल फेरता है
(१०५)
यदि एक दफा काम
बनाया होगा क्रोध ने
तो दो दफा बनता हमारा
काम बिगाड़ा होगा क्रोध ने
भाई दिमाग से नहीं
आ जर्रा दिल से सोचते हैं
नफा का नहीं
टोटे का सौदा हुआ यह तो
ओ ! सुनो तो
छोटे का कोर्स है यह तो
ऐसे कैसे बड़े हो चले हम
छोटी छोटी बातों में
जो हो जाते हैं गरम
(१०६)
गुस्सा करने के बाद
हमारे इन अपने हाथों में
क्या शेष रह गया
क्या कभी देखा हमनें ?
यदि आप कहते हैं
पछतावा, खेद, अफ़सोस
तो यह हो पहली कक्षा की बात है
‘रे अय ! मेरे मन
दूसरी शाला की दूसरी कक्षा में
प्रवेश लो तब पता चले
‘के कुछ और धुंधली कर ली
अपनी जीवन रेखा हमनें
(१०७)
गुस्सा करने से
अपना काम बनता सा लगता है
पर याद रखना
पते से लगना
और पते का पता लगना
जमीन और आसमान का अन्तर् है
इन दोनों में
जितनी घाटी चढ़ते है ऊपर
उससे दुगनी घाटी
खिसक आते है नीचे को हम
आईये करते हैं तौबा तौबा
‘के कल सिर उठाये शरम
(१०८)
भीतर काफी है
क्यूँ भागा जा रहा है
बेशुध मृग के जैसे
रे मनुआ
बाहर सिर्फ और सिर्फ हाँपी है
आ
पलकें झपा
उतर
गहरे उतर
और गहरे, और गहरे
और गहरे
भीतर और भीतर
आ…ना
‘रे मनुआ
आ…ना
(१०९)
‘जुड़ों न जोडो
जोड़ा छोड़ो
जोड़ो तो बेजोड़ जोड़ो’
एक गुरु ने
अपने रोते हुए
शिष्य से कहा
‘जबाब देना
खूब बखूब आता वक्त के लिये भी’
इस आर्ष वाक्य में खोते हुए
हाय, अपने अपनों से ही धोखा खाये
कहा मन ने खुद से
‘के चलो जाने भी दो छोड़ो
जुड़ों न जोडो
जोड़ा छोड़ो
जोड़ो तो बेजोड़ जोड़ो
(११०)
जब तलक सफलता न लगे हाथ
‘मूक साधना
बहरे बनकर करते चलो’
करते चलो
करते चलो
संयमित कछुये है लगते पार
सपनों में खोये हुए
खरगोश के तो बस
होश उड़ते हैं
सो
‘बढ़ते चलो
रोज दर कदम
बढ़ते चलो’
(१११)
गरम जोशी
अहसान फरामोशी अच्छी नहीं
‘के कल कोई
दूसरों की मदद करने से इंकार कर दे
‘पनहारिन ओ !
कीचड़ न करो
पानी तो भरो’
(११२)
भुला देता है वक्त
चाबुक की मार
रुला देती है वक्त बेवक्त
तानों की मार
‘क्यूँ ताने चुन रहे
बाने भी तो हैं
क्यूँ सुन रहे ?
या फिर से कहूँ और एक बार
(११३)
मरने से पहले
मंजिल नहीं
पड़ाव आते हैं
थक न जाना
थम न जाना
‘रे मन म्हारे
‘चाँद पे नहीं
ऊँचाई पे पहुँचो
‘तोड़ने तारे’
(११४)
आप भले मत करना
आपकी अपनी मर्जी
पर सर ! जी
शक दुनिया तो करेगी आप पर
और तो और मन भर करेगी
सच्ची
‘सन्देह तब तलक
मन-देह जब तलक’
(११५)
पुल बनना
आसान बड़ा
आशा न बढ़ा
जो विपुल बनना
आ शान बढ़ा
आ सान चढ़ आ
क्यूँ ? क्या न निराकुल बनना
सच
‘आचरण में न ढ़ला
ज्ञान दीया समझो बुझा’
रे समझो बुधा
(११६)
किसने देखा स्वर्ग नरक ?
खाओ पिओ
मौज मस्ती करो
रे जब तलक जिओ
अय, मनमानी गाड़ी छुक छुक
रुक-रुक
‘दूर न…जा…’रे
काया में सुख-दुख
स्वर्ग नरक’
(११७)
न सिर्फ द्वेष से
राग से भी झटकना है दामन
‘रे अय ! मेरे मन
वामन अवतार धार
अभिमान संहार
आत्म निन्दा गर्हा की
तब जाके स्वानुभूति चाखी
सांची
‘पा वेग वेग
पढ़े-अपढ़ सभी
एक जैसे ही’
(११८)
विद्वेष रखना
मतलब स्वदेश सपना
ऊपर पट्टी कह रहें हैं हम
‘के रास्ता घर का भूल चले हैं,
बता दो
कोई मुझे मेरा पता दो
आप कहें
तो मैं कहूँ
एक हाईकू
‘द्वेष से बचो
लवण दूर रहे
दूध न फटे’
(११९)
वैसे लोगों को फुरसत नहीं रहती है
पर दीवाल पर उछरे कान के निशान ने कहा
वमन में उगले चुगली रूप खान पान से
बिना कहे न गया रहा
के कहा किसने
लोंगो को फुरसत नहीं रहती है
‘चश्मा उतार
तेरी दो आँखें
तेरी ओर हजार’
‘रे मन बनती कोशिश
नासा निहार
(१२०)
जमाना
जमा…ना
दुनिया का दूनिया कुछ अटपटा सा है
खरा खटका है इसे
इसने झटका है दामन
भलाई से
बुराई से
सटा रहता है इसका मन
देखो ना
‘सूर
अकेला
दागदार चन्द्रमा के साथ मेला’
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