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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -436

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
आपको दुनिया
शब्दों का जादूगर कहती है
मूकमाटी इसका साक्षात् प्रमाण है,
सुनते हैं,
जहाँ रवि नहीं पहुँचता है
वहाँ कवि पहुँच जाता है
फिर आप तो स्वानुभवि हैं
क्या कहने आपके भगवन !
एक छोटा सा सवाल,
शब्द महावीर क्या कहता है हमसे,
बस इतना बतला दीजिये
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब

सुनिये,
महावीर का ‘म’ कहता है
माँ के चश्मे से देखना,
जब कभी देखने का मन करे तो,
देता है दिखाई
बखूब खूब देता है दिखाई करिश्मा,
बस हो करीब
माँ चश्मा
जिससे सब कुछ दिखता है,
सामने वाले के छिद्र छोड़ के
सुन रहे हैं ना आप
बोलिये ‘हओ’
हाँ अब ठीक है
चूँकि शब्द ही कह रहा है
‘भूल’
एक बार फिर से कहूँ ‘भूल’

और महावीर का ‘ह’ कहता है
हसरतें बनती कोशिश
कम से कम रखियेगा
आँखें नम,
जुबां नरम रखियेगा
चादर से
जर्रा सा भी बाहर निकला पाँव,
कम नहीं पूरा का पूरा ‘पाव’
बाहर निकाल देता है
पाव यानि ‘कि चौथाई हिस्सा
निकल आता है
चादर के बाहर
बचना
मेरे ना सही
जिनवाणी के ही मान वचना

और हाँ !
महावीर का ‘वी’ कहता है
बीति ताहि विसारिये,
आगे की सुध लीजिये
मलाई मक्खन घी ही तो गया है
हाथ से है ना
सुनो ना
छैना ही नहीं नीबू भी बच गया है
दूध फाड़ना नहीं पड़ा हमें

देखो,
सुनते हैं
जीवन दो दिन का
गुजरा एक दिन,
दिन एक बाकी है

और सुनो
महावीर बीचोंबीच
कुछ छुपाये हैं
‘के हावी न होने पाये
हेवी से हेवी काम
हॉवी बना लो
कामयावी पा लो
कम नहीं होते
दिन में घण्टे उनके
जितने तीर्थकर होते हैं

अब महावीर का र’ कहता है
रक्तपात को हवा ना दो
काम बना हो रक्त पात से
कोई,
सही एक ही हवाला दो

सुनो…
मैं ही कहाँ,
कह रही दुनिया सारी
सन्मत
सन्मत
मैं तो बस जाऊँ बलिहारी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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