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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -265

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
किसी किसी से जलन होती है
क्या सोच रखूँ
‘कि सारे लोग अच्छे लगने लगें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
जलता मत,
कुछ भी कहना भूले
जलकर दीपक के हाथ,
पड़ा गले चलकर अंधेरा तले
मिली रोशनी,
पर दूसरों को

गुर न सिर्फ करीब कछुआ
अजीबोगरीब हुनर हमें भी बहुत कुछ नसीब
नाक, कान में दो अक्षर
तीन जुबान में
यानि ‘कि ढ़ाई आखर पार
जिसे हम चाहें तो रख सकते हैं छिपा
और नयनन पर भी भगवान् की बड़ी कृपा
दीं पलक…
पल पलक झँपा ‘कि झलक अपूर्व पाना
पूर्व तो खानापूर्ति
अय ! मंगलमूर्ति

शब्द जल…न का दिया उलाहना सुन लो
‘के पानी नहीं आपके पास,
और पानी के लिए राखने की बात कही गई है
‘बिनु पानी सब शून’

अक्ल ठिकाने आ चलेगी
और किसी से क्यों कर जलना हमें
जर्रा पलट के तो देखो अक्षर
कुछ कुछ कहता सा
शब्द
ज…ल…ना
ना…ल…ज
ना…ला…ज आती तुम्हें
जिस समय कर्मों के चुनने की बारी थी
तब तो थारी-मारी करते रहे
अब विपाक के समय सँभल करके चलो पल-पल
श्रेणी सुधार चल रहा,
बस याद रखना
ऊपर, नीचे जाने वाली सीढ़ी अलग-अलग नहीं एक ही होती है
सो जानवी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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