सवाल
आचार्य भगवन् !
दिन रात ‘गोरख धंधे’ में फँसे रहना,
और दो के चार करना,
फिर कभी कभार पल पलक सुुमरण कर लेना
क्या कुुछ होने वाला भी है इससे ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
स्वाध्याय घण्टे एकाध,
आटे में नमक सा पूजा-पाठ
कम न समझना इसे
कहा सती-सन्तों ने
करनी भरनी वैतरणी से पार उतरने घाट
सुनो,
मानस तट पर भगत बने,
बगुले लगा कतार खड़े रहते हैं
एक पैर पर,
पापी पेट का सवाल है,
ऐसे अपने बड़े-बड़े पेट हाथ फेरते हुए,
और दिखी नहीं मछली,
‘के कहते हुये मोटी-मोटी
साबुत ही निगल जाते हैं
वहीं हंसराज…
राजहंस कहो एक ही बात है
लहरों के द्वारा, नीचे से ऊपर लाये गये,
मोति कुछ ज्यादा नहीं एकाध ही पर्याप्त है
हाँ…हाँ
मुक्ता पिष्टी का नाम सुना होगा
भस्म ‘भा’ स्मरणीय,
अविस्मरणीय बनाये रखने में,
इनका खूब हाथ रहता है
राज पदवी सिर्फ यही राज न छुपाये है
बल्कि राजा भी मानस का हंस
वैष्णव बच्चिंयाँ उठने के साथ ही,
हाथ मुँह बाद में धोयेंगीं
पहले अपने चेेहरे पर आईं लटों के लिए
एक इस कान में,
दूसरी, दूसरे कान में फँसातीं हुईं,
देवी की मढ़िया पर ‘उरैन’ डालने जातीं हैं
दो कटोरे ले करके
गाँवों में देखा जा सकता है यह नजारा
एक काला कटोटा,
इसमें गोबर घुला रहता है
दूसरा धौरा,
इसमें छुई रहती है,
गोबर से आँगन पूरा लीप दिया काला-काला
फिर पतली सी ढ़िग लगा दी सफेद कलर की
एक दफा मैंने पूछा,
क्या कर रही हो बेटा ?
ये पतली सी लाईन सफेद और पूरा आंगन काला कर दिया है तुमनें,
क्या सफेद रंग कम है,
वह लाजवाब जवाब देती है
‘के महाराज साब ये सफेद रंग रस्सी सा
क्या, धागे के जैसा भी काले रंग पर भारी है,
ये किरण है,
सूरज की पहली,
रात के अंधेरे को हटाने लिए, जो पाप रूप है, भगवत् भक्ति की महिमा अचिन्त्य है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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