सवाल
आचार्य भगवन् !
कल्याण क्यों मनाते हैं
लडूँ यह भाव पहले ‘चढ़े’ लाडू न भले
कल्याणों के अवसर पर ऐसा क्यों कहते हैं आप
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
श्री-मज्जिनेन्द्र
कल्याण गर्भ
कल्याण जन्म
कल्याण तप
कल्याण-ज्ञान
कलि यान मोक्ष
बैठो बैठो आन
इन तिथियों पर
अतिथिंयों का हाथ पकड़
कस-कर जोर से
लगा जय-कार
पंच कल्याण भव जल पार
निर्वाण सपना
तब तक
जब तक स्वर स्वर
विष बुझा
शर यानि ‘कि वाण अपना
निर्-वान
यानि ‘कि निर् वाणी
न किस किस ने
कहा
दिश् दिश् ने
यहाँ तक ‘कि ‘हर’ ने कहा
सन्मत तुम्हारा
अब भाई
ऐसा वैसा थोड़े ही न
रखा माई नाम जादू वाला
लड़ने, भिड़ने की आदत में
एक डण्डा न लगे
जब तलक
तब तलक
चढ़ाना लाडू
ऊसई-ऊसई सखे !
आ करते प्रार्थना संध्यावन
‘कि लडूॅं में डण्डा लगा सकूँ
हे ! भगवन्
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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