सवाल
आचार्य भगवन् !
बजुबानों में गायों से पहले आपको
कछुआ पसन्द लगता है,
आपके प्रवचनों में खूब जिक्र रहता है
उसका, जिसने कछु…आ पढ़ा है ऐसा,
पूरा ‘अ’ भी नहीं पढ़ा है, उसे इतना
पसंद क्यों करते है आप ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये
स्वात्म प्रशंसा पर निन्दा से दूर है कछुआ
कह रहा है कछु…आ पढ़ा है
कम नहीं, पड़ रक्खे हैं, पूरे ढ़ाई आखर
गुप्ति के
और मैं माँ से कह के आया हूॅं
तुझे सिर्फ इसलिये रुला रहा हूँ
‘के कुछ और करीब पहुँच सकूँ,
भुक्ति-मुक्ति के
तूने उस रोज कहा था
तीन संध्याओं में सुमरण करती हूँ,
‘के इस बार हाथ लगे,
अब-तक तो गये ठगे
‘मेरे द्वारा पूछने पर’
माँ इसे पल-पल नहीं कर सकते हैं,
यदि ये इतना ही कीमती है,
तो हमेशा करना चाहिये सुमरण
तब कहा था ‘मॉं…ने’
अहिंसा अभिलेख है,
उपाय एक है
मिलता जुलता शब्द
सं यानि ‘कि सु
और यम यानि ‘कि मरण
मतलब सीखते कछु…आ क्षण-क्षण
तुझे होगा ही पता
तबाही मचाती है
वहीं एक बूँद स्याही
साथ संयम, समता
पेज इमेज बढ़ाती है
पर ध्यान रखना,
कन्ट्रोल की दुकान रखना
अलग बात है
और दो कान रख कन्ट्रोल
रखना अलग बात है
सच भीतर कछुआ
भीतर क…छुआ
भीतर कछु…आ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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