loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -209

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
विकारी भाव बार-बार दबाये भी,
सर उठाते हैं
हर रात प्रण करके सोता हूँ,
सुबह उठने के साथ फिर कायोत्सर्ग करता हूँ लेकिन साँझ जब जमा-खर्च का
रोजनामचा मिलाता हूँ
तो टोटा ही हाथ लगता है
हा ! भगवान् मेरा दिल दहलता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
जा गहरे पाताल में धस कर रहती जड़ें
चलें, चल लें आंधिंयां,
झड़ा लेगी फूल, फल, पत्ते, डालिंयाँ
न सिर्फ ‘बीज’
बीज क्या क्या नहीं,
फूल, फल, पत्ते सभी चीज
वैसे सार्थक नाम धरें
‘के हम रहें तब तलक,
जब तलक न ‘जरें’
भागीरथ प्रयास करना पड़ता है
भागते रथ पर
‘होना पड़ता सवार’
न ‘कि भाग के रथ पर
भाग कहे खुद-ब-खुद भाग
तब कभी जागेंगे भाग
न ‘कि खुद-ब-खुद
‘रे जाग
तब कहीं जाकर गूँजता,
कानों के आसपास भागीरथ प्रयास
भागीरथ प्रयास
भागीरथ प्रयास

सुदर एक आध जी,
दूर एक आद्य भी सेकेण्ड हो जाये
तो पैर हों जायें बेजान लकरी
मकरी सजग इतनी
सवार एक सूत के महीन लार-धागे विमान
‘खाई’
कर नपाई
आ जाये यथा स्थान
‘खाई कह न पाई’
रख भी स्वाभिमान,

सो मैं मात्र
दय पात्र
उद्धर्ण आला
वर्णमाला
‘म’ से ऊपर उठो
होने अन्तस्थ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point