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कविता

कविता- उत्तम क्षमा

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

उत्तम क्षमा
(१)
ठण्डे पड़ना
अलग ही बात है
मैं ठण्डे होने की बात कर रहा हूॅं
अग्नि क्या हटी
पानी ठण्डा हो चला
मुझे अभी पानी से
पानी है ये कला

(२)
गरम हुये नहीं
‘कि ठण्डे हो चलना
मतलब
दूध में मलाई पड़ना
जाने हम क्या सीख रहे हैं
थे सिर्फ अक्षर ढ़ाई पढ़ना
क्षमा के

(३)
किसी ने पत्थर मारा
तरु ने फल दिये मीठे
हम तो पुरुष झूठे
दूर पुरु-से
गये बीते तरु से
किसी ने मुझे पत्थर मारा
मैंने जवाब दिया ईट से

(४)
सार्थक नाम क्षमा
धरती जैसे ही गई खोदी
अमृत की धारा फूटी
सच ! क्षमा अनूठी

(५)
सांझ सांझ डूब ही जाता है
दिन भर गरम जो होता रहता है
सूरज
‘रे मनुआ क्यों गरम होता रहता है
जर्रा थोड़ी तो समझ रख

(६)
लावा
अलावा
हम अपने आपको
और कुछ न समझें
जब जब उबलें
परीक्षा में आता था ना
जोड़ी मिलाईये
उबलता रहता है जो
वो लावा
और क्या ?

(७)
गुस्सा किन पर करना है
कह रहा कुछ कुछ
शब्द ही गुस्सा
जो गो मतलब गाय को
सिसकी भरने के लिए
रोड़ पर छोड़ देते हैं
जो गो मतलब गाय को
सांस भी नहीं लेने देते हैं
चैन की नहीं कह रहा हूॅं
हहा ! सांस ही नहीं लेने देते हैं
सिलेटर हाऊस की तरफ मोड़ देते हैं
करिये ना इन पर
खूब करिये गुस्सा

(८)
क्षमा की जीती जागती मूरत
अपनी अपनी माँ है
जिसने सोते से उठते ही
उसकी सूरत देख ली
उसे शुभ मुहुरत की
कोई जरूरत ही नहीं

(९)
क्षमा में भी माँ है
माफ़ी में भी माँ है
माँ पहले माफी खुद माँग लेती है
फिर पीछे क्षमा भी कर देती है
भले गुस्ताखी किसी की भी हो
सच,
माँ का कोई जवाब नहीं है

(१०)
यदि आप पूछते ही हैं
‘कि क्षमा क्या है ?
तो बस शब्द क्षमा के पहले
‘अ’ बिठाल लीजिए
जो प्रसंग के अनुसार
हट भी जाता है
और प्रकट भी जाता है
अब अक्ष मतलब आँख
और माँ मतलब
अपनी अपनी माता-राम
यानि ‘कि
माँ की आंखों से देखना
‘रे क्षमा को कुछ और लेख ना

(११)
किसी को क्षमा करते ही
एक अनूठी ख़ुशी मिलती है
बाद तो बाद में आयेगा
क्रोध करने से पहले ही
धधकते अंगारों की,
अंगीठी सी सुलगती है

(१२)
एक के चेहरे से तेज टपकता है
और दूसरा तेज आवाज में
बक बक करता है
बड़ा अंतर है
क्षमा मोहन धूल है
जादू-मन्तर है
और क्रोध
लोचन धूल है
राहू, व्यन्तर है

(१३)
हो यदि अरमां
छूना आसमां
तो बनती कोशिश क्षमा करना
क्षमा करते ही,
कद जो बढ़ता है अपना

(१४)
उत्तम क्षमा मतलब
नजर अंदाज करना
यदि आप पूछते ही हैं
‘के किसे
तो न इसे
और न ही उसे
यदि आप फिर से पूछते हैं
‘रे फिर किसको ?
तो इस उस की गल्तियों को

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