सवाल
आचार्य भगवन् !
बचपन में जब पीलू ने मंदिर जी में चढ़ी चढ़ाई चिटक रख ली थी
तब माँ श्री मन्ती जी ने स्वयम्, प्रायश्चित रूप
एक बड़ा कायोत्सर्ग किया था,
श्वासो-श्वास सहित,
और भगवन् !
प्राय: करके माएँ बच्चों के गुनाह
अपने सिर पर लेती ही रहतीं हैं,
ऐसी कैसी होती माँएँ,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच…अद्भुत होतीं हैं माँएँ,
बड़ा प्यारा शब्द है माँ
उलट-पलट भी
न सिर्फ आता वहीं
बल्कि बतलाता भी
‘के माँ खुद सी
‘रे ऐसा तो न खुदा भी
चूनर चाँद-सितारे टके कोई
जहां दोई
आई एक सुर से आवाज माई
यूँ ही थोड़े ही,
दुनिया ने माथे चन्द्र बिन्दु लगाई
और मैं ही क्या कहता
कहती आत्मा
आद्य…माँ
और माहात्म्य माँ ही तो
प्रकटाते महात्मा अ’जि ओ
‘जननी जन्म भूमि च,
स्वर्गादपि गरीयसी’
सच सार्थ मही…मा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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