सवाल
आचार्य भगवन् !
इन्द्रिय पाँचों ही शब्दश:
कुछ कुछ राज खोलतीं हैं
‘के मुझ सा परस…न,
रस…न,
घर…न,
नय…न,
कर…न
और आगम जी कहते हैं,
इनसे बनती कोशिश
दूर रहिए
भगवन् !
इतने सुन्दर नाम
आप क्यों अक्षर पलटने की कहते हैं
ना…म
म…ना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हमारे यहाँ गिनती, दो से शुरु होती है
संख्या एक तो राम की बपौती है
चाँद
एकम् का खोजा,
दूज के दिन भी
मिला कहीं-कहीं
ऐसा कहकर के इन्द्रिय परस का
‘प’ अलग कर,
रस लेता रहता मन
सो आओ डण्डा लगायें,
अक्षर पलट ‘के प…र…स
स…र…प, न बन चले,
आओ…परस को पारस बनायें
रखना याद
भाषा प्राकृत इसे फरस कहती है
सो भॉंति इस फरसा… ना
और रसना
सो ‘स’ एक नहीं अनेक
कहते रस्सी को भी रशना
कहते बुध चक्कर में इसके मत फँसना
और आपने घर न, ऐसा कहा
सो सुनिये,
‘इ का लोप न करके वृद्धि कीजिये
‘कि भॉंति इस घेरा…ना
कुछ ऐसी बुद्धि रखिये
और शब्द नयन घुमाने वाला
अलट पलट भी वही अर्थ थमाने वाला
जरूर
मानिये, भले न मानिये,
दाल में कुछ काला
और आप कुछ जल्दी कर गये है
एक्सप्रेस गाड़ी के जैसे
पेसेंस रखिये,
पैसेंजर गाड़ी सा प्रत्येक स्टेशन पर रुकिये
कर…न
की जगह पढ़िए
क…रण
सो खूब हुआ जनाना
बरखुदार अब जानना
इन्द्रियों को कहते हैं, करण भी
‘कर’ यानि ‘कि हाथ,
‘न’ यानि ‘कि नहीं
फिर भी क्या कुछ नहीं
इन इन्द्रियों के द्वारा किया धरा
न सिर्फ वसुधा वसुन्धरा
आखर पलटते ही क…र…न
न…र…क
जिसका नाम सुनते ही उठती फरूरी
वहाँ देती गिरा
अच्छा है भगवान् !
इन इन्द्रियों से बनी रहे दूरी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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