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कहानी

कहानी -कड़वा सच

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

                                                    “कड़वा सच” 

पाँच दोस्त थे । जिनमें से एक था मोटा, एक दुबला था, एक साँवला था, एक नाटा था, और एक लम्बा था । सभी अपनी शारीरिक संरचना को लेकर के दुखी रहते थे । आईने से सभी का वैर था, खूबसूरत गोरे-नारे सुड़ोल लड़के को देखते ही, बगलें झाँकना, उन्हें समझिये ‘कि गॉड-गिफ्ट था । एक दिन विद्यालय में, गुरुदेव के सामने सभी ने मिल-के अपनी उलझन बतलाई, गुरुदेव मुस्कुराये और कहाँ तुम लोगों ने, इस जन्म से पहले जन्म में, जरूर किसी व्यक्ति की हँसी उड़ाई होगी, चुगली खाई होगी, सुड़ोल स्वस्थ्य गोरा-नारा सुन्दर शरीर पाकर, गुमान किया होगा, उसी का यह परिणाम है । बच्चे सिर नीचा करके, सब सुनते जा रहे थे । गुरुदेव ने आगे कहाँ, देखो अगला जन्म भी हमारा होगा, यदि हम नेकी के रास्ते पर चलते हैं, तो अगली बार, फिर सुन्दर, सुड़ोल शरीर हमारा अपना हो सकता है,
और हो सकता है, ऐसी ढुल-मुल बात क्यों करें, जैसा बीज बोते हैं हम, वैसा फल मिलता ही मिलता है जरूर । बेशक, हम सुन्दर, स्वस्थ्य, सर्व गुण संपन्न होगें ।

बच्चे पूर्व भवों में किये कर्मों की निन्दा, गर्हा करते हुये, अब सन्मार्ग पे चलने की शपथ के साथ, गुरुजी को ढ़ोक देकर के अपने-अपने घर को चल दिये । आज बच्चों के मम्मी-पापा को कहीं काम से जाना था, तो वो विद्यालय लेने के लिये नहीं आ पाये थे । रास्ते में विदेश से पढ़ाई करके आये एक डॉक्टर के हेल्थ केयर सेन्टर के सामने से गुजर रहे थे, ‘कि डॉक्टर ने बच्चों के चहरे पढ़कर पूछा ? आप लोग कुछ चिंतित से लगते हैं । बच्चों ने अपनी परेशानी कह-सुनाई…डॉक्टर बोला…यदि आपके मम्मी-पापा मोटे, दुबले, साँवले, नाटे, लम्बे नहीं होते तो आप सुड़ोल, सुन्दर हो सकते थे । बस फिर क्या था बच्चे हेल्थ-केयर से एक फितूरी लेकर लौटे ।
कानों में बार-बार यही शब्द गूँज रहे थे, यदि आपके मम्मी पापा….
हाय राम भले कोई कर ले खता ।
पर दे-बता इस डॉक्टर को,
‘के बड़े कड़वे होते हैं,
सच सीधे-सीधे नहीं बोले जाते हैं ।
देखा नहीं, बच्चों को बिना पानी मिला के यदि,
दूध दे दिया जाये तो बच्चा बीमार हो जाता है ।

हूबहू कुछ-कुछ ऐसा ही यहाँ हुआ, बच्चे अब अशान्त मन से अपने घर में प्रवेश करते हैं । मम्मी को ढ़ोक कहना तो दूर, सीधे मुँह बात भी नहीं कर रहे हैं । शाम का खाना भी अनमने मन से खाया गया । सभी बच्चे अपने-अपने कमरे में गुमसुम चले गये । कानों में वही आवाज रह-रह के गूँज रही है । यदि आपके मम्मी पापा…
सोचते-सोचते उधेड़ बुन में रात के १२ बजने को हैं, पर बरखुरदार करवट़े बदल रहे हैं, नींद नदारद है । हुई सुबह आज तक सूरज को जगाने वाले बच्चे, सूरज सिर पर चढ़ गया सोये रहे ।

गुरुदेव के पास पहुँचे । चहेरा पढ़ना गुरुदेव को नहीं आता, यह बात सफेद झूठ में आती है । गुरुदेव बोले कल के समाधान से सन्तुष्ट नहीं हो क्या ? बच्चे बोले भगवन् ! यदि हमारे मम्मी-पापा मोटे, दुबले, साँवले, नाटे, और लम्बे नहीं होते, तो हम सुन्दर और सुड़ोल होते ।

गुरुजी ने सुनते ही सुनते उनकी बात, अपने कानों पर हाथ रख लिये और बोले बेटा ! किसने पढ़ाई ये पट्टी, बच्चे बोले डाॅक्टर साब सही तो कह रहे हैं, जैसे पेड़, वैसे उसके फल होते ही हैं । मन ही मन गुरुदेव ने सोचा, बच्चों के कान गहराई तक जाकर, भरे गये मालूम होते है ।

एक पल के बाद गुरुजी बोले बेटा ! अपने मम्मी पापा का बड़ा उपकार है हम पर, यदि वो हमें मानव जन्म न देते, तो हम 84 लाख योनियों में से,
न जाने किस योनि में, कष्ट को सहन कर रहे होते ।

बच्चे बोले… गुरुजी ! पर कल तो बताया था हमारे पूर्व-कृत कर्म हमें नया जन्म दिलाते हैं,
और आज कह रहे हो आप, ‘कि मम्मी पापा दुनिया में लेके आये हैं हमें । तो गुरुजी कहते हैं, हाँ…मम्मी पापा से पहले हमें जन्म दिलाने में कर्म का हाथ रहता है, जैसे हम कर्म करते हैं, वैसे हमें मम्मी पापा की गोद मिलती है । इसलिये हमें सींह वृत्ति अपनानी है, जैसे शेर बन्दूक पर नहीं, बन्दूक वाले पर प्रहार करता है, वैसे ही हमें हमारे मम्मी पापा पर नहीं, अपनी शारीरिक संरचना के लिये, अपने कर्मों पर प्रहार करना है, जैसे ही वे ठीक हो जायेगें, हम सुन्दर सुड़ोल मम्मी पापा की गोद, अपने-आप पा जायेंगे ।

तब तक मम्मी पापा बच्चों को घर ले जाने आ जाते हैं, सभी खुशी-खुशी अपने मम्मी पापा के साथ घर को चल दिये, गुरुदेव को ढ़ोक कहते हुये

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