सवाल
आचार्य भगवन् !
बचपन की बहुत सी बातें लगती हैं
‘कि काल कवलित हो चलीं हों
लेकिन मन के किसी कोने में
बैठी रहतीं हैं वह,
जब कभी घर के आँगन को,
पैर के अँगूठे से कुरेदते वक्त
खोये हुए मोती के दिख जाने जैसा
योग जुड़ चलता है
तब तब वह मीठी याद
गुदगुदी सी छोड़ जाती है,
तो भगवन् ऐसा कोई प्रसंग
जिसमें माँ श्री मन्ती ने
खीर बनाई हो
कृपा करके सुनिए ना गुरु जी
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अच्छा सुनिये
माँ ने बनाई खीर
विरली मलाई मार के
मिसरी केशर डालके
आया छोरा
न सिर्फ कटोरी में
माने
माँ ने एक गहरी तस्तरी में
खीर परोसी
छोरा बोला
माँ आज मैं रोटी नहीं खाऊँगा
माँ ने खीर परोस दी थाली में
छोरे ने मन भरकर खाई खीर
माँ ने बनाई खीर
अब आई छोरी
जो हूबहू भाई के नक्शे कदम पे दौड़ी
छोरी ने भी मन भरकर खाई खीर
माँ ने बनाई खीर
पिता जी दूर बाहर गाँव
गये हैं काम से
यह कह करके
‘के आ जाऊँगा पहले पहले शाम से
माँ ने एक बड़ा सा कटोरा भरकर के
आले को थमाई खीर
माँ ने बनाई खीर
अब अखीर
आई माँ की बारी
हाय राम बलिहारी
माने हड़िया में से छुटाई खीर
माँ ने बनाई खीर
अब खीर कहाँ,
थी बची खुरचन
माँ ने वही खाई
ले अपनी आँखों में खुशिंयों वाला नीर
माँ ने बनाई खीर
बेजोड़ी
माँ मोरी धन धन
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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