सवाल
आचार्य भगवन् !
पड़ाड़ जैसे बड़े-बड़े दिन,
और बिना ओर-छोर वाली घनी कालीं रातें,
भगवन् !
ऐसे में भी 24 घण्टों में सिर्फ और सिर्फ
एक दफा भोजन-पानी लेना,
एनर्जी क्या रहती होगी ?
गर्म तबे पे डाली,
कि’ पानी की बूँद जैसे छुन्न हो जाती होगी,
भगवन् !
कुछ फल के रस तो बनते हैं,
ऐसे समय में ‘कि जिन्हें आप ले सकते हैं ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
ओ ! हो…
लेता हूँ ना
फल्के तो मैं खूब लेता हूॅं
घण्टे-घण्टे भर,
हा ! करके कर तर कर, डूब लेता हूँ
और रस में हैं ना गोरस
और रस कूप भी लेता ही हूॅं
फिर उपाश्रम में जाकर गुरु पादमूल में
प्रत्याख्यान भी कहता हूँ
सुदूर जीवन पर्यन्त
दूर छह महीने,
महीने भर लेते, है वे विरले निर्ग्रंथ
तेला ही नहीं, बेला भी नहीं,
कहता हूँ गुरु जी के पूछने पर,
कल तक का
हा ! हहा ! दूर अभी दिल्ली,
सुंदर कलकत्ता,
भगवन् !
अय ! मेरे भगवन् !
ये कूप मण्डूक पना छूटे
झूठे हो चलते संकल्प जो उठाता मन
अखीर-अखीर में मेरी सिर्फ यही एक भावन
‘के राख सकूॅं लाज,
मैं आ तो गया वन
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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