आदर्श घर वही है जहाँ अपने कुल की गरिमा के अनुरूप आचरण रखा जाता है । जहाँ पूर्वजों के संस्कार, आचार, विचार-रीति, रिवाज, रहन-सहन में बहुत अधिक ध्यान रखा जाता है । अपने पूर्वजो की गौरव शाली परम्परा के अनुरूप आचरण किया जाता है । पूर्वजों के आदर्शो का हमेशा सम्मान किया जाता है । एक जैन परिवार में जन्म लेने के बाद हमारा नैतिक आचरण होना चाहिये, उसका अनुपालन करना, संस्कारों को सुरक्षित करना । ‘तिरूक्कुरल’ में लिखा है अपने पूर्वजो की कीर्ति की रक्षा, देवपूजा, अतिथि सत्कार, माता-पिता की सेवा और आत्मोन्नति गृहस्थ के यह पंचकर्म है ।
१) पूर्वजो की कीर्ति की रक्षा तभी होगी जब हम अपने पूर्वजों का आचरण करेंगें, जो व्यक्ति आदर्श जैन की तरह जीता है वह जैन धर्म को अधिक प्रतिष्ठा प्रदान करता है । जो व्यक्ति जैन होने के उपरांत भी यदि दुराचरण करता है तो वह अपने जीवन को तो बर्बाद करता ही है और पूरे जैनत्व को कलंकित करता है ।
२) हम नित्य उठकर भगवान की भक्ति, उनकी वंदना करें, देवदर्शन देवपूजा करें अपने खान-पान, आचार-विचार में शुध्दता रखें, रात्रि भोजन का त्याग करें, व्यसन और बुराईयों से अपने आपको बचाकर रखें ।
“भूमि की विशेषता का पता उसमें उगने वाले पौधे से लगता है ।
ठीक इसी प्रकार मनुष्य के व्यवहार से उसके कुल का संकेत मिकता है ॥”
जो मनुष्य बिना किसी अनाचार के अपने कुल को उन्नत बनाता है सारा जगत् उसको अपना मित्र समझता है ।
३) ‘अतिथि देवो भव ।’ जिनके आने की कोई तिथि नही होती है उसे अतिथि कहते हैं । ऐसा शुध्द सात्विक भोजन बनाये स्वयं को, यदि कोई अतिथि आ जाये तो उसें आहार करावें ।
४) चौथी बात है माता पिता की सेवा- भारतीय परम्परा में “मातृदेवो भव – पितृ देवो भव” की बात कही गई है । माता पिता को देव तुल्य कहा गया है । माता पिता को बहुत अधिक सम्मान देकर हमेशा उनका आदर करने का परामर्श दिया गया है।